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रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य का परिचय
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“मनुष्यचर्मणा बद्ध: साक्षात्परशिव: स्वयम् । सच्छिष्यानुग्रहार्थाय गूढं पर्यटति क्षितौ ।अत्रिनेत्रः शिवः साक्षादचतुर्बाहुरच्युतः ।अचतुर्वदनो ब्रम्हा श्रीगुरूः कथितः प्रिये ॥” यद्यपि मनुष्य का शरीर अष्टधा प्रकृति से निर्मित हड्डियों और मांस का समूह है, तथापि इस देह में सद्गुरु रूप में अवतरित शक्ति ही गुरु है। गुरु साक्षात् परमशिव हैं। वे सत्पात्र शिष्यों पर अनुग्रह करने के लिए ही पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। श्रीगुरु त्रिनेत्ररहित शिव हैं, चतुर्भुज रहित विष्णु हैं, चतुर्मुख रहित ब्रह्मा हैं। गुरु न केवल ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं, बल्कि साक्षात् परब्रह्म भी हैं।
गुरु शब्द का अर्थ-
“गुकारस्त्वन्धकारश्च, रूकारस्तेज उच्यते। अज्ञानग्रासकं ब्रम्ह, गुरूरेव न संशयः॥”जो अज्ञान के अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश प्रदान करता है, जो अज्ञान का नाश करता है, वही सगुण ब्रह्म अर्थात् गुरु है। श्रीगुरु से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं है।
“नधिकं तत्त्वं, न गुरोरधिकं तपः। तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥”
“ब्रम्हानंदं परमसुखदं कंवलं ज्ञानमूर्ति। व्दंव्दातीतं गगनसदृश्यं तत्त्वमत्स्यादिलक्ष्यम् । एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं। भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरू तं नमामि॥” गुरु से बढ़कर जगत् में कुछ भी श्रेष्ठ नहीं। गुरु के अतिरिक्त कोई सत्य नहीं है। गुरु से अधिक कोई तप भी नहीं। गुरु तत्वज्ञान से परे हैं। वे परब्रह्म स्वरूप हैं। वे परम आनंद प्रदाता हैं और केवल ज्ञानमूर्ति हैं। वे सुख-दुःख, धूप-छाँव, वर्षा—इन सबसे परे हैं। आकाश के समान सर्वव्यापी और अति सूक्ष्म हैं। "तत्वमसि" इस महावाक्य के लक्ष्य वे ही हैं। वे नित्य हैं, निर्मल हैं, अचल हैं और सर्व बुद्धियों के साक्षी हैं। जो सभी भावनाओं से परे परम अनुभव प्रदान करते हैं—ऐसे जगद्गुरु नरेंद्राचार्य को हमारा शतकोटि वंदन।
रत्नागिरी—रत्नों का भंडार, प्राकृतिक सौंदर्य से अलंकृत, प्यास-भूख को भुला देने वाला, विस्तीर्ण समुद्र तट से सम्पन्न, पराक्रमी भगवान परशुराम की पावन भूमि—इसी कोकण प्रदेश में, आम, कटहल, काजू, नारियल व सुपाडी के समृद्ध भंडार वाले रत्नागिरी जिले के नाणीज ग्राम में श्री स्वामी नरेंद्राचार्य का जन्म हुआ।
नाणीज ग्राम साधारण होते हुए भी जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य के पदस्पर्श से पावन होकर आज संपूर्ण जगत् को जगाने वाला पवित्र स्थल बन चुका है। “ना…नीज” का तात्पर्य है—जो स्वयं नहीं सोता अथवा स्वयं जागृत रहकर अनेकों को जागरूक करता है। ऐसा ही है यह नाणीज ग्राम।
नरेन्द्राचार्यजी के माता-पिता पूर्वजन्म के कोई योगभ्रष्ट तपस्वी ही रहे होंगे। माता सुभद्रा दत्त महाराज की अनन्य भक्त थीं। पिता बाबूराव गोविंदराव सुर्वे सूर्यवंशी वंश के, वशिष्ठ गोत्र के थे। कुलदेवता भवानी माता (तुळजापुर) थीं। पंचपल्लव और सूर्यफूल इनका देवक (परिवार प्रतीक) था।

यह कुल मूलतः नाशिक जिले के निफाड का निवासी था। छत्रपति शिवाजी महाराज के गुप्तचर विभाग प्रमुख बहिर्जी नाईक (निंबाळकर) की टुकड़ी में इनके पूर्वज सम्मिलित थे। प्रजा की स्थिति जानने, शत्रुओं की गतिविधियों पर निगरानी रखने और गुप्त योजनाओं को समझने हेतु शिवाजी महाराज के आदेश पर यह टुकड़ी निरंतर भ्रमण करती रहती थी।
कोकण की विस्तृत समुद्ररेखा और सिंधुदुर्ग, विजयदुर्ग, रायगड, जंजिरा जैसे किलों की संपूर्ण जानकारी सुरक्षित रखने हेतु यह परिवार कोकण में आ बसा।
जगद्गुरु नरेंद्राचार्य का जीवनवृत्त (बाल्यकाल)
हिंदवी स्वराज्य के उपरांत अनेक परिवार कोकण में ही स्थायी रूप से बस गए। यदि कोई 30–40 वर्ष पूर्व यह कहता कि नाणीज ग्राम सम्पूर्ण विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करेगा, तो इस पर विश्वास करना कठिन होता। यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि यह ग्राम अत्यंत ग्रामीण एवं दुर्गम था। साथ ही, इसका कोई विशेष ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, धार्मिक अथवा सांस्कृतिक गौरवपूर्ण विरासत भी नहीं था। फिर अचानक यह परिवर्तन कैसे घटा? यह चमत्कार कैसे संभव हुआ?
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृज्याम्यहम्॥ परित्राणाय साधूनामं विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥”
जब-जब धर्म का ह्रास होता है, जब-जब नीतिमूल्यों का पतन होता है, जब साधु-संतों तथा सात्विक, सज्जन व्यक्तियों का जीवन कठिन बन जाता है, तब विधाता कभी श्रीराम बनकर, कभी श्रीकृष्ण बनकर, कभी संत ज्ञानेश्वर माऊली बनकर, तो कभी स्वामी विवेकानंद बनकर इस धरती पर अवतरित होते हैं।
इसी प्रकार आश्विन शुक्ल अष्टमी को, माता जगदंबा के नवरात्र में, जब पुरोहितों ने उनके जन्म पर यह घोषणा की थी कि यह बालक जगदंबा का पुत्र है, जो आगे चलकर जगत् का नाथ होगा—ऐसे ज्ञानसूर्य जगद्गुरु नरेंद्राचार्य का जन्म शुक्रवार, दिनांक 21 अक्टूबर 1966 को रात्रि 10 बजे, नाणीजधाम क्षेत्र में हुआ।
जगद्गुरु नरेंद्राचार्य को पूज्य मातोश्री से दत्तभक्ति का संस्कार बाल्यकाल से ही प्राप्त हुआ। उनका जीवन ही ऐसा है—जो भी कार्य करना या अंगीकार करना हो, तो उसे चरम सीमा तक ले जाना। चाहे वह देवभक्ति हो, सामाजिक कार्य हो या कोई अन्य दायित्व। इन्हीं गुणों के कारण उन्होंने श्रीदत्त महाराज को अपना बना लिया। बाल्यकाल में ही उन्हें प्रत्येक वस्तु में दत्त महाराज का स्वरूप दिखाई देता था।
यहाँ तक कि कोई व्यक्ति दूसरों से क्या बोलने वाला है, यह भी उन्हें पूर्वाभास में पता चल जाता। वे अपने मित्रों से कहते—अमुक व्यक्ति अमुक बातें कहेगा, और वैसा ही घटित होता। आपको यह आश्चर्यजनक लगेगा, परंतु भगवान ने गीता में कहा है—
“अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥” तात्पर्य यह है कि—जो लोग अनन्य भाव से मेरे प्रति स्थित रहते हैं, जो निरंतर निष्काम भाव से मेरा चिंतन और भजन करते हैं, उनके योगक्षेम का वहन मैं स्वयं करता हूँ।
नरेंद्राचार्य का बाल्यकाल प्रतिपदा के चंद्रमा के समान था, जो धीरे-धीरे पूर्णिमा की ओर बढ़ता जाता है। उसी प्रकार उनका बचपन ईश्वरभक्ति की ओर अग्रसर होता गया। (इसके अनेक प्रसंग आगे प्रकट होंगे।)
उनमें सामान्य बच्चों की तरह चंचलता और खेल-कूद की वृत्ति भी थी, किंतु ध्यान और साधना में एकाग्र होने की क्षमता विलक्षण थी। चौथी-पाँचवीं कक्षा में ही वे श्रीदत्त महाराज के ध्यान में ऐसे लीन हुए कि उनकी गोद पर बिच्छू काफी देर तक रहा और उन्हें इसका आभास तक नहीं हुआ। उनकी बहन रंजना ने बिच्छू देखकर जोर से चीख मारी, फिर भी वे ध्यानमग्न रहे। अंततः जब उसने उन्हें जोर से झकझोरा, तभी वे ध्यान से बाहर आए। इतनी गहरी ईश्वरभक्ति थी।
नरेंद्राचार्य के भीतर जन्मजात खेलभावना, संगठन कौशल और नेतृत्वगुण थे। पाँचवी-छठी कक्षा में ही उन्होंने अपने ग्राम में दत्त जयंती का सार्वजनिक उत्सव आरंभ किया। यह परंपरा आज भी नाणीजधाम में चल रही है।
कोकण में होली उत्सव अत्यंत प्रसिद्ध है, जो प्रायः बड़े लोग ही आयोजित करते थे। किंतु दस-ग्यारह वर्ष की आयु में ही श्री नरेंद्राचार्य ने अपने छोटे साथियों के साथ इस उत्सव का आयोजन करना आरंभ किया। फाल्गुन शुक्ल पंचमी से लेकर होली पूर्णिमा तक, जिस प्रकार बड़े लोग होली मनाते थे, उसी प्रकार उन्होंने बच्चों के समूह के साथ यह परंपरा स्थापित की। आज भी नाणीज ग्राम में बच्चों द्वारा होली उत्सव मनाने की परंपरा जीवित है। इससे स्पष्ट होता है कि संगठनशीलता उनकी जन्मजात प्रवृत्ति थी। आज हम देखते हैं कि जगद्गुरु नरेंद्राचार्य ने करोड़ों लोगों को संगठित किया है। उनके शालेय जीवन में गणित, विज्ञान और इतिहास प्रिय विषय थे। गणित विषय के कारण उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology) का उपयोग कर अध्यात्म और समाजसेवा को जनमानस तक पहुँचाया।
जगद्गुरु नरेंद्राचार्य : युवावस्था का प्रारंभिक जीवन
नरेंद्राचार्य ने अध्यात्म और समाजसेवा को जनमानस तक पहुँचाने हेतु सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology) का पूर्ण उपयोग किया। उन्होंने 150 से 200 आई.टी. इंजीनियरों के साथ मिलकर लगभग 17–18 सॉफ़्टवेयर तैयार किए। विशेषता यह रही कि इन सभी सॉफ़्टवेयरों की आवश्यकता (Requirement) स्वयं नरेंद्राचार्य की थी। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इनके निर्माण के लिए आवश्यक तर्क (Logic) का 70–80 प्रतिशत भाग स्वयं नरेंद्राचार्य का ही था। संक्षेप में, दूरदृष्टि, नेतृत्वगुण, विज्ञान, अध्यात्म तथा जीवन का गणित—इन सबके बीज बाल्यकाल से ही श्री नरेंद्राचार्य में विद्यमान थे।
मार्च 1983 में एस.एस.सी. उत्तीर्ण करने के पश्चात् वे आगे की शिक्षा के लिए ठाणे गए, परंतु वहाँ के शहरी वातावरण में वे रमे नहीं, क्योंकि उनका मन लौकिक संसार में कभी नहीं रमता था। उन्हें पूजा-अर्चना, ध्यान और साधना में ही रुचि थी। अतः जब वे पुनः गाँव लौटे, तब पूज्य माता-पिता ने उन्हें शासकीय ग्रामसेवक पद की नौकरी स्वीकारने के लिए बाध्य किया। आध्यात्मिक प्रवृत्ति के कारण वे सांसारिक जीवन में रमने वाले नहीं थे, इसलिए उन्हें संसार से बाँधने हेतु माता-पिता ने नौकरी करने पर बल दिया। दिनांक 29 मार्च 1985 को वे ग्रामसेवक पद पर सरकारी सेवा में नियुक्त हुए। यद्यपि वे नौकरी कर रहे थे, किंतु उनका चित्त पूर्णतः अध्यात्म में ही लीन रहता। माता-पिता की इच्छा थी कि वे सांसारिक कर्तव्य भी निभाएँ। सभी भाई-बहनों में नरेंद्राचार्य सदैव आज्ञाकारी पुत्र रहे। उनकी पूज्य माता सुभद्रा मातोश्री सदैव कहा करतीं— “तू अवश्य भक्ति कर, पर हमारी इच्छा है कि तू संसार भी करे। माता-पिता की आज्ञा सुज्ञ पुत्र को कभी तोड़नी नहीं चाहिए। हमारे आशीर्वाद तेरे साथ हैं। परंतु तू नौकरी कर, गृहस्थी कर और हमें प्रसन्न कर। मैं दत्तभक्त हूँ, मेरा आशीर्वाद तेरे साथ रहेगा। तू जग का कल्याण करेगा। भगवान दत्तमहाराज तुझ पर सदैव कृपा करेंगे और जैसा वे आदेश देंगे, वैसा ही तू आचरण करना।”
एक दिन दत्तमहाराज के आशीर्वाद और आदेश से श्री नरेंद्राचार्य, शेगांव के श्री गजानन महाराज के भक्त बने। वे आत्मज्ञानी योगीपुरुष हैं। दत्तमहाराज ने नरेंद्राचार्य से कहा—“अब से तेरा मार्गदर्शन गजानन महाराज करेंगे।” दत्तमहाराज की आज्ञा को ब्रह्मादेश मानकर नरेंद्राचार्य उनके दास बन गए। नरेंद्राचार्य अपने शब्दों में गाते हैं—
“गजानना तुझ्या आम्ही पायातील वहाण। याचक तुझे आम्ही दयावे समाधान॥
तुम्हापुढे देवा आम्ही घुंगुरडया समान। नेणो भावे कैसी घडे सेवा महान॥
उपाधि वचन ना ऐकती कर्ण। बहु त्रासियले आमुचे मन॥
जरी तुम्ही दिले आम्हा शाश्वत सुख। येणे नाही होणार आमुचे मन पाक॥
श्रीहरि तुम्हावीण नको हे जीणे। आस आहे चरणाची नरेंद्र म्हणे॥”
गजानन महाराज के चरणों की यह आस दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। जब यह देखा गया कि उनका ध्यान नौकरी पर कम होता जा रहा है, तब पूज्य माता-पिता ने दिनांक 15 अक्टूबर 1985 को उनका विवाह करा दिया। श्री शांताराम बाबू रसाळ की कन्या, जिनका जन्म 2 जून 1968 को हुआ, चि. सौ. का. शोभना, श्री नरेंद्राचार्य की धर्मपत्नी बनीं और “सुप्रिया” नाम से वे उनकी अर्धांगिनी हुईं। माता-पिता को यह आशा थी कि अब उनका मन संसार में रमेगा और वे निश्चिंत हुए। किन्तु उन्हें ज्ञात नहीं था कि जब श्री नरेंद्राचार्य को पुत्ररत्न प्राप्त होगा, तब वे प्रपंच रूपी ऋण से मुक्त होकर विरक्त होने की धर्माज्ञा प्राप्त करेंगे। दिनांक 24 अक्टूबर 1988, सोमवार, पौर्णिमा की रात 11 बजकर 49 मिनट पर कानिफनाथ नामक पुत्र का जन्म हुआ। उस समय परिवारजन प्रसन्न थे कि नरेंद्राचार्य संसार का एक उत्तरदायित्व और ओझा प्राप्त कर चुके हैं, किंतु स्वयं नरेंद्राचार्य हृदय से प्रसन्न थे कि अब उन्हें सांसारिक बंधनों से मुक्ति का मार्ग मिल चुका है और वे आध्यात्मिक, पारलौकिक एवं आत्मिक यात्रा का शुभारंभ कर सकते हैं।
सद्गुरु की शरणागति और आत्मबोध
नरेंद्राचार्य के ध्यान, मन और स्वप्न में संतशिरोमणि गजानन महाराज (शेगांव) सदैव विद्यमान रहते थे। अतः उनके संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को यह सहज अनुभव होता था कि नरेंद्राचार्य के भीतर कुछ विलक्षण सामर्थ्य है। इसी कारण अनजाने में ही लोग अपनी सांसारिक दुःख-क्लेश उनके समक्ष प्रकट करने लगे। वे जब सहज भाव से मार्गदर्शन देते, तो उनकी बातें लोकजीवन के लिए संजीवनी सिद्ध होतीं। स्वाभाविक ही भक्तों का समूह एकत्र होने लगा और सामूहिक भक्ति की परंपरा प्रारंभ हुई। संतशिरोमणि गजानन महाराज का प्रकट दिन उत्सव सन् 1989 में नरेंद्राचार्य के निवास स्थान पर प्रारंभ हुआ। नौकरी, पत्नी, पुत्र और संसार के किसी भी कार्य में उनका मन नहीं रमता था। धीरे-धीरे उनके चारों ओर पाँच से दस हजार भक्तों की सभा होने लगी। अब भक्ति और उपासना का प्रवाह तीव्र हो उठा था। संत गजानन महाराज ने नरेंद्राचार्य के हृदय में उत्पन्न आत्मिक समाधान की तृष्णा को पहचानकर उन्हें सद्गुरु की शरण में जाने का दृष्टांत दिया। नरेंद्राचार्य को अनुभव हुआ— “ब्रह्मज्ञानाविण उपदेश। म्हणू नये खास। जैसे धान्याविण भूस। काय कामाचे॥” अर्थात्, ब्रह्मज्ञान के बिना उपदेश करना व्यर्थ है। यही तृष्णा उनके हृदय में प्रकट होने लगी। तब संत गजानन महाराज ने उन्हें आज्ञा दी कि वे समर्थ सिद्धयोगी सद्गुरु मुप्पीन काडसिद्धेश्वर महाराज (कणेरी, कोल्हापुर) को अपना सद्गुरु स्वीकारें। संतशिरोमणि गजानन महाराज, जिन्हें तन-मन से नरेंद्राचार्य ने स्वीकार किया था, उनकी वेदाज्ञा कौन टाल सकता था? अतः दिनांक 30 जनवरी 1991 (पौर्णिमा) को नरेंद्राचार्य ने समर्थ सद्गुरु काडसिद्धेश्वर महाराज का शिष्यत्व स्वीकार किया।
गुरु परंपरा- समर्थ सद्गुरु काडसिद्धेश्वर महाराज और इंचगिरी संप्रदाय
समर्थ सद्गुरु काडसिद्धेश्वर महाराज निंबार्काचार्य गुरु परंपरा से सम्बद्ध हैं, जिसे इंचगिरी संप्रदाय भी कहा जाता है। भगवान दत्तात्रेय के शिष्य रेवणसिद्धनाथ, जो नवनाथों में से एक थे,। रेवणसिद्धनाथ के आठ प्रमुख शिष्य थे—जोगी, शारंगी, निजानंद, नैन, निरंजन, यदु, गैबनशुद्र और काष्टसिद्ध। इन आठ में से काष्टसिद्धनाथ के शिष्य बने नारायणराव उर्फ़ गुरुलिंगजंगम महाराज (निंबार्गी)। उनसे शिष्यत्व ग्रहण किया रघुनाथप्रिय महाराज (तंजावुर, तमिलनाडु) ने। रघुनाथप्रिय महाराज के शिष्य बने भाऊसाहेब महाराज। इन्हीं के कारण इस परंपरा को आगे चलकर इंचगिरी संप्रदाय कहा जाने लगा। भाऊसाहेब महाराज (उमदी–इंचगिरी) के शिष्य बने समर्थ सद्गुरु सिद्धरामेश्वर महाराज (पाथरी, सोलापुर)। सिद्धरामेश्वर महाराज के शिष्य बने लिंगायत समाज के धर्मपीठ कणेरी–कोल्हापुर के छब्बीसवें आचार्य मठाधिपति श्री समर्थ मुप्पीन काडसिद्धेश्वर महाराज।
समर्थ सद्गुरु मुप्पीन काडसिद्धेश्वर महाराज के शिष्यत्व को, संत शिरोमणि गजानन महाराज के आदेश से, नरेंद्राचार्यजी ने स्वीकार किया।
नरेंद्राचार्य अपने एक अभंग में कहते हैं—
“कृपावंत माझा सद्गुरु काडसिद्ध। अनुग्रहीत केले तेणे मला॥धृ.॥
स्वधर्माची खुण दावून मज त्याने। सोह्म मंत्र कानी सांगितला॥1॥
ठायीची लावली अखंड समाधी। संपली उपाधी अविद्येची॥2॥
नरेंद्र म्हणे ईश अणूरेणूत आहे। संसार तो झाला मोक्षमय॥3॥”
आत्मबोध से प्रेरित विरक्ति और लोककल्याण का संकल्प
समर्थ सद्गुरु काडसिद्धेश्वर महाराज के आत्मबोध से प्रेरित होकर नरेंद्राचार्यजी ने अपना आत्मोद्धार किया। अब उनके जीवन में पूर्णतः विरक्ति के लक्षण स्पष्ट दिखाई देने लगे। उन्होंने निश्चय किया कि पत्नी, पुत्र, माता-पिता और समस्त पारिवारिक बंधनों को त्यागकर वे स्थायी रूप से संन्यास मार्ग पर निकल पड़ेंगे।
किन्तु यह परिवर्तन उनकी पत्नी और माता-पिता की दृष्टि से छिपा न रह सका। अतः वे नरेंद्राचार्यजी को समर्थ सद्गुरु काडसिद्धेश्वर महाराज के पास ले गए और उनसे विनम्र प्रार्थना की—“अब हमें भली-भाँति ज्ञात हो गया है कि नरेंद्र अब हमारे नहीं रहे। तथापि हम चाहते हैं कि अपनी पत्नी, छोटे पुत्र और माता-पिता के लिए वे हमारे साथ रहें। हम कभी भी उन्हें सांसारिक बंधनों में नहीं बाँधेंगे। वे स्वतंत्रतापूर्वक लोकसंग्रह करें, लोगों को भक्ति मार्ग पर प्रेरित करें, हम उनके आध्यात्मिक कार्य में कभी बाधा नहीं डालेंगे। किंतु उनकी पत्नी की आयु केवल 23 वर्ष है, पुत्र साडे तीन वर्ष का है और स्वयं नरेंद्राचार्यजी मात्र 25 वर्ष के हैं। इसलिए हम निवेदन करते हैं कि वे पत्नी और पुत्र का त्याग न कर, हमारे साथ रहकर ही पूर्ण रूप से आध्यात्मिक कार्य में प्रवृत्त हों।”
उनकी इस करुण प्रार्थना को सुनकर समर्थ सद्गुरु काडसिद्धेश्वर महाराज ने माता-पिता और पत्नी की भावनाओं का मान रखते हुए कहा— “यह मेरा प्रसाद मैं तुम्हें देता हूँ। यह तुम्हारे पास रहेगा, तुम्हारे मध्य रहेगा, किन्तु कार्य केवल मेरा ही करेगा।”
नरेंद्राचार्यजी का मन संसार में रहने का इच्छुक नहीं था। उन्होंने अपने सद्गुरु से अनेक प्रकार की विनती की। तब समर्थ सद्गुरु काडसिद्धेश्वर महाराज ने उन्हें विठ्ठलपंत कुलकर्णी (आपेगांव–पैठण–संभाजीनगर) का प्रसंग सुनाया। विठ्ठलपंत ने संन्यास दीक्षा ली थी, परंतु उनके श्रीगुरु रामानंदाचार्यजी ने उन्हें पुनः गृहस्थ जीवन में भेजा। गुरु आज्ञा को शिरोधार्य कर वे प्रपंच में लौटे और भविष्य में निवृत्तिनाथ, ज्ञानेश्वर, सोपान और मुक्ताई जैसे संत उनके संतान रूप में जन्मे। इन चारों ने जगत को सरलतम रूप में परमार्थ का मार्ग दिखाया।
गुरु का वचन ही मंत्र के समान है; अतः गुरु आज्ञा का पालन ही परमार्थ है।
नरेंद्राचार्यजी के पास अन्य कोई मार्ग न था। वे भी गुरु आज्ञा को शिरोधार्य कर नाणीज लौट आए। यह प्रसंग मार्च 1991 के अंत का है। अब गुरु की आज्ञा से संसार त्यागना संभव न था। अतः उन्होंने निश्चय किया कि वे प्रपंच में रहते हुए ही परमार्थ का कार्य करेंगे। अप्रैल 1991 के मध्य में उन्होंने श्रीक्षेत्र नाणीज स्थित पैतृक भूमि (गट नं. 295) पर एक छोटे आश्रम के निर्माण का संकल्प लिया, ताकि भक्ति मार्ग की ध्वजा सदैव फहरती रहे।
नाणीज से वे बार-बार गुरु सहवास और सेवा हेतु कणेरी मठ जाया करते थे। 13 फ़रवरी 1992, गुरुवार को जब वे कणेरी मठ में सेवा हेतु उपस्थित थे, तब समर्थ सद्गुरु काडसिद्धेश्वर महाराज ने उन्हें आदेश दिया कि वे अपनी नौकरी त्याग दें। दूसरे ही दिन, 14 फ़रवरी 1992, शुक्रवार की सुबह, नरेंद्राचार्यजी ने ग्रामसेवक पद से त्यागपत्र देकर स्वयं को पूर्ण रूप से परमार्थ के लिए समर्पित कर दिया।
अप्रैल 1991 में आरंभ हुआ आश्रम का निर्माण भी इस समय तक पूर्ण हो चुका था। अतः 24 फ़रवरी 1992 को गुरु आज्ञा से “स्व-स्वरूप संप्रदाय” की स्थापना कर, नरेंद्राचार्यजी ने सम्पूर्ण मानवता को महामंत्र प्रदान किया— “तुम जियो और दूसरों को जीवन दो।”
अध्यात्म और समाज सेवा
गरीब और वंचित वर्ग के प्रति अत्यंत संवेदनशील, सत्य के साधक, परोपकारी वृत्ति से परिपूर्ण, दीन-दुखियों की सेवा को ही ईश्वर सेवा मानने वाले स्वामी नरेंद्राचार्य एक दूरदर्शी विचारक हैं। वे मानते हैं कि सनातन वैदिक धर्म और प्राचीन भारतीय संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन आवश्यक है, क्योंकि यही सम्पूर्ण विश्व को प्रेरणा देने वाली शक्ति है। हिंदू संस्कृति में ही यह सामर्थ्य है कि वह दूसरों को अमृत पिला सके। इसी विश्वास के साथ उन्होंने धर्मकार्य और आध्यात्मिक कार्य को व्यापक स्तर पर फैलाया। उन्होंने जीवन के लिए त्रिसूत्री दी— “नेत्र विज्ञानवादी रखें, मन अध्यात्मवादी हो और बुद्धि यथार्थवादी रखें।” अर्थात्, ज्ञान और विज्ञान के समन्वय से ही अज्ञान पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
बहुआयामी व्यक्तित्व
नरेंद्राचार्य एक उत्कृष्ट नियोजक, उत्तम प्रशासक, प्रभावी प्रबंधक, श्रेष्ठ वास्तुशास्त्री, कवि और लेखक, ओजस्वी वक्ता, जीवन-मार्गदर्शक, महान संघटक, धर्मरक्षक, समाज सुधारक, कुशल तकनीकी विशेषज्ञ, प्रकृति रक्षक तथा आदर्श समाजसेवी हैं। इन्हीं गुणों के कारण अल्पावधि में वे महाराष्ट्र और गोवा राज्यों के कोने-कोने तक पहुँचे।
उनके अध्यात्म और सामाजिक कार्य का विस्तार अत्यंत सूक्ष्म नियोजन के कारण शीघ्र ही व्यापक हुआ। अनेक राज्यों और जिलों में वे धर्म, संस्कृति, अध्यात्म और समाजसेवा के लिए सतत यात्राएँ करते हैं। प्रत्येक माह वे कम-से-कम 20–22 दिन नाणीजधाम से बाहर लोककल्याण के लिए प्रवास करते हैं।
अनुशासन और साधना
इतनी व्यस्तता के बावजूद उन्होंने ध्यान, साधना और उपासना को सर्वाधिक महत्त्व दिया। वे वर्षभर की अपनी दिनचर्या का कैलेंडर पूर्व नियोजित करते हैं और प्रत्येक कार्यक्रम लगभग डेढ़ वर्ष पहले ही निर्धारित होता है। इससे उनका कार्य और संपर्क जनोन्मुख हो पाता है।
सन 1997 से आजतक उनकी दिनदर्शिका उपलब्ध है, जिसे “जगद्गुरुओं का कालदर्शन” नाम से प्रकाशित किया जाता है। इसमें प्रत्येक तिथि पर उनका निश्चित कार्यक्रम अंकित होता है। यह विशेषता अद्वितीय है—क्योंकि प्रत्येक वर्ष का कैलेंडर 21 अक्टूबर (उनके जन्मदिवस) पर प्रकाशित होता है।
इसमें उनकी साधना की तिथियाँ भी होती हैं, और वे उन दिनों साधना निश्चय ही करते हैं। उनकी साधना स्थली प्रायः निर्जन वनों में होती है—जैसे बीड जिले का सौताडा (कडा), रत्नागिरी जिले के लांजा तालुका का खोरनिनको, संगमेश्वर तालुका का चाफवली-चाफनाथ, तथा निवे बु. का सिद्धेश्वर मंदिर यह उनके रुची के साधना स्थान है। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक स्थानों पर साधना की है।
अध्यात्म का संदेश
नरेंद्राचार्य साधना, सेवा और आचरण को सर्वाधिक महत्त्व देते हैं। वे स्वयं वैसे ही जीवन जीते हैं और अपने अनुयायियों को भी उसी प्रकार जीने की प्रेरणा देते हैं। उनका स्पष्ट कथन है— “अध्यात्म न तो केवल कहने-सुनने का शास्त्र है, न केवल वाद-विवाद का विषय; यह प्रत्यक्ष जीने का शास्त्र है। जो इसे व्यवहार में उतारेगा वही मानव शरीर का परम कर्तव्य पूर्ण कर सकेगा।”
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य का पट्टाभिषेक
नरेंद्राचार्य के अल्पावधि में हुए व्यापक कार्य को नाशिक कुंभमेले (2003) में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अनेक साधुओं ने निकट से देखा। इसी कारण निर्वाणी अखाड़े के महंत ग्यानदास महाराज, जो उस समय अखिल भारतीय षड्दर्शन अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष भी थे, नरेंद्राचार्य के आध्यात्मिक एवं सामाजिक कार्य से अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने नरेंद्राचार्य को उज्जैन कुंभमेले में 11 अप्रैल 2004 को निर्वाणी अखाड़े का शिष्य बनाकर साधु परिवार में “महंत नरेंद्रदास” के रूप में आधिकारिक रूप से स्वीकार किया।
महंत नरेंद्रदास असाधारण शक्ति और विलक्षण व्यक्तित्व के धनी थे। दक्षिण भारत में वैष्णवों का कोई धर्मपीठ न होने के कारण, वैष्णव अखाड़ों ने यह संकल्प किया कि महंत नरेंद्रदास को “जगद्गुरु रामानंदाचार्य” पद पर आसीन कर, दक्षिण भारत में वैष्णव भक्तिमार्ग की पताका फहराई जाए तथा रामनाम का व्यापक प्रचार-प्रसार हो। नरेंद्राचार्य का कार्य प्रतिदिन विस्तार पाता गया। उनके अध्यात्म, धर्म और समाजसेवा के विविध कार्यों को देखकर अखिल भारतीय षड्दर्शन अखाड़ा परिषद ने उन्हें वैष्णव परंपरा के लिए आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य के “उत्तराधिकारी” के रूप में मान्यता देने का निश्चय किया।
पट्टाभिषेक समारोह
21 अक्टूबर 2005 को, अखिल भारतीय षड्दर्शन अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ग्यानदासजी महाराज, परिषद के सदस्य, निर्वाणी अणि अखाड़ा, निर्मोही अणि अखाड़ा, दिगंबर अणि अखाड़ा, अठारह उप-अखाड़े, चतुःसंप्रदाय, उदासीन अखाड़ा, बड़ा उदासीन अखाड़ा, निर्मल अखाड़ा तथा सभी वैष्णव खालसा अखाड़ों के प्रमुखों की उपस्थिति में महंत नरेंद्रदास का जगद्गुरु रामानंदाचार्य के रूप में पट्टाभिषेक संपन्न हुआ।
यह ऐतिहासिक समारोह भगवान श्रीरामचंद्र के पदस्पर्श से पवित्र अयोध्या नगरी में सम्पन्न हुआ। इसी दिन से महंत नरेंद्रदास “जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य” के रूप में अलंकृत हुए। आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य के उत्तराधिकारी के रूप में नरेंद्राचार्य को संपूर्ण साधु समाज ने हिंदू धर्मगुरु और वैष्णव आचार्य के सभी अधिकार प्रदान किए। इसी क्षण से नाणीज ग्राम का नाम परिवर्तित होकर “नाणीजधाम” रखा गया। इसे आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य का दक्षिण पीठ घोषित किया गया और इसका नाम हुआ— “रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ – नाणीजधाम”।
आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य का मूल पीठ वाराणसी के पंचगंगा घाट पर स्थित है, जिसे श्रीमठ कहा जाता है। दूसरा पीठ चित्रकूट (मध्यप्रदेश) में स्थित है, जिसका नाम तुलसीपीठ है। तीसरा पीठ महाराष्ट्र स्थित नाणीजधाम है, जिसे रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है।
आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य का अवतरण
पुराणों के अनुसार, भगवान श्रीराम ने अपने अवतारकाल में धर्ममार्तंड के निर्देश पर एक शूद्र का वध किया था, उस शूद्र का नाम शंबूक बताया गया है (वाल्मीकि रामायण, उत्तरकांड में इसका उल्लेख मिलता है)। क्योंकि उस समय वैदिक उपासना का अधिकार केवल ब्राह्मण और क्षत्रियों को ही था। संभव है कि यह प्रसंग उनके हृदय में शल्य की भांति विद्यमान रहा हो। धर्मरक्षा और संवर्धन हेतु, विक्रम संवत् 1356, माघ कृष्ण सप्तमी (ईस्वी सन् 1299) के दिन भगवान श्रीराम ने स्वयं आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य के रूप में जन्म लिया।
आर्ष ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है:
“रामानंदा स्वयं रामः, प्रादुर्भुतो महितले।” अर्थात्, स्वयं भगवान श्रीरामचंद्र ही रामानंदाचार्य के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए।
सामाजिक सुधार और समता का संदेश
आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने वैदिक सनातन धर्म में व्याप्त जातिप्रथा की विषवल्ली को जड़ से उखाड़ फेंका। उन्होंने कहा— “जात-पात पूछे ना कोई। हरी को भजे सो हरी का होई॥”
उन्होंने केवल उपदेश ही नहीं दिया, बल्कि संत कबीरदास, संत रविदास, संत सेन नाई, संत धन्ना जाट, संत नाभादास आदि ब्राह्मणोत्तर समाज से शिष्यों को स्वीकार किया। साथ ही, संत सुरासुरी और संत पद्मावती जैसी महिलाओं को भी आत्मोद्धार का अधिकार प्रदान किया। तेरहवीं शताब्दी में जब दिल्ली सल्तनत के मुस्लिम शासक मोहम्मद गयासुद्दीन तुगलक के शासनकाल में इस्लामीकरण का प्रयास प्रबल था, तब उसका प्रतिरोध करने में रामानंदाचार्य का योगदान अद्वितीय रहा। ऐसा प्रतीत होता है कि वही अधूरा कार्य पूर्ण करने के लिए आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य, आज नरेंद्राचार्य के रूप में पुनः अवतरित हुए हैं।
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य : कार्य और बहुआयामी व्यक्तित्व
नरेंद्राचार्य का 1992 से अब तक का कार्य उनके विभिन्न ग्रंथों एवं पुस्तकों में संकलित परिचयों में उपलब्ध है। इसी प्रकार भगवान आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य का जीवनवृत्त भी उनके ग्रंथसंग्रह में मिलता है। जब इन दोनों संत विभूतियों के जीवन का अध्ययन किया जाता है, तो उनके बीच गहन साम्य दिखाई देता है।
आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य और नरेंद्राचार्य दोनों का जन्म शुक्रवार को हुआ। दोनों का प्रिय भोजन खीर है। दोनों का गोत्र वशिष्ठ है। दिन दुखीयोन्के के प्रति दोनों के हृदय में गहरा करुणाभाव है। दोनों ही जाति-पांति, ऊँच-नीच, छुआछूत में विश्वास नहीं रखते। दोनों का ही दर्शन विशिष्टाद्वैत है—परमात्मा सम्पूर्ण चराचर जगत् में व्याप्त है। हरि और हर, दोनों से परे जो ब्रह्म है, वह अणु-रेणु से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्मांड तक व्यापी है। दोनों संत सनातन वैदिक धर्म के प्रति अत्यंत सजग रहे हैं और हिंदू धर्म की रक्षा एवं पोषण हेतु सामान्य जन से लेकर विशिष्ट जन तक, सभी स्तरों पर धर्म की नींव को मजबूत बनाने का सतत प्रयास किया है। दोनों का साहित्यिक योगदान महत्वपूर्ण है। दोनों ने धार्मिक शिक्षा द्वारा समाज में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए, और शिक्षा, बेरोजगारी निवारण, आपदाग्रस्तों की सहायता जैसे अनेक समाजोन्मुख कार्य किए।
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य के अष्टपैलु गुण
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य में अनेक बहुआयामी गुण हैं, जो अध्ययन योग्य हैं।
1. उत्कृष्ट नियोजनकर्ता-
वे संपूर्ण वर्ष का सूक्ष्मतम नियोजन करते हैं। प्रत्येक वर्ष 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक 365 दिनों की दिनचर्या वे अगले वर्ष के आरंभ से कम से कम छह महीने पहले निर्धारित कर लेते हैं और उसे कैलेंडर के रूप में प्रकाशित करते हैं। 1997 से आज तक यह क्रम बिना किसी व्यवधान के चला आ रहा है। किस दिन, कहाँ, किस उद्देश्य से जाना है—यह सब अत्यंत सूत्रबद्ध रूप से तय कर, बिना एक भी दिन आगे-पीछे किए वे अपनी दिनचर्या का पालन करते हैं। इतना सूक्ष्म नियोजन करना साधारण कार्य नहीं है। यही कारण है कि उनके द्वारा हाथ में लिया गया प्रत्येक कार्य बिना त्रुटि के पूर्ण होता है और समाजहितैषी अनेक कार्य आज लोकाभिमुख बन पाए हैं।
2. प्रशासक एवं व्यवस्थापक-
उन्होंने “जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान” और “संजीवन ट्रस्ट” जैसी कई संस्थाएँ स्थापित कीं। इन संस्थाओं के माध्यम से वे समाजकार्य के लिए उत्कृष्ट दिशा प्रदान करते हैं, अचूक सेवाकार्य सम्पन्न कराते हैं, सभी का समुचित समन्वय करते हैं और प्रत्येक व्यक्ति में समाजकार्य के लिए प्रेरणा जागृत करते हैं। उनकी विशेषता यह है कि वे कार्य को सुचारु रूप से चलाने हेतु विभिन्न सॉफ़्टवेयर का निर्माण करवाते हैं और इनके माध्यम से कार्यप्रणाली को सहज और सुलभ बनाते हैं। यह उनकी अद्वितीय समन्वयक एवं प्रबंधकीय क्षमता का परिचायक है।
3. वास्तुकला के पारंगत आचार्य-
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य का मुख्य पीठ नाणीजधाम है और इसके अंतर्गत बारह उपपीठ स्थापित किए गए हैं। इन सभी पीठों पर समाजकल्याण, मानसिक शांति, मानव की आध्यात्मिक प्रगति, तथा सांसारिक और परमार्थिक जीवन के संतुलन के लिए लाखों श्रद्धालुओं की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु भवन, मंदिर और अन्य सुविधाओं का निर्माण किया गया है। नाणीजधाम पीठ के पूरे पर्वत क्षेत्र का वैज्ञानिक अध्ययन कर, बिना प्राकृतिक सौंदर्य को क्षति पहुँचाए, सामाजिक कार्यों के लिए आवश्यक सुविधाओं का निर्माण करना वास्तव में एक अद्वितीय साधना है।
प्रत्येक पीठ के लिए उनकी अपनी अलग थीम होती है, और वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं क्षेत्रफल को ध्यान में रखकर वे योजनाएँ बनाते हैं, जिससे लाखों लोगों को सहज लाभ हो सके। ऐसी योजनाओं को व्यवहार में उतारना अत्यंत कठिन है, किंतु आज यह साकार रूप में दृष्टिगोचर होता है।
4. कवि एवं लेखक-
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य स्वयं एक समर्थ कवि हैं। उन्होंने केवल अठारह दिनों में श्री लीलामृत नामक 3051 ओवियों (पद्य रचनाओं) का ग्रंथ लिखा। इस ग्रंथ में उन्होंने सामान्य मानव के लिए यह समझाने का प्रयास किया है कि सांसारिक जीवन जीते हुए भी अध्यात्म और संस्कारों का आश्रय लेकर जीवन को उत्तम रूप से कैसे जिया जाए। इस ग्रंथ की भाषा सरल और सुबोध है, ताकि साधारण जन भी उसका अर्थ ग्रहण कर सके। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक विषयों पर अभंग रचे हैं तथा भजनमाला नाणीजधाम नामक ग्रंथ प्रकाशित किया है। उनकी अनेक आध्यात्मिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। साथ ही, वे प्रतिदिन हिंदू धर्म और संस्कृति पर व्याख्यान देते हैं और उनके माध्यम से डिजिटल गद्य स्वरूप में नए ग्रंथों की रचना भी सतत जारी है।
5. उत्कृष्ट वक्ता-
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य का वक्तृत्व अत्यंत प्रभावशाली है। उनकी विचारधारा से समाज के अत्यंत सामान्य व्यक्ति भी गहराई से जुड़ जाते हैं। वे जटिल से जटिल विषय को सरल और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत करने की विलक्षण क्षमता रखते हैं। यही कारण है कि उनके प्रवचनों ने लाखों लोगों को अध्यात्म और धर्ममार्ग से जोड़ने का कार्य किया है।
6. जीवन मार्गदर्शक-
मानव जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं, जिनसे मनुष्य अक्सर भ्रमित होकर गलत निर्णय ले बैठता है। ऐसे समय में जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य दुःखपीड़ित जनों को अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। वे जीवन के लिए यह त्रिसूत्री देते हैं—“नेत्र विज्ञानवादी हों, मन अध्यात्मवादी और बुद्धि यथार्थवादी हो।” वे स्वयं लोकमंगल हेतु साधारण जनों के बीच जाकर उन्हें जीने की प्रेरणा देते हैं। उनका मार्गदर्शन यह सिखाता है कि ज्ञान और विज्ञान का संगम कर कैसे जिया जाए और अज्ञान या अंधश्रद्धा से स्वयं को दूर कैसे रखा जाए। भक्तिमार्ग के द्वारा संयम, समयबद्धता, विवेकशीलता, दृढ़ता, दूरदर्शिता, नेतृत्व क्षमता आदि गुण विकसित होते हैं। भक्ति मनुष्यत्व का पोषण करती है और मानवता का धर्म प्रतिष्ठित करती है, जिसके द्वारा साधारण मनुष्य भी सांसारिक जीवन जीते हुए परमार्थ की ओर उन्मुख होता है।
7. उत्कृष्ट संघटक-
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने अपनी उत्कृष्ट संगठन क्षमता के बल पर लाखों अनुयायियों को संगठित कर एक सूत्र में बांधा है। इनमें युवावर्ग की संख्या विशेष रूप से अधिक है। उनके मार्गदर्शन में युवा सेना, महिला सेना, हिंदू संग्राम सेना, पुरुष सेना जैसी अनेक संगठन स्थापित हुए हैं। इन संगठनों के माध्यम से विभिन्न आयु-वर्ग, शैक्षिक स्तर, आर्थिक स्थिति, जाति-पाँति के लोग समाजसेवा में प्रवृत्त हैं। वर्षों से ये संगठन निरंतर नि:शुल्क सेवा कार्य कर रहे हैं और समाज के विविध स्तरों तक धर्म और अध्यात्म की प्रेरणा पहुँचा रहे हैं। इस विविधता को अपने प्रेम और नेतृत्व से एकसूत्र में बाँधे रखना केवल एक समर्थ संघटक के लिए ही संभव है।
8. धर्मरक्षक-
हिंदू धर्म से विमुख होकर अन्य धर्मों में चले गए लाखों परिवारों को जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने पुनः सनातन धर्म में प्रतिष्ठित किया है। उन्होंने हजारों परिवारों में रोटी-बेटी व्यवहार पुनः आरंभ करवाए और हिंदू समाज को भयमुक्त करने का सतत प्रयास किया। वे समय-समय पर कुंभमेलों और अन्य धार्मिक स्थलों पर जनजागरण करते हैं तथा उद्घोष करते हैं—
“हिंदू धर्म खतरे में है, डरेंगे तो मरेंगे। सभी हिंदुओं में एकता हो। सनातन सात्विक है, पर कायर नहीं।”
भगवान आद्य जगद्गुरू रामानंदाचार्यजी कि सिख है, “जात-पात पूछे ना कोई। हरी को भजे सो हरी का होई॥” के अनुरूप, जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने समाज में जातिभेद कम करने के लिए सतत प्रयास किए हैं। उनके रामानंद संप्रदाय में जाति या वर्ण-भेद के स्थान पर मनुष्य के भीतर विद्यमान ईश्वर की खोज पर बल दिया जाता है। वे आध्यात्मिक संस्कारों के माध्यम से हिंदू संस्कृति के संरक्षण का कार्य कर रहे हैं, और उनका मानना है कि आध्यात्मिक संस्कारों के द्वारा ही मनुष्य देवत्व तक पहुँच सकता है। वेदों में निर्दिष्ट महावाक्य “तत्त्वमसि” का अनुभव तभी संभव है जब हम अपने दुर्गुणों का त्याग करें और सद्गुणों की वृद्धि करें। धर्म द्वारा बताए गए संस्कारों और संस्कृति का संरक्षण करें, तो धर्म का संवर्धन अपने आप होता है। जगद्गुरुश्री का कथन है— “धर्म की रक्षा करने वालों की रक्षा धर्म स्वयं करता है।”
9. समाज सुधारक-
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य धर्म के साथ-साथ विज्ञान को भी अत्यंत महत्त्व देते हैं। उनकी शिक्षापद्धति है—“तुम जियो और दूसरों को जीवन दो।” इस शिक्षण के अनुसार जीवन में अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय होना चाहिए। अध्यात्म आत्मकल्याण के लिए है, जबकि भौतिक प्रगति के लिए विज्ञान आवश्यक है। वे जीवन के लिए त्रिसूत्री प्रदान करते हैं—“नेत्र विज्ञानवादी हों, मन अध्यात्मवादी हो और बुद्धि यथार्थवादी हो।”
उनके मार्गदर्शन में अब तक समाज से सैकड़ों मरणोपरांत देहदान सम्पन्न हुए हैं। साथ ही, बड़े स्तर पर अंगदान के कार्य भी हो रहे हैं। यह वास्तव में एक सामाजिक क्रांति है कि परिवारजन अपने प्रियजन का शरीर नि:शुल्क चिकित्सा शिक्षा हेतु दान करते हैं—बिना किसी सम्मान या पुरस्कार की अपेक्षा, पूर्ण निस्पृह भाव से।
हिंदू धर्म की रक्षा, संवर्धन और संरक्षण हेतु विभिन्न कर्मकांड आवश्यक हैं—जैसे पूजाविधि, शांति विधि और यज्ञीय कर्म। किंतु पुजारियों की संख्या घटने के कारण ये विधियां विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में लुप्त होती जा रही हैं। इस संकट को देखते हुए, उन्होंने हिंदू समाज की विभिन्न जातियों के बालक-बालिकाओं को शास्त्रोक्त पुरोहित शिक्षा प्रदान करने का अभियान प्रारंभ किया है, ताकि धर्म और संस्कृति सुरक्षित रह सके।
व्यसनमुक्ति के क्षेत्र में भी उनका कार्य उल्लेखनीय है। विशेषकर युवावर्ग को नशे की गिरफ्त से बाहर निकालने के लिए उन्होंने 1992 से प्रयास प्रारंभ किए। अब तक लगभग चार से पाँच लाख लोग व्यसनमुक्त हो चुके हैं और उन्हें अध्यात्म तथा विज्ञान के समन्वय से जीवन में स्थिरता प्रदान की गई है।
अंग्रेजी भाषा के महत्त्व को समझते हुए उन्होंने सीबीएसई बोर्ड के अंतर्गत निःशुल्क शिक्षा-संस्थान की स्थापना की, जहाँ नर्सरी से लेकर स्नातक तक की शिक्षा दी जाती है। यह पूर्णत: अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय है, किंतु यहाँ प्रत्येक बालक को वैदिक संस्कार दिए जाते हैं।
10. कुशल तंत्रज्ञानी-
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य अध्यात्म, धर्म, संस्कृति, संस्कार और समाजसेवा से जुड़े सभी कार्य पूर्णतः नि:शुल्क करते हैं। इन सेवाकार्यों को अधिक सुचारु और तीव्र बनाने हेतु उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी (आई.टी.) का सर्वोत्तम उपयोग किया है। उनके साथ 150–200 आई.टी. इंजीनियर कार्यरत हैं। उनकी सहायता से जगद्गुरुश्री ने 17 एप्लीकेशन (सॉफ्टवेयर) विकसित किए हैं, जिनकी संपूर्ण आवश्यकता-परिभाषा स्वयं जगद्गुरुश्री ने तैयार की है। इन एप्लीकेशनों में प्रयुक्त 70–80% लॉजिक भी उन्होंने स्वयं दिया है।
वे प्रतिदिन प्रातः 7 से 8 बजे तक संबंधित आई.टी. विशेषज्ञों से विकास कार्य और नई आवश्यकताओं पर चर्चा करते हैं। इन सॉफ्टवेयरों के कारण सामान्य व्यक्ति भी संप्रदाय, संस्थान और समाजसेवी संगठनों से सीधे जुड़ पाया है। इसी तकनीकी दृष्टिकोण के कारण रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ नाणीजधाम निरंतर प्रगति कर रहा है।
11. प्रकृति रक्षक-
आज विश्व ग्लोबल वार्मिंग जैसी भयंकर समस्या का सामना कर रहा है। जीव-जगत की रक्षा के लिए जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने प्रकृति संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य प्रारंभ किए हैं। उन्होंने अपने विभिन्न पीठों से पदयात्राएँ निकालकर जल-संरक्षण, वृक्षारोपण, जलाशयों का संरक्षण, प्लास्टिक का परित्याग जैसे विषयों पर जनजागरण अभियान चलाया। इन पदयात्राओं में हजारों लोग सम्मिलित होते हैं।
सन 2023 से उन्होंने अपने पीठों पर वृक्षारोपण, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, सौर ऊर्जा उत्पादन और नेट ज़ीरो उपक्रम के माध्यम से कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जन को समाप्त करने का कार्य प्रारंभ किया। अनेक स्थानोपर ग्रामस्वच्छता, मंदिर परिसर की सफाई, सार्वजनिक स्थलों का संरक्षण और कच्चे बांध बनाकर जलसंचय जैसे कार्यों में भी वे अग्रणी हैं।
12. उत्कृष्ट समाजसेवी-
प्राकृतिक आपदाओं के समय जगद्गुरुश्री स्वयं सहायता हेतु पहुँचते हैं, और उनके लाखों अनुयायी बाढ़, आग, भूकंप, कोविड-19 जैसी आपदाओं में राहत कार्य करते हैं। महाराष्ट्र के महाड, चिपलून, मुंबई और अन्य स्थलों पर उन्होंने महाप्रलय के समय सहायता पहुँचाई। कोविड-19 के दौरान उनकी अनेक एम्बुलेंस महाराष्ट्र सरकार को प्रदान की गईं। उन्होंने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री राहत कोष में करोड़ों रुपये दान किए, साथ ही अन्न, औषधि और आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराईं।
उनकी 53 एम्बुलेंस 2010 से महाराष्ट्र के राष्ट्रीय राजमार्गों पर नि:शुल्क सेवा में लगी हुई हैं। इनका मुख्य उद्देश्य सड़क दुर्घटनाओं में घायल व्यक्तियों को शीघ्र अस्पताल पहुँचाकर प्राणरक्षा करना है।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने थैलेसीमिया, सिकल सेल, ब्लड कैंसर और किडनी रोगियों के लिए प्रतिवर्ष लाखों बोतलें रक्त नि:शुल्क उपलब्ध कराई हैं। ब्लड-इन-नीड सेवा के माध्यम से हजारों रोगियों को रक्तदान कर सहायता की जाती है।
आदिवासी युवाओं को मोटर ड्राइविंग का प्रशिक्षण और लाइसेंस दिलाकर रोजगार उपलब्ध कराना भी उनके सेवाकार्यों में सम्मिलित है।
समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को संप्रदाय के माध्यम से प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में बकरियाँ, भेड़ें, गायें, भैंसें, घर-घंटियाँ, बड़े आटे की चक्कियाँ, सिलाई मशीनें, कृषि उपकरण और बीज-बियान वितरित किए जाते हैं। इस प्रकार के अनेक समाजोपयोगी कार्यों के माध्यम से जगद्गुरुश्री ग़रीब, पीड़ित और वंचित समाज को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं।
रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य वास्तव में दीन-दुखियों के उद्धार हेतु ईश्वर से प्राप्त एक विशेष वरदान हैं। उनका जीवन-दर्शन—“नेत्र विज्ञानवादी हों, मन अध्यात्मवादी हो और बुद्धि यथार्थवादी हो”—जनसामान्य को सुखमय जीवन जीने की प्रेरणा देता है। अपने उत्कृष्ट संगठन कौशल के बल पर उन्होंने लाखों अनुयायियों को एकजुट किया है। उन्हीं के माध्यम से जनसेवा की व्यापक धारा प्रवाहित कर अनेक सामाजिक सेवाएँ आरंभ की गई हैं।
“रुग्ण, पीड़ित और वंचितों की सेवा ही सच्ची ईश्वरभक्ति है”—इस हितोपदेश को आत्मसात करते हुए नरेंद्राचार्य ने जनकल्याण और उन्नति का एक महायज्ञ प्रारंभ किया है। वे अपने लाखों अनुयायियों के माध्यम से संपूर्ण प्राणीमात्र की सेवा हेतु विविध कार्य संचालित कर रहे हैं।
उनकी विशेषता यह है कि सभी सेवाकार्य पूर्णतः नि:शुल्क होते हैं और एक बार प्रारंभ होने के बाद कभी रुकते नहीं, अपितु समय के साथ उनका विस्तार ही होता है। यह तथ्य स्पष्ट संकेत करता है कि जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य पर भगवान आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य की पूर्ण कृपा और आशीर्वाद विद्यमान है।
जगद्गुरू रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजी के माध्यम से चल रहे सेवाकार्य-
1.शैक्षणिक सुविधा – सीबीएसई बोर्ड के अंतर्गत नर्सरी से बारहवीं तक अंग्रेज़ी माध्यम की विद्यालय एवं महाविद्यालय स्थापित कर ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब एवं ज़रूरतमंद बच्चों के लिए नि: शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई है।
2. वेदपाठशाला – हिंदू धर्म की सभी जातियों के युवाओं को पुरोहिताई की शिक्षा देकर न केवल उनका आर्थिक सशक्तिकरण किया जा रहा है, बल्कि धर्म की रक्षा, सशक्तिकरण तथा हिंदू धर्म की परंपराओं को जीवित रखने हेतु शास्त्रोक्त ज्ञान उपलब्ध कराया गया है।
3. कन्याओं की वेदपाठशाला – हिंदू धर्म की सभी जातियों की बालिकाओं को पुरोहिताई का शास्त्रोक्त प्रशिक्षण देकर उनके आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने और धर्म रक्षण में उन्हें सहभागी बनाने के उद्देश्य से विशेष कन्या वेदपाठशाला की स्थापना की गई है। इसके माध्यम से समाज में नारी शक्ति के सम्मान की प्रतिष्ठा भी स्थापित की गई है।
4. एम्बुलेंस सेवा – राष्ट्रीय राजमार्गों पर दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों के लिए 53 एम्बुलेंस 24 घंटे नि:शुल्क एम्बुलेंस सेवा प्रारंभ की गई है, ताकि समय पर चिकित्सा उपलब्ध कराकर उनकी प्राणरक्षा की जा सके।
5. आरोग्य शिविर – रामानंदाचार्य पीठों पर वर्ष में अनेक अवसरों पर उत्सव के कारण लाखों लोग एकत्र होते हैं। इस समय गरीब और ज़रूरतमंद लोगों के लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा विभिन्न रोगों के निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर निरंतर आयोजित किए जाते हैं।
6. व्यसनमुक्ति अभियान – दुर्व्यसनों की गिरफ्त में फँसी हुई युवा पीढ़ी को व्यसनमुक्त करने के लिए प्रतिमाह यह उपक्रम चलाया जाता है। इस प्रयास के द्वारा भारत की भावी पीढ़ी को व्यसनों से मुक्त कर उज्ज्वल भविष्य प्रदान करने की दिशा में उल्लेखनीय सेवा की जा रही है।
7. अंधश्रद्धा निर्मूलन – देश और समाज की उन्नति के लिए अंधश्रद्धा में फँसे लाखों लोगों तक पहुँचकर आध्यात्मिक प्रबोधन द्वारा उनका मनोबल बढ़ाना, उनमें आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना तथा अंधश्रद्धा का उन्मूलन कर समाज के मानसिक स्वास्थ्य को अक्षुण्ण बनाए रखने का कार्य निरंतर किया जा रहा है।
8. कृषि उपक्रम – ज़रूरतमंद और गरीब किसानों को नि: शुल्क बीज, बियान तथा कृषि उपकरण उपलब्ध कराकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने और देश के कृषक वर्ग को सशक्त करने के उद्देश्य से कृषि सेवाएँ संचालित की जाती हैं।
9. आपातकालीन सहायता – महाप्रलय, भूकंप, अकाल, महामारी अथवा कोरोना जैसी आपात स्थितियों में औषधियाँ, वस्त्र, अन्न आदि की व्यवस्था की जाती है। साथ ही प्राकृतिक प्रकोपों के बाद रोगों का प्रकोप न फैले, इसके लिए स्वच्छता हेतु श्रमदान और अन्य प्रकार की सेवाएँ अनुयायियों के माध्यम से प्रदान की जाती हैं।
10. विकलांग सेवा – समाज में दृष्टिहीन, दिव्यांग और श्रवणबाधित व्यक्तियों को छड़ी, व्हीलचेयर, कृत्रिम अंग, श्रवणयंत्र आदि उपकरण प्रदान कर उनकी सहायता की जाती है।
11. दुर्बल वर्ग का संगोपन – आर्थिक दृष्टि से दुर्बल वर्गों के लिए घर-घंटियाँ, आटा चक्कियाँ, बकरियाँ, भेड़ें, गाय-भैंसें, सिलाई मशीनें आदि उपलब्ध कराकर उनके आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में कार्य किया जाता है।
12. उपपीठों की स्थापना – भारतीय संस्कृति, उसके संस्कार और भक्ति मार्ग को व्यापक रूप से प्रसारित करने हेतु विभिन्न राज्यों में रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ नाणीजधाम के अनेक उपपीठ स्थापित किए गए हैं। इन उपपीठों के कार्यक्षेत्रों में जाकर वैदिक सनातन धर्म जागरण, मानसिक शांति, बंधुत्व और सद्गुणों का विकास सुनिश्चित किया जाता है।
13. भक्ति मार्ग का प्रचार – रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ नाणीजधाम के विभिन्न उपपीठों पर उपासना केंद्र, यात्री निवास, धर्मशालाएँ और अन्नक्षेत्र स्थापित कर समाज की मानसिक शांति और विश्वबंधुत्व की भावना को सुदृढ़ करने का कार्य निरंतर किया जा रहा है।
14. वारी उत्सव समारोह – वैदिक सनातन धर्म के उत्सव, परंपराएँ और पर्वों का महत्त्व समझाने तथा समाज में प्रेम, बंधुत्व और सौहार्द बढ़ाने हेतु प्रतिवर्ष कई बार वारी उत्सव आयोजित किए जाते हैं। इन अवसरों पर लाखों लोग एकत्र होते हैं, जिनकी सेवा हेतु आवश्यक सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
15. ग्लोबल वार्मिंग जनजागरण पदयात्रा – विश्वव्यापी ग्लोबल वार्मिंग संकट के निवारण हेतु युवाओं के माध्यम से प्रतिवर्ष “वसुंधरा पायी दिंडी” नामक पदयात्रा आयोजित की जाती है। इसमें हज़ारों लोग भाग लेते हैं। गोवा, तेलंगाना और महाराष्ट्र से प्रारंभ होकर ये पदयात्राएँ अनेक जिलों में जनजागरण करती हुई 11 सितंबर से 21 अक्टूबर तक रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ नाणीजधाम तक पहुँचती हैं। इस दौरान वृक्षारोपण और व्यापक जनजागरण का कार्य किया जाता है।
16. नेट ज़ीरो उपक्रम – पर्यावरण असंतुलन को ध्यान में रखते हुए दक्षिणपीठ नाणीजधाम के उपपीठों पर नेट ज़ीरो का लक्ष्य लेकर अनेक कार्य आरंभ किए गए हैं। इनमें वृक्षारोपण, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, सौर ऊर्जा उत्पादन, ऊर्जा प्रबंधन, अपशिष्ट नियंत्रण, जलसंचय, प्रदूषणरहित सामग्री का प्रयोग और लैंडस्केपिंग के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण शामिल हैं। इन प्रयासों से ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों को कम करने का कार्य चल रहा है।
17. हरित क्रांति सेवा – महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तेलंगाना आदि राज्यों में 1100 गाँवों को हरित ग्राम बनाने का संकल्प लिया गया है। प्रायोगिक रूप से इनमें से कुछ गाँवों में हरित क्रांति कार्यों की शुरुआत हो चुकी है।
18. आदिवासी युवकों को स्वावलंबन सिखाना – महाराष्ट्र के ठाणे और पालघर जैसे आदिवासी बहुल जिलों में युवाओं को स्व-रोज़गार उपलब्ध कराने हेतु मोटर ड्राइविंग प्रशिक्षण विद्यालय स्थापित किए गए हैं। इन संस्थानों के माध्यम से युवाओं को चालक बनने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। परिणामस्वरूप अनेक युवक अब विभिन्न वाहनों पर चालक के रूप में कार्य कर आत्मनिर्भर बन चुके हैं।
19. धर्मजागरण सेवा – भारतीय संस्कृति, उसके संस्कार, इतिहास और धर्म संबंधी शिक्षा को व्यापक बनाने के उद्देश्य से धर्मक्षेत्र नाणीजधाम मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया गया है। इसके माध्यम से धर्मजागरण का कार्य निरंतर और प्रभावी रूप से संचालित हो रहा है।
20. हिंदू नववर्ष स्वागत सेवा – हिंदू नववर्ष एवं हिंदू संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु प्रतिवर्ष महाराष्ट्र के प्रत्येक जिले में भव्य शोभायात्राओं का आयोजन किया जाता है। इन शोभायात्राओं के माध्यम से धर्म और संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाता है।
21. पादुका दर्शन समारोह – वैदिक सनातन धर्मावलंबियों को अध्यात्म, भक्ति मार्ग और उपासना से संबंधित ज्ञान प्रदान करने हेतु विभिन्न राज्यों में पादुका दर्शन समारोह आयोजित किए जाते हैं। इन आयोजनों में हजारों की संख्या में हिंदू बंधु एकत्रित होते हैं। प्रवचनों और उत्तर भारत के कुछ राज्यों में आयोजित श्रीकथा के माध्यम से व्यापक धर्मजागरण का कार्य भी संपन्न किया जाता है।
22. डिजिटल माध्यम से धार्मिक शिक्षा – जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य प्रतिदिन लाखों लोगों को डिजिटल एप्लीकेशन (एपीके) के माध्यम से सीधे अध्यात्मिक शाला के माध्यम से ज्ञान प्रदान करते हैं। इन अध्यात्मिक शाला में धर्म, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, अंधश्रद्धा-निवारण, हिंदू धर्म के सोलह संस्कार, विविध ग्रंथ आदि विषयों पर शिक्षण दिया जाता है। साथ ही, प्रश्नोत्तर के माध्यम से प्रतिभागियों की शंकाओं का समाधान कर धर्म की नींव को और सुदृढ़ किया जाता है।
आधिकारिक डिजिटल माध्यम
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23. ग्रंथ संपदा – जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वयं कवि और लेखक हैं। उन्होंने सामान्य जनोंकी समज में आए ऐसे सरल भाषा में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों की रचना की है। साथ ही, अभंगों की रचना कर समाज प्रबोधन का कार्य भी निरंतर किया है।
24. युवाशक्ति संगठन – वैदिक सनातन धर्म की रक्षा, संवर्धन और प्रचार-प्रसार हेतु रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ, नाणीजधाम के अंतर्गत 16 से 45 वर्ष आयु वर्ग के लाखों युवा-युवतियों की युवा सेना का गठन किया गया है। इसके माध्यम से युवाओं में धर्मप्रेम, देशप्रेम और समाजप्रेम जागृत किया गया है। परिणामस्वरूप, यह युवा वर्ग अपने करियर के साथ-साथ समाजहित के लिए भी विविध सेवाकार्यों में सक्रिय है।
25. नारीशक्ति संगठन – रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ, नाणीजधाम के अंतर्गत महिलाओं के लिए विशेष महिला सेना का गठन किया गया है। इसके माध्यम से धर्म, अध्यात्म और संस्कार का शिक्षण समाज में प्रसारित किया जाता है। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को आमंत्रित कर स्वास्थ्य, परिवार देखभाल, आत्मरक्षा, करियर मार्गदर्शन आदि विषयों पर मार्गदर्शन और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
26. हिंदू धर्महित रक्षा – हिंदू धर्म, संस्कृति और संस्कारों पर होने वाले अन्याय और आक्रमणों के निवारण के लिए हिंदू संग्राम सेना के माध्यम से संगठित होकर कार्य किया जाता है।
27. आध्यात्मिक ज्ञान का संरक्षण – अध्यात्म और भक्ति मार्ग का प्रचार-प्रसार करने हेतु हजारों प्रशिक्षित प्रवचनकार तैयार करने के लिए ज्ञानपीठ की स्थापना की गई है। इसके माध्यम से विभिन्न भाषाओं के प्रवचनकार समाजजागरण में सक्रिय हैं।
28. वैदिक सनातन धरोहर का संरक्षण – हिंदू धर्म के प्रत्येक कुंभ मेले में स्वास्थ्य सेवा, आपातकालीन सहायता, स्वच्छता, अन्नदान, धर्मजागरण तथा विशाल धार्मिक जागृति होर्डिंग्स के माध्यम से धर्म को सुदृढ़ और संगठित करने का कार्य किया जाता है।
29. साप्ताहिक संतसंग – हिंदू समाज को संगठित बनाए रखने हेतु हजारों गाँवों में प्रत्येक रविवार प्रातः 9 बजे साप्ताहिक डिजिटल संतसंग का आयोजन किया जाता है। इसके माध्यम से हिंदू समाज में एकता और आध्यात्मिकता का संवर्धन किया जाता है।
30. महारक्तदान कुंभ – थैलेसीमिया, सिकल सेल, ब्लड कैंसर और किडनी फेल्योर के रोगियों को रक्त की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु प्रतिवर्ष जनवरी में पंद्रह दिनों का महारक्तदान कुंभ आयोजित किया जाता है। इसके अंतर्गत लाखों यूनिट रक्त सरकार को उपलब्ध कराया जाता है। यह सेवाकार्य निरंतर जारी है।
31. आवश्यकता पड़ने पर रक्त-सहायता – समाज के गरीब एवं ज़रूरतमंद रोगियों को ऑपरेशन अथवा गंभीर रोगों के समय रक्त उपलब्ध कराने हेतु ब्लड-इन-नीड योजना चलाई जाती है। इसके अंतर्गत प्रतिवर्ष लगभग 25–30 हज़ार रोगियों को नि: शुल्क रक्त उपलब्ध कराया जाता है।
32. मर्नोपरान्न्त देहदान – समाज के उत्तम स्वास्थ्य हेतु योग्य चिकित्सकों की आवश्यकता को देखते हुए जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने स्वयं समाज से मर्नोपरान्न्त देहदान का आह्वान किया। उनके अनुयायियों ने 2016 में 56,537 आवेदन शासकीय विश्वविद्यालयों को सौंपे। तत्पश्चात सैकाडो अनुयायियों के मर्नोपरान्न्त देह विश्वविद्यालयों को दान कर चिकित्सा शिक्षा हेतु उपलब्ध कराए गए।
33. अंगदान – फरवरी 2025 में जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने समाज से अंगदान का आह्वान किया। इसके प्रत्युत्तर में अनेक लोगों ने मर्नोपरान्न्त नेत्र, त्वचा और अन्य अंग दान कर इस सेवा को गति प्रदान की।
34. हिंदू धर्म पुनःप्रवेश – विभिन्न प्रलोभनों के कारण अन्य धर्मों में चले गए हिंदू बंधुओं को घर वापसी अभियान के अंतर्गत पुनः सनातन धर्म में लाया गया है। अब तक 1,52,354 परिवार पुनः हिंदू धर्म में सम्मिलित हुए हैं और उनके सामाजिक जीवन को व्यवस्थित करने हेतु 15,400 विवाह संपन्न कराए गए हैं।
35. आध्यात्मिक दीक्षा – रज और तम गुणों को क्षीण कर सत्वगुण को बढ़ाने के उद्देश्य से लाखों श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक दीक्षा दी गई है। इस दीक्षा के माध्यम से उन्हें भक्ति मार्ग पर लगाया गया है और संदेश दिया गया है— “प्रपंच करते हुए परमार्थ भी करो; इस बुद्धिमान मानवी शरीर का उपयोग आत्मस्वरूप की पहचान के लिए करो।” प्रतिमाह बड़े पैमाने पर आयोजित दीक्षा समारोहों में अनेक लोग सन्मार्ग पर अग्रसर होते हैं।
36. धर्म जागृति मेले – विभिन्न सार्वजनिक स्थलों पर आयोजित जन-कार्यक्रमों में, हिंदू धर्मगुरु के रूप में उपस्थित होकर धर्म, संस्कृति, संस्कार और धर्माभिमान को जागृत करने हेतु उद्बोधन दिया जाता है। वर्ष भर अनेक स्थानों पर ऐसे कार्यक्रमों में स्वयं रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजी उपस्थित रहते हैं और समाज का मार्गदर्शन करते हैं।
37. ग्राम स्वच्छता अभियान – शारीरिक शुद्धि के साथ-साथ आसपास का स्वच्छ वातावरण बनाए रखना भी आवश्यक है। स्वच्छता से रोगों का निवारण होता है और स्वस्थ एवं प्रसन्न जीवन संभव होता है। इसी उद्देश्य से उनके अनुयायी प्रतिवर्ष हजारों गाँवों में ग्राम स्वच्छता अभियान चलाकर सफाई कार्य करते हैं।
38. करियर मार्गदर्शन – प्रायः दसवीं या बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण करने वाले विद्यार्थियों को यह समझ नहीं आता कि उनके उज्ज्वल भविष्य हेतु कौन-सा अकादमिक अध्ययन उपयुक्त रहेगा। इस स्थिति में रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ, नाणीजधाम की ओर से विशेषज्ञों के माध्यम से करियर मार्गदर्शन सत्र आयोजित किए जाते हैं, जिससे युवाओं को सही दिशा मिल सके।
39. विविध सॉफ़्टवेयर विकास – रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य सदैव उपदेश देते हैं—“नेत्र विज्ञानवादी रखें, मन अध्यात्मवादी और बुद्धि यथार्थवादी।” इसी भाव से उन्होंने अध्यात्म, विज्ञान और व्यवहार का समन्वय कर असंख्य सेवाकार्य आरंभ किए हैं। इन कार्यों को त्रुटिरहित, विस्तारपूर्वक और अनुशासित रूप से संचालित करने हेतु उनके आई.टी. क्षेत्र के अनुयायियों द्वारा 18 विशेष सॉफ़्टवेयर विकसित किए गए हैं। इन सॉफ़्टवेयरों की संपूर्ण आवश्यकता-परिभाषा (रिक्वायरमेंट) स्वयं नरेंद्राचार्यजी द्वारा दी गई है, और विशेष तथ्य यह है कि इनमें प्रयुक्त 70–80% लॉजिक भी उन्होंने स्वयं प्रदान किया है।
40. विविध डिजिटल माध्यम – रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य का दृष्टिकोण सदैव विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय से समाज की नि: शुल्क सेवा करना रहा है। इस सेवा को अधिक व्यापक और समाजोपयोगी बनाने के लिए उनके अनेक अनुयायी विभिन्न डिजिटल और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से सक्रियतापूर्वक कार्य कर रहे हैं।
41. माँ नर्मदा परिक्रमा सेवा – सनातनी श्रद्धालु भक्त पदयात्रा कर माँ नर्मदा परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा मार्ग पर अलीबुजुर्ग–सनावद–खरगोन (मध्यप्रदेश) क्षेत्र में उपपीठ स्थापित कर यात्रियों के लिए नि: शुल्क चाय, नाश्ता, दोपहर और रात्रि का भोजन तथा आवास की सुविधा प्रदान की जा रही है।
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजी के सम्मान
वर्ष 2000 में अखिल भारतीय मराठा महासंघ के अध्यक्ष श्री शशिकांत पवार के करकमलों से पूज्य नरेंद्राचार्यजी को “शिवतेज पुरस्कार” प्रदान किया गया।
11 अप्रैल 2004 को उज्जैन, मध्यप्रदेश में अखिल भारतीय षड्दर्शन अखाड़ा परिषद एवं राम जन्मभूमि पुनरोद्धार समिति, हनुमानगढ़ी, अयोध्या के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री महंत ग्यानदासजी महाराज द्वारा पूज्य नरेंद्राचार्यजी को “धर्माचार्य” एवं “पीठाधीश्वर” की उपाधियों से अलंकृत किया गया।
21 अक्टूबर 2005 को अयोध्या में, अखिल भारतीय षड्दर्शन अखाड़ा परिषद के प्रमुख, वैष्णव संप्रदाय के सभी अखाड़ों, उप-अखाड़ों, चतुःसंप्रदाय और खालसों की उपस्थिति में, जगद्गुरु रामानंदाचार्य हरीयाचार्यजी द्वारा पूज्य नरेंद्राचार्यजी को “जगद्गुरु रामानंदाचार्य” पद पर प्रतिष्ठित किया गया।
26 मई 2008 को स्वतंत्र वीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक, मुंबई की ओर से, उन्हें “समाजसेवा पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।
5 दिसंबर 2008 को शिवप्रतापगढ़ उत्सव समिति की अध्यक्षा श्रीमती विजया राजे भोसले के द्वारा, वाई (सातारा) में उन्हें “वीर जीवा महाला पुरस्कार” प्रदान किया गया।
25 मई 2009 को मुंबई में विनायक सावरकर के पौत्र श्री विक्रम सावरकर के द्वारा उन्हें “वीर सावरकर पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।
20 फरवरी 2010 को शिव प्रतिष्ठान, कोल्हापुर के अध्यक्ष भिड़े गुरुजी द्वारा उन्हें “राष्ट्रसंत” की उपाधि प्रदान की गई।
20 अगस्त 2010 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक माननीय डॉ. मोहनराव भागवत जी के करकमलों से उन्हें “धर्माचार्य ब्रह्मचारी विश्वनाथजी पुरस्कार” प्रदान किया गया।
14 अप्रैल 2012 को JNMG Foundation Inc., America की ओर से, अंतरराष्ट्रीय बंधुता, शांतिपूर्ण और तनावमुक्त जीवन संदेश सम्पूर्ण विश्व को प्रदान करने हेतु, उन्हें नासाऊ काउंटी एग्ज़िक्यूटिव एडवर्ड पी. मंगानो के द्वारा सम्मानित किया गया। इसकी विशेष दखल अमेरिका के न्यू जर्सी विधान सभा ने 15 अप्रैल 2012 को प्रस्ताव पारित कर स्वागत स्वरूप दी।
23 दिसंबर 2016 को श्रीमद् जगद्गुरु शंकराचार्य श्री वासुदेवानंद सरस्वती, ज्योर्तिमठ बद्रीनाथ के करकमलों से उन्हें “धर्मसंस्कृति महाकुंभ पुरस्कार” प्रदान कर उनके सामाजिक कार्य का सम्मान किया गया।
14 जून 2022 को महाराष्ट्र राज्य रक्त संक्रमण परिषद की ओर से, तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री श्री राजेश टोपे जी के करकमलों से उन्हें “राज्यस्तरीय रक्तदाता गौरव सम्मान” से अलंकृत किया गया।
14 फरवरी 2025 को अखिल भारतीय मराठा महासंघ द्वारा उन्हें “मराठा समाजरत्न पुरस्कार” प्रदान कर सम्मानित किया गया।
20 फरवरी 2025 को महाराष्ट्र रक्त संक्रमण परिषद की ओर से उन्हें “राज्यस्तरीय रक्तदाता गौरव सम्मान” पुनः प्रदान किया गया। लगभग प्रतिवर्ष महाराष्ट्र रक्त संक्रमण बैंक द्वारा राज्यस्तरीय पुरस्कार से उनका सम्मान किया जाता रहा है।
14 जून 2025 को विश्व रक्तदाता दिवस के अवसर पर इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी की ओर से, तेलंगाना राज्य के महामहिम राज्यपाल श्री जिष्णु देव वर्मा के शुभहस्तों से उन्हें विशेष पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया।
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य द्वारा सामाजिक सेवा हेतु स्थापित संस्थान जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य का विभिन्न क्षेत्रों में अत्यधिक कार्य है। इन कार्यों को करने हेतु उनकी अनेक संस्थाएँ हैं, उनमें से जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान सामाजिक कार्य हेतु स्थापित की गई संस्था है, जिसका उद्देश्य सभी प्राणिमात्रों की स्थिरता, उन्नति, प्रगति और शांति के लिए सेवा कार्य करना है।
भारत के दूरदराज़ के गाँवों से लेकर शहरी क्षेत्रों के गरीब, जरूरतमंद, दीन-दुबले लोगों तथा प्राणियों की निःशुल्क विभिन्न प्रकार की सेवाएँ निरंतर जारी रखने के लिए यह एक शासन-मान्य पंजीकृत संस्था है। प्रारंभ में एफ. 995/1991 इस नंबर से पंजीकरण कर संस्थान की स्थापना की गई।
इस कार्य का विस्तार संपूर्ण रत्नागिरि ज़िले में बढ़ने लगा। परंतु एफ. 995 संस्था का कार्यक्षेत्र सीमित होने के कारण कार्य की व्यापकता बढ़ाने में कठिनाइयाँ आने लगीं। इसलिए दिनांक 13/04/1994 को माननीय सहायक धर्मादाय आयुक्त कार्यालय में ई/694 नंबर से जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान की स्थापना हुई।
इस ट्रस्ट का कार्यक्षेत्र संपूर्ण भारत देश है। इस संस्थान के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य, आपातकालीन सहायता, कृषि, प्राणिमात्रों का संगोपन, दुर्बल घटकों का लालन-पालन, सामाजिक जनजागृति, अंधविश्वास निर्मूलन, नशामुक्ति, दहेज उन्मूलन, सामाजिक सुविधाएँ, पर्यावरण का संरक्षण–संतुलन एवं संवर्धन, सामाजिक ऋणानुबंध, धार्मिक–आध्यात्मिक जनजागरण, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक वास्तु, स्थल, स्मारकों का संरक्षण आदि उपक्रम संस्था द्वारा चलाए जा रहे हैं।
महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, जम्मू, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों में इस संस्थान का सेवाकार्य पूरे उत्साह से चल रहा है।
जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान के उपक्रम
१. अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालय एवं कॉलेज
अत्यंत दुर्गम क्षेत्रों के ग़रीब एवं निर्धन परिवारों के बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम से निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने दिनांक २० अगस्त २००९ से संपूर्ण सुविधाओं से युक्त एक शैक्षणिक संस्थान की स्थापना की।
यह संस्थान शासन की ओर से एक भी रुपये की सहायता प्राप्त किए बिना नर्सरी से लेकर ग्रेजुएशन तक सी.बी.एस.ई. बोर्ड की शिक्षा पूर्णतः निःशुल्क उपलब्ध करा रहा है। इस संस्थान की स्थापना के समय से ही प्रतिवर्ष दसवीं और बारहवीं कक्षा का परिणाम १००% आ रहा है।
संस्थान सभी सुविधाओं से सुसज्ज है –
-- आधुनिक प्रयोगशालाएँ,
-- कंप्यूटर लैब,
-- स्मार्ट क्लासरूम,
-- विभिन्न खेलों में दक्षता प्राप्त करने हेतु उच्च कोटि की खेल सामग्री।
विद्यार्थियों ने जिला तथा राज्य स्तर की अनेक क्रीड़ा और कला प्रतियोगिताओं में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की है।
इस संस्थान से केवल पुस्तक–ज्ञान ही नहीं दिया जाता, बल्कि विद्यार्थियों को सुसंस्कृत जीवन जीने हेतु आध्यात्मिक संस्कारों का वैज्ञानिक महत्व भी सिखाया जाता है। यह शैक्षणिक संस्थान वेद विज्ञान सिद्धांत पर आधारित है।
अतः नीतिमूल्यों का पालन करते हुए एक आदर्श भारतीय नागरिक तैयार करना ही जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य का ध्येय है। इस संस्थान से निकलने वाले सभी विद्यार्थी समाज के लिए आदर्श सिद्ध हों तथा धर्म एवं संस्कृति की रक्षा करें – यही दिशा इस संस्थान का मूल उद्देश्य है।
अन्य शैक्षणिक सेवाएँ
-- समाज के ग़रीब एवं ज़रूरतमंद विद्यालयीन विद्यार्थियों को लाखों कॉपियों का प्रतिवर्ष निःशुल्क वितरण किया गया है। अब तक कई लाख कॉपियाँ वितरित की जा चुकी हैं।
-- निर्धन विद्यार्थियों को निःशुल्क गणवेश भी प्रतिवर्ष वितरित किए जाते हैं और अब तक इसका बड़े पैमाने पर वितरण हो चुका है।
-- ज.न.म. संस्थान की दत्तक पालक योजना के अंतर्गत विद्यालयीन बच्चों को दत्तक लेकर उनकी शिक्षा का पूरा व्यय संस्थान द्वारा किया गया है। उक्त विद्यार्थियों के विद्यालयों के माध्यम से दत्तक पालक योजना की राशि संस्थान को सुपुर्द की जाती है।
-- पूर्व में संस्थान की ओर से अति दुर्गम क्षेत्रों में निःशुल्क बालवाड़ियाँ (बाल आंगनवाड़ियाँ) चलाई जाती थीं।
-- मूक–बधिर बच्चों के विद्यालय को ज.न.म. संस्थान प्रतिवर्ष अनुदान प्रदान करता है।
-- संस्थान की ओर से हजारों ग़रीब एवं ज़रूरतमंद विद्यार्थियों तथा ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों के विद्यालयों को कंप्यूटर शिक्षा देने के लिए कंप्यूटरों का निःशुल्क वितरण किया गया है।
-- ग्रामीण एवं आदिवासी विद्यालयों को शैक्षणिक सामग्री का निःशुल्क वितरण किया जाता है।
-- विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों को समय–समय पर आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाती है।
इन सभी कार्यों के अंतर्गत जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान के द्वारा अनेक शैक्षणिक उपक्रम संचालित किए जाते हैं।
२. बच्चों के लिए वेदपाठशाला
किसी भी धर्म के स्थायित्व के लिए आवश्यक है कि उस धर्म में प्राचीनकाल से चली आ रही उपासना पद्धतियाँ, प्रथाएँ, विविध प्रकार के विधि–विधान, पर्व–उत्सव, व्रत–वैकल्य आदि परंपराएँ सुरक्षित रहें। इन्हीं के माध्यम से धर्म की वीण सुदृढ़ होकर धर्म के प्रति जागरूकता उत्पन्न होती है। जिन धर्मों में इन बातों को महत्व नहीं दिया गया, वे कालांतर में लुप्त हो गए हैं।
वर्तमान समय में हिंदू धर्म के संस्कार भी धीरे–धीरे नष्ट होते जा रहे हैं, क्योंकि इनका ज्ञान प्रदान करने हेतु समाज में पुरोहितों की संख्या अत्यंत अल्प हो चली है। परिणामस्वरूप धर्म के समक्ष एक बड़ा संकट उत्पन्न हो रहा है।
इस गंभीर परिस्थिति को पहचानकर जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने दिनांक २५ जुलाई २०१० से कवी कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय, रामटेक (नागपुर) से संलग्न “आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य वेदपाठशाला” की स्थापना नाणीजधाम में की।
इस पाठशाला में अध्ययनरत बच्चों को पाठ्यपुस्तकें, गणवेश, निवास तथा भोजन की संपूर्ण व्यवस्था सहित सभी शैक्षणिक व्यय संस्थान की ओर से पूर्णतः निःशुल्क किया जाता है।
इस वेदपाठशाला में हिंदू धर्म के सभी जाति–बंधुओं के बच्चों को वैदिक पौरोहित्य का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें –
-- अनुष्ठान,
-- पूजाअर्चा,
-- हिंदू धर्म के १६ संस्कार,
-- विविध धार्मिक विधि–विधान,
-- शांति–विधियाँ,
के साथ–साथ नीतिमूल्यों का ज्ञान भी प्रदान किया जाता है।
अब तक इस वेदपाठशाला से अनेक बैच पूर्ण कर चुके हैं तथा सैकड़ों पुरोहित तैयार कर जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने हिंदू धर्म के संरक्षण और संवर्धन का कार्य व्यापक रूप से प्रारंभ किया है।
३. विशेष रूप से बालिकाओं हेतु वेदपाठशाला
रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य प्रगतिशील तथा क्रांतिकारी विचारों के आचार्य हैं। वे जिस रामानंदाचार्य पीठ के उत्तराधिकारी हैं, उस पीठ के संस्थापक भगवान आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य की विचारधारा सदैव समाज के कल्याण हेतु रही है।
ई.स. १३वीं शताब्दी (सन् १३००) में भगवान आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने सामाजिक समता का उद्घोष करते हुए मुस्लिम समाज के संत कबीर, चर्मकार समाज के संत रैदास, क्षत्रिय समाज के संत पीपादास के साथ–साथ संत पद्मावती एवं संत सुरासुरी जैसी महिला शिष्याओं का उद्धार किया।
उन्होंने स्पृश्य–अस्पृश्य, सोवळे–ओवळे जैसी अनेक परंपराओं को तोड़ते हुए हिंदू धर्म की प्रत्येक जाति का सम्मान किया। उस समय महिलाओं को शिष्य बनाना अकल्पनीय था, किंतु समाज–उत्थान के कार्य हेतु उन्होंने यह क्रांतिकारी कदम उठाया।
उसी रामानंदाचार्य पीठ के उत्तराधिकारी जगद्गुरु नरेंद्राचार्य हैं। भगवान आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य तथा वर्तमान जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य – दोनों की विचारधारा एक ही है: समाज का उत्थान।
इसी प्रेरणा एवं संकल्पना के आधार पर जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ नाणीजधाम के मराठवाड़ा उपपीठ में दिनांक ०७ जुलाई २०२५ से कवी कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय, रामटेक, नागपुर से संलग्न “जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य वेदपाठशाला, मराठवाड़ा” (विशेष रूप से बालिकाओं हेतु) प्रारंभ की।
इस पाठशाला में छात्राओं को हायर डिप्लोमा इन पौरोहित्य की उपाधि प्राप्त करने का अवसर है। यहाँ की सभी छात्राओं को गणवेश, निवास, भोजन, पाठ्यपुस्तकें, विश्वविद्यालय की फ़ीस तथा शिक्षा की संपूर्ण व्यवस्था संस्थान की ओर से पूर्णतः निःशुल्क उपलब्ध है।
भविष्य में इन बालिकाओं को पौरोहित्य के माध्यम से आर्थिक आजीविका के पर्याप्त अवसर प्राप्त होंगे। यह बालिकाओं की वेदपाठशाला स्त्री–सशक्तिकरण की दिशा में जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजी द्वारा उठाया गया ठोस, क्रियाशील एवं क्रांतिकारी कदम है।
विधि–विधान, व्रत–वैकल्य और पूजाअर्चा के माध्यम से हिंदू धर्म की रक्षा तथा संवर्धन का कार्य इस उपक्रम से और अधिक प्रबलता से आगे बढ़ेगा।
४. महामार्गों पर दुर्घटनाग्रस्तों हेतु एम्बुलेंस सेवा
“जग में जिसका कोई नहीं, उसका भगवान है” – यह उक्ति जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान की एम्बुलेंस सेवा को देखकर पूर्णतया सार्थक प्रतीत होती है।
राष्ट्रीय महामार्गों पर यदि किसी प्रकार की दुर्घटना घटित होती है, तो कुछ ही मिनटों में रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य की निःशुल्क एम्बुलेंस सेवा की गाड़ी वहाँ पहुँचकर तत्परता से सहायता उपलब्ध कराती है।
दुर्घटना–ग्रस्त व्यक्ति को सुरक्षित उठाकर तुरंत समीपवर्ती अस्पताल तक पहुँचाना तथा उसका प्राण बचाना – यही इस एम्बुलेंस सेवे का एकमात्र ध्येय है। इसी उद्देश्य से दिनांक २५ जुलाई २०१० से महाराष्ट्र राज्य के सभी राष्ट्रीय महामार्गों पर यह सेवा प्रारंभ की गई।
यह सेवा पूर्णतः निःशुल्क है और प्रतिदिन २४ घंटे उपलब्ध रहती है। वर्तमान में ५३ एम्बुलेंस समाजसेवा के इस कार्य में निरंतर सक्रिय हैं।
अब तक इस सेवे के माध्यम से २७ हज़ार से अधिक दुर्घटनाग्रस्त लोगों का जीवन बचाया जा चुका है।
समाज के विभिन्न स्तरों से जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य की इस निःशुल्क एम्बुलेंस सेवा की प्रशंसा एवं सराहना बारंबार की जाती है।
५. विभिन्न रोगों हेतु निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर
जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान के नाणीजधाम, मराठवाड़ा, गोवा तथा मुंबई स्थित पीठों पर प्रतिवर्ष वारी उत्सव आयोजित किए जाते हैं। इन उत्सवों में लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति रहती है। साधारणतः वर्षभर में सात वारी उत्सव संपन्न होते हैं।
इन अवसरों पर विभिन्न रोगों के विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा रोगियों की निःशुल्क जाँच की जाती है तथा आवश्यक औषधियाँ निःशुल्क प्रदान की जाती हैं।
इतना ही नहीं, प्रतिदिन नाणीजधाम में नियमित रूप से निःशुल्क औषधोपचार सेवा भी संचालित की जाती है, जिससे ग़रीब और ज़रूरतमंद रोगियों को सीधी सहायता प्राप्त हो सके।
६. व्यसनमुक्ति – नवजीवन की दिशा
भारत को युवाओं का देश कहा जाता है। किंतु दुर्भाग्यवश अदृश्य नकारात्मक शक्तियाँ युवाओं को विभिन्न प्रकार के व्यसनों के जाल में फँसाकर राष्ट्र की प्रगति में बाधा उत्पन्न कर रही हैं। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में युवा धीरे–धीरे नशे की लत में फँसते जा रहे हैं।
इस गंभीर सामाजिक समस्या की गहनता को समझकर जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने सन् १९९२ से “व्यसनमुक्ति अभियान” प्रारंभ किया।
इस उपक्रमांतर्गत युवाओं को उनकी जिम्मेदारियों का भान कराने हेतु अत्यंत प्रभावी समुपदेशन (काउंसलिंग) किया जाता है। अब तक लगभग चार से पाँच लाख युवाओं को दारू जैसे घातक व्यसनों से मुक्त किया जा चुका है।
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य के प्रेरक प्रभाव से व्यसनमुक्त हुए लाखों युवक आज अपने परिवार और जीवन का सुचारु रूप से संचालन कर रहे हैं। उनके परिवारों में समाधान और आनंद का वातावरण है। इतना ही नहीं, व्यसन में बरबाद हुए अनेक युवक सुधरकर आज उच्च पदों पर कार्यरत हैं, तो कुछ सफल उद्यमी भी बने हैं।
निर्व्यसनी युवा ही राष्ट्र का भविष्य हैं – इस गहन सत्य को समझकर जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने इन युवाओं को अपना मित्र बनाकर समाजोपयोगी सेवाकार्य में प्रवृत्त किया है।
इनमें प्रमुख रूप से –
-- मृत्युपश्चात देहदान और अवयवदान,
-- ब्लड–इन–नीड अभियानांतर्गत रक्तदान,
-- ब्लड कैंसर और थैलेसीमिया जैसे रोगियों हेतु आवश्यक रक्त का संकलन,
-- पर्यावरण संवर्धन,
कुंभमेले में स्वच्छता अभियान
आदि सेवाएँ सम्मिलित हैं।
इस प्रकार व्यसनमुक्ति के माध्यम से केवल युवाओं को नशे से दूर नहीं किया गया, बल्कि उन्हें समाजहितकारी कार्यों से जोड़कर राष्ट्रनिर्माण की दिशा में अग्रसर किया गया है।
७. अंधश्रद्धा निर्मूलन
आज विश्व एकविसवीं शताब्दी में प्रवेश कर विज्ञानवादी बन चुका है। जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य का मत है कि विज्ञान के बिना भौतिक प्रगति संभव नहीं, भौतिक प्रगति के बिना सामान्य मनुष्य को आनंद प्राप्त नहीं होता और आनंद के बिना मनुष्य व्यवहारिक दृष्टि से सुखी नहीं हो सकता।
अतः वे सदैव उपदेश देते हैं – “अपनी आँखें विज्ञानवादी रखें, मन को अध्यात्मवादी बनाएँ और बुद्धि को यथार्थवादी रखें। इस त्रिसूत्री के आधार पर जीवन जीने से व्यवहारिक संसार में सुख और संतोष प्राप्त होगा।”
यद्यपि विज्ञान आज अत्यंत उन्नत हो चुका है, फिर भी समाज में विज्ञान और अध्यात्म का संतुलित सम्यक् ज्ञान न होने के कारण अंधश्रद्धाओं को बढ़ावा देने वाले लोग प्रचुर मात्रा में सक्रिय हैं। भोले–भाले, श्रद्धालु व्यक्ति इन अंधविश्वासों के चंगुल में फँसकर अपना जीवन नष्ट कर लेते हैं।
इन्हें अंधश्रद्धा से मुक्त कराने हेतु जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने सन् १९८९ से “अंधश्रद्धा निर्मूलन अभियान” प्रारंभ किया। इस उपक्रमांतर्गत अब तक करोड़ों लोगों को अंधविश्वास की गर्त से बाहर निकाला गया है।
संस्थान द्वारा आध्यात्मिक प्रबोधन एवं जनजागरण के माध्यम से –
-- अनिष्ट रूढ़ियाँ,
-- अंधश्रद्धाओं में फँसे लोग,
-- अनुचित परंपराएँ
इन सभी को विज्ञान, अध्यात्म और व्यवहार की समन्वित दृष्टि से जीवन जीने का मार्गदर्शन प्रदान किया गया है।
इस प्रकार, अंधश्रद्धा निर्मूलन अभियान के द्वारा समाज में वैज्ञानिक चेतना, आध्यात्मिक प्रबोधन और व्यवहारिक विवेक का संगम स्थापित किया जा रहा है।
८. कृषि उपक्रम
जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान द्वारा समय–समय पर किसानों के हितार्थ विशेष कृषि उपक्रम संचालित किए जाते हैं।
इस अंतर्गत –
-- किसानों को सुधारित एवं आधुनिक कृषि–तंत्रज्ञान की जानकारी उपलब्ध कराने हेतु संस्थान द्वारा कृषि शिविरों का आयोजन किया जाता है।
-- विभिन्न प्रवचन एवं दर्शन–सोहळों में किसानों को बीज (बी–बियाणे) निःशुल्क वितरित किए जाते हैं।
-- किसानों को खेती के लिए आवश्यक विभिन्न कृषि उपकरण भी प्रदान किए जाते हैं।
याशिवाय, “पानी अडवा, पानी जिरवा” (पानी रोकें, पानी बचाएँ) इस अभियान के अंतर्गत जल–संधारण के लिए जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य के अनुयायियों के माध्यम से विभिन्न स्थानों पर कच्चे बाँध (बंधारे) बांधने का कार्य भी किया जाता है।
इस प्रकार कृषि उपक्रमों के माध्यम से किसानों के जीवन की उन्नति, उत्पादन में वृद्धि तथा जल–संवर्धन का महत्वपूर्ण कार्य संस्थान निरंतर कर रहा है।
९. आपातकालीन सहायता कार्य
प्राकृतिक आपदाओं जैसे – महापूर (भीषण बाढ़), दुष्काल (अकाल), महामारी तथा भूकंप के समय जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य के हजारों अनुयायी सदैव पीड़ितों की सहायता हेतु तत्पर रहते हैं। ऐसे अवसरों पर वे अन्नधान्य, औषधियाँ, वस्त्र एवं स्वच्छता सामग्री लेकर तुरंत प्रभावित क्षेत्रों में पहुँचते हैं।
-- दिनांक २६ जुलाई २००५ को कोंकण विभाग के चिपळूण क्षेत्र में आई भीषण बाढ़ की घटना के समय स्वयं जगद्गुरु नरेंद्राचार्यजी पीड़ित परिवारों तक पहुँचकर प्रत्यक्ष सहायता कार्य में सम्मिलित हुए।
-- महाराष्ट्र शासन के आपत्कालीन मदतनिधि में भी संस्थान की ओर से समय–समय पर लाखों रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती रही है।
कोविड–१९ महामारी के समय:
-- कोरोना रोगियों के परिवहन हेतु कई एम्बुलेंस महाराष्ट्र शासन को उपलब्ध कराई गईं।
-- मुख्यमंत्री सहायता कोष तथा प्रधानमंत्री राहत कोष में कोट्यवधी (करोड़ों) रुपये दान किए गए।
-- कोरोना काल में शासकीय अधिकारियों की सुरक्षा के लिए आवश्यक उपकरण प्रदान कर उनका मनोबल बढ़ाया गया।
-- महामारी से प्रभावित अनेक निर्धन परिवारों तक नियमित रूप से अन्नधान्य का वितरण किया गया।
-- लोगों में निराशा और भय की स्थिति दूर करने हेतु जगद्गुरु नरेंद्राचार्यजी ने लगातार दो वर्षों तक प्रतिदिन प्रातः सोशल मीडिया के माध्यम से धैर्य, साहस और मानसिक शक्ति (Willpower) का संदेश दिया।
इतिहास–साक्षी अन्य सहायता कार्य:
-- गुजरात भूकंप (भुज) के समय संस्थान द्वारा सहायता।
-- त्सुनामी आपदा के समय तथा महाराष्ट्र, गोवा एवं कोंकण में आए महापुर में भी व्यापक मदतनिधि।
-- सन २०१३ में महाराष्ट्र में आए भीषण दुष्काल के समय जनावरों को चारा–पानी उपलब्ध कराने हेतु हजारों टन चारे का वितरण।
-- सन २०२१ के महापुर में पीड़ित परिवारों को अन्न, वस्त्र, बर्तन तथा जीवनोपयोगी वस्तुएँ उपलब्ध कराई गईं।
-- २२ जुलाई २०२१ को महाड–पोलादपूर (जिला रायगढ़) में महापुर एवं भूस्खलन की आपदा के समय संस्थान की ओर से स्वच्छता अभियान, अन्नधान्य व जीवनोपयोगी वस्तुओं का वितरण, चिकित्सीय सहायता इत्यादि सुविधाएँ प्रदान की गईं।
इस सामाजिक कार्य की दखल लेकर दिनांक १५ अगस्त २०२१ को रायगढ़ जिलाधिकारी कार्यालय की ओर से माननीय पालकमंत्री आदितीताई तटकरे के कर–कमलों द्वारा संस्थान को सम्मानपत्र प्रदान कर गौरवित किया गया।
१०. चिकित्सकीय उपक्रम
जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान ग़रीब एवं ज़रूरतमंद रोगियों की सहायता के लिए निरंतर कार्यरत है। विशेषतः जिन रोगियों को शल्य–चिकित्सा (ऑपरेशन) की आवश्यकता होती है, उन्हें संस्थान की ओर से नियमित रूप से आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।
संस्थान द्वारा निःशुल्क वितरित की जाने वाली सुविधाएँ:
-- श्रवणयंत्र,
-- बैसाखियाँ,
-- कृत्रिम अंग,
-- अपंगों हेतु तीन–पहिया साइकिलें, आदि।
कोविड–१९ महामारी काल में संस्थान की ओर से विशेष कार्य:
-- रुग्णवाहिका (एम्बुलेंस) एवं अन्य चिकित्सकीय सुविधाओं की उपलब्धता।
-- दिनांक १ अप्रैल २०२० – माननीय मुख्यमंत्री सहायता कोष हेतु ५० लाख रुपये आर्थिक मदतनिधि।
-- दिनांक ३० अप्रैल २०२० – माननीय प्रधानमंत्री सहायता कोष हेतु ५२ लाख रुपये आर्थिक मदतनिधि।
-- रत्नागिरी जिला पुलिस सहायता कोष हेतु २० लाख रुपये की मदतनिधि।
इसके अतिरिक्त, कोविड–१९ प्रभावित क्षेत्रों में:
-- कोविड केंद्रों की स्थापना।
-- सार्वजनिक स्थलों पर सेनेटाइज़र मशीनें, मास्क, हैंडग्लव्स आदि का निःशुल्क वितरण।
इस प्रकार संस्थान ने चिकित्सा क्षेत्र में भी समाजहित के लिए समयानुकूल व आवश्यक सेवाएँ उपलब्ध कराईं।
११. दुर्बल घटकों को सहायता
हिंदू धर्म का समय–समय पर जनजागरण करने के लिए जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य स्वयं गाँव–गाँव जाकर विभिन्न उपक्रमों के माध्यम से पहुँचते हैं। उन अवसरों पर ग़रीब एवं ज़रूरतमंद समाज की विविध आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अलग–अलग आर्थिक स्तर के व्यक्तियों एवं परिवारों को गाएँ–भैंसें, बकरियाँ–मेंढियाँ, कपड़ा सिलाई मशीनें, आटा चक्की (पीठ गिरनी) आदि साधन प्रदान कर हजारों परिवारों को रोजगारक्षम बनाया गया है।
किसान आत्महत्या रोकने के उद्देश्य से:
-- किसानों में जागरूकता अभियान चलाया गया,
-- आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान की गई,
-- अन्य किसानों को बीज–बियाणे और कृषि उपकरणों का निःशुल्क वितरण किया गया।
इस प्रकार अनेक किसानों का जीवन सँवारा गया है।
स्वावलंबन को प्रोत्साहित करने के लिए सतत् एवं क्रियाशील सहायता कार्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजी के मार्गदर्शन में निरंतर जारी है।
संस्थान की ओर से प्रतिवर्ष ८० से ९० लाख रुपये समाज के दुर्बल घटकों की सेवा हेतु व्यय किए जाते हैं।
१२. पीठों की स्थापना
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य का मानवतावादी संदेश है – “तुम जियो और दूसरों को भी जीने दो।”
इसी संदेश के अनुरूप ग़रीब, पीड़ित और ज़रूरतमंद व्यक्तियों को विविध प्रकार की सहायता पहुँचाने तथा उनसे संपर्क सरल बनाने के उद्देश्य से रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ, नाणीजधाम को मुख्य पीठ के रूप में स्थापित किया गया है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित स्थानों पर उपपीठों की स्थापना की गई है –
-- गोवा
-- मराठवाड़ा
-- मुंबई
-- पश्चिम महाराष्ट्र (पुणे)
-- उत्तर महाराष्ट्र (नाशिक)
-- पश्चिम विदर्भ (शेगांव, बुलढाणा)
-- पूर्व विदर्भ (नागपुर)
-- तेलंगाना (कामारेड्डी)
-- ओंकारेश्वर (मध्यप्रदेश)
-- छत्तीसगढ़ (दुर्ग)
-- गुजरात (बडोदा)
इन सभी पीठों के माध्यम से –
-- अध्यात्मिक तथा धार्मिक ज्ञान प्रदान किया जाता है।
-- वारी उत्सव आयोजित किए जाते हैं।
इन उत्सवों में लगभग डेढ़ से दो लाख श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। वारी उत्सवों के माध्यम से धर्म, अध्यात्म, संस्कृति, एकात्मता और मानवता जैसे विषयों पर व्यापक प्रबोधन किया जाता है।
विशेष उल्लेखनीय यह है कि इन कार्यक्रमों में सभी जाति–धर्मों के लोग अत्यंत आत्मीयता और सक्रियता से सहभागी बनते हैं।
१३. यात्रीनिवास
जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान द्वारा श्रद्धालुओं एवं यात्रियों की मनःशांति और सुविधाजनक प्रवास हेतु उचित व्यवस्था की गई है।
संस्थान के मुख्य पीठ नाणीजधाम में आगंतुक श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत कम सेवा शुल्क पर निवास की सुविधा उपलब्ध है।
मुख्य सुविधाएँ:
-- कुल २८३ कमरे, जिनमें संलग्न शौचालय एवं स्नानगृह की व्यवस्था है।
-- यात्रियों की सुविधा हेतु निर्मित १० विशाल हॉल, जिनमें १०८० बंक–बेड के साथ शौचालय और स्नानगृह की सुविधा उपलब्ध है।
-- इसके अतिरिक्त अनेक धर्मशालाएँ भी निर्मित की गई हैं, जहाँ निवास की व्यवस्था पूर्णतः निःशुल्क है।
इसी प्रकार की यात्रीनिवास व्यवस्था गोवा उपपीठ तथा मराठवाड़ा उपपीठ में भी उपलब्ध है।
इस प्रकार संस्थान ने श्रद्धालुओं के निवास, आराम और सुविधा का विशेष ध्यान रखते हुए व्यापक व्यवस्था सुनिश्चित की है।
१४. वारी उत्सव
समाज में बंधुता, शांति, सामंजस्य, वैचारिक आदान–प्रदान तथा अध्यात्म एवं मनःशांति जैसी ऊँची सामाजिक उद्दिष्टों की पूर्ति हेतु जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान प्रतिवर्ष कम से कम सात भव्य वारी उत्सव आयोजित करता है।
इन वारी उत्सवों की विशेषताएँ –
-- लाखों श्रद्धालुओं की सक्रिय सहभागिता।
-- श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक संस्कारों का प्रबोधन।
-- धर्म, देश और संस्कृति के प्रति स्वाभिमान जागृत करना।
-- समाज को दुष्प्रवृत्ति, दुर्व्यसन और दुर्गुणों से दूर रखने का उपक्रम।
विशेष उल्लेखनीय यह है कि वारी उत्सव में सम्मिलित होने वाले जनसमूह की संपूर्ण सेवा संस्थान की ओर से पूर्णतः निःशुल्क की जाती है।
१५. अध्यात्मिक एवं सामाजिक ऋणानुबंध हेतु पदयात्रा
वर्तमान समय में विश्व पर ग्लोबल वार्मिंग का भीषण संकट गहराता जा रहा है, जिसके कारण जीवमात्र को भारी क्षति पहुँच रही है। इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने व्यापक जनजागरण अभियान प्रारंभ किया है।
समाज में जागरूकता उत्पन्न करने हेतु जगद्गुरु नरेंद्राचार्यजी के हजारों अनुयायी प्रतिवर्ष पदयात्रा के माध्यम से समाज–प्रबोधन करते हुए मुख्यपीठ नाणीजधाम पहुँचते हैं।
इन पदयात्राओं को “वसुंधरा पायी दिंडी” नाम दिया गया है। इसके अंतर्गत विभिन्न उपपीठों से लंबी दूरी की यात्राएँ आयोजित होती हैं, जैसे –
1. उपपीठ पूर्व विदर्भ (श्रीक्षेत्र नेरले – कामठी – नागपुर) : १०२२ कि.मी., ४० दिन
2. उपपीठ मराठवाड़ा (श्रीक्षेत्र सिमुरगव्हाण – पाथरी – परभणी) : ५३२ कि.मी., २३ दिन
3. उपपीठ उत्तर महाराष्ट्र (श्रीक्षेत्र रामशेज – दिंडोरी – नाशिक) : ५२७ कि.मी., २३ दिन
4. उपपीठ पश्चिम महाराष्ट्र (श्रीक्षेत्र नर्हे – हवेली – पुणे) : ३५४ कि.मी., १६ दिन
5. उपपीठ मुंबई (श्रीक्षेत्र शिरसाट फाटा – वसई – पालघर) : ३९१ कि.मी., १७ दिन
6. उपपीठ तेलंगाना (श्रीक्षेत्र दोसपल्ली – जुक्कल – कामारेड्डी) : ६०५ कि.मी., २५ दिन
7. उपपीठ गोवा (श्रीक्षेत्र बांयगणी – तिसवाडी – गोवा) : २४३ कि.मी., ११ दिन
इन यात्राओं के दौरान हजारों अनुयायी पैदल यात्रा कर पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन का संदेश समाज तक पहुँचाते हैं।
मुख्य संदेश:
-- पानी रोकें, पानी बचाएँ।
-- वृक्ष लगाएँ और उनकी रक्षा करें।
-- जलाशयों का संरक्षण करें।
-- प्लास्टिक का उपयोग न करें।
सन २०२३ से ये पदयात्राएँ निरंतर आयोजित की जा रही हैं। यात्रा के दौरान बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण भी किया जाता है।
सामाजिक एवं अध्यात्मिक फलश्रुति:
-- पदयात्राओं के माध्यम से ग्लोबल वार्मिंग पर जनजागरण।
-- युवाओं में अध्यात्मिक संस्कारों का बीजारोपण।
-- युवा पीढ़ी में शील, विनम्रता, आदर्शवादिता तथा समाज–दायित्व का बोध।
-- विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय कर जीवन–पद्धति सिखाना।
इस प्रकार जगद्गुरु नरेंद्राचार्य के मार्गदर्शन में आयोजित पदयात्राएँ समाज में पर्यावरण–संवर्धन के साथ–साथ अध्यात्मिक जागरण की भी प्रेरणा प्रदान कर रही हैं।
१६. पर्यावरण संरक्षण एवं जल–संधारण
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने ग्लोबल वार्मिंग के संकट को दूर करने हेतु अपने पीठों पर बड़े पैमाने पर पर्यावरण संरक्षण के उपक्रम प्रारंभ किए हैं।
प्रमुख उपक्रम:
-- विभिन्न पीठों पर वृक्षारोपण का व्यापक अभियान।
-- सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का निर्माण।
-- बड़े स्तर पर सौर ऊर्जा उत्पादन।
-- ऊर्जा प्रबंधन, अपव्यय नियंत्रण प्रबंधन, जल संरक्षण तथा प्रदूषण रहित सामग्री के प्रयोग द्वारा पर्यावरण–अनुकूल व्यवस्थापन।
-- लैंड–स्केपिंग के माध्यम से हरित पर्यावरण निर्माण।
-- नेट ज़ीरो उपक्रम का आरंभ, ताकि ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव कम किया जा सके।
अनुयायियों के माध्यम से:
-- अपने–अपने गाँवों में बड़ी संख्या में वृक्षारोपण।
-- ग्राम–स्वच्छता अभियान।
-- मंदिर–परिसर की स्वच्छता।
-- सार्वजनिक स्थलों की साफ–सफाई।
-- कच्चे बाँध बनाकर जल–संधारण कार्य।
महिला सेना वाहिनी द्वारा:
-- महाराष्ट्र राज्य के ११०० हरित गाँव बनाने का संकल्प।
-- इनमें से कुछ गाँवों में पायलट प्रोजेक्ट पहले से ही लागू किया गया है।
इस प्रकार संस्थान के मार्गदर्शन में पर्यावरण संरक्षण, जल–संधारण एवं हरित ग्राम निर्माण का महत्त्वपूर्ण कार्य निरंतर गति से चल रहा है।
१७. निःशुल्क अन्नछत्रालय
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य का मुख्य पीठ नाणीजधाम है। इसके अतिरिक्त मराठवाड़ा, मुंबई, नाशिक, नागपुर, तेलंगाना, ओंकारेश्वर तथा गोवा स्थित उपपीठों पर भी प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन हेतु पधारते हैं।
इन सभी पीठों पर प्रतिदिन आने वाले श्रद्धालुओं की दोनों समय भोजन–सेवा पूर्णतः निःशुल्क संस्थान द्वारा की जाती है।
विशेषताएँ:
-- इस अन्नछत्रालय का नाम है – “समर्थ सद्गुरु काडसिद्धेश्वर महाराज प्रसादालय।”
-- अन्नछत्रालय हेतु विशाल और सुसज्जित इमारत का निर्माण।
-- अत्यंत शुद्ध एवं सात्विक आहार की व्यवस्था।
-- पूर्ण स्वच्छता और सुव्यवस्थित वातावरण।
-- दिन में दो बार श्रद्धालुओं को पेटभर भोजन।
इन सभी विशेषताओं के कारण इस सेवा की प्रशंसा और सराहना उस–उस परिसर में व्यापक रूप से की जाती है।
१८. मोटर ड्राइविंग प्रशिक्षण केंद्र
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने आदिवासी पाडों में निवास करने वाले ग़रीब एवं ज़रूरतमंद आदिवासी युवाओं को स्वरोज़गार उपलब्ध कराने तथा उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से अपने मुंबई उपपीठ पर दिनांक ०४ मार्च २०१४ से निःशुल्क मोटर ड्राइविंग प्रशिक्षण केंद्र प्रारंभ किया।
प्रमुख विशेषताएँ:
-- प्रशिक्षण लेने वाले युवाओं के लिए निःशुल्क निवास एवं भोजन व्यवस्था।
-- पूर्णतः निःशुल्क प्रशिक्षण।
-- संस्थान के व्यय पर युवाओं को क्षेत्रीय परिवहन विभाग से लाइसेंस बनवाकर प्रदान करना।
-- आवश्यकता अनुसार प्रशिक्षित युवाओं को चालक के रूप में रोजगार उपलब्ध कराना।
अब तक ७७१ आदिवासी युवाओं ने इस प्रशिक्षण का लाभ उठाकर अपना स्वयं का स्वरोज़गार प्रारंभ किया है।
अतिरिक्त सामाजिक कार्य:
संस्थान द्वारा आदिवासी पाडों में रहने वाले भाई–बहनों को उनकी परिस्थितियों के अनुसार अधिकतम सहायता पहुँचाई जाती है, ताकि वे समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें।
१९. नर्मदा परिक्रमा यात्रियों हेतु निःशुल्क सेवा
धार्मिक आस्था की दृढ़ता और संरक्षण के उद्देश्य से जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य ने दिनांक ०९ सितम्बर २०२१ को माँ नर्मदा तट पर रामानंदाचार्य उपपीठ, ओंकारेश्वर की स्थापना की।
इस उपपीठ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य माँ नर्मदा की परिक्रमा करने वाले श्रद्धालु यात्रियों की निःशुल्क सेवा करना है।
सेवाओं की व्यवस्था:
पैदल परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं को प्रतिदिन –
-- प्रातः ०६:०० से दोपहर १२:०० बजे तक – चाय एवं नाश्ता
-- दोपहर १२:०० से ०३:०० बजे तक – पेटभर भोजन
-- दोपहर ०३:०० से सायं ०६:०० बजे तक – चाय एवं नाश्ता
-- सायं ०६:०० से रात्रि १०:०० बजे तक – पेटभर भोजन साथ ही निवास की निःशुल्क व्यवस्था उपलब्ध कराई जाती है।
लाभार्थी:
महाराष्ट्र सहित समीपवर्ती राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस सेवा का लाभ लेते हैं। अब तक हजारों यात्री इस निःशुल्क सेवा का लाभ उठा चुके हैं।
इस उपक्रम के माध्यम से जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान भारतीय संस्कृति की परंपराओं, धार्मिक आस्थाओं और श्रद्धास्थलों को जागृत और सुदृढ़ बनाए रखने का कार्य कर रहा है।
२०. सामाजिक ऋणानुबंध
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान समय–समय पर समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत मान्यवरों का आदर–सम्मान कर उन्हें विशेष उपाधि एवं पुरस्कार प्रदान करता है।
सम्मानित विभूतियाँ:
-- भारत रत्न, गानकोकिला श्रीमती लता मंगेशकर – इनका सम्मान जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान द्वारा माननीय उपराष्ट्रपति भैरवसिंह शेखावत के करकमलों से जीवनगौरव पुरस्कार प्रदान कर किया गया।
-- भारतीय इतिहासाचार्य श्रीमान बाबासाहेब पुरंदरे – इन्हें भी जीवनगौरव पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया।
-- पद्मश्री दादा इधाते – इन्हें संस्थान की ओर से कर्मवीर उपाधि प्रदान की गई।
इसी प्रकार समाज में विभिन्न क्षेत्रों में सेवा कार्य करने वाले अनेक व्यक्तियों को समय–समय पर पुरस्कार एवं उपाधियों से सम्मानित किया जाता है, जिससे वे समाजहित के कार्यों के लिए और अधिक प्रोत्साहित हो सकें।
विशेष योगदान:
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान ने अयोध्या में स्थित भगवान श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास को भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण हेतु कोट्यवधी (करोड़ों) रुपये की सहायता प्रदान की है।
अन्य सेवाएँ:
इसके अतिरिक्त जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य समाजोपयोगी अनेक सेवाएँ विभिन्न संस्थाओं तथा अपने संप्रदाय के माध्यम से निरंतर संचालित कर रहे हैं।
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रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांचा परिचयः
अधिक जाणून घेण्यासाठी, भेट द्या
“मनुष्यचर्मणा बद्ध: साक्षात्परशिव: स्वयम् । सच्छिष्यानुग्रहार्थाय गूढं पर्यटति क्षितौ । अत्रिनेत्रः शिवः साक्षादचतुर्बाहुरच्युतः । अचतुर्वदनो ब्रम्हा श्रीगुरूः कथितः प्रिये ॥” अष्टधा प्रकृतीने बनलेला माणसाचा देह हाडामासांची वस्तू असली तरी मानव देह धारण करुन या देहात सद्गुरु रुपाने आलेली शक्ती म्हणजे गुरु आहे. गुरू हा साक्षात परमशिव आहे. तो सत् शिष्यांवर अनुग्रह करण्यासाठीच पृथ्वीवर अवतरत असतो. श्रीगुरू हा त्रिनेत्र नसलेला शिव आहे. चतुर्भुज नसलेला विष्णू आहे. चतुर्मुख नसलेला ब्रम्ह आहे. गुरू हा ब्रम्ह, विष्णू आणि महेश तर आहेच, परंतु साक्षात परब्रम्ह सुध्दा आहे.
गुरू या शब्दाचा अर्थ-
गुकारस्त्वन्धकारश्च, रूकारस्तेज उच्यते। अज्ञानग्रासकं ब्रम्ह, गुरूरेव न संशयः। जो अज्ञानाचा अंधार दूर करून ज्ञानाचा प्रकाश देतो, तो अज्ञानाचा नाश करतो, तो सगुण ब्रम्ह म्हणजे गुरू. श्रीगुरूंहून श्रेष्ठ असे काहीच नाही.
नधिकं तत्त्वं, न गुरोरधिकं तपः। तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
ब्रम्हानंदं परमसुखदं कंवलं ज्ञानमूर्ति। व्दंव्दातीतं गगनसदृश्यं तत्त्वमत्स्यादिलक्ष्यम् । एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं। भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरू तं नमामि॥ गुरुंपेक्षा जगात काहीच श्रेष्ठ नाही. गुरु व्यतिरिक्त काही सत्य ही नाही. गुरुपेक्षा तपसुद्धा श्रेष्ठ नाही. गुरु हे तत्वज्ञानाच्या पलीकडचे आहेत. ते परब्रम्हाचे स्वरुप आहे. परमानंद देणारे आणि केवळ ज्ञानाचे मृतस्वरुप ते आहेत. गुरु सुख, दुःख, ऊन-वारा, पाऊस यापासून मुक्त आहेत. आकाशाप्रमाणे सर्वव्यापी आणि अतिसुक्ष्म आहेत. तत्वमसी या महान विधानाचे लक्ष गुरु आहेत. ते नित्य आहेत, निर्मल आहेत. अचंचल आणि सर्व बुद्धिमतेचा अविष्कार आहेत. तुम्ही सर्व भावनांच्या पलिकडचा अनुभव देणारे जगद्गुरु नरेंद्राचार्य आहात तुम्हाला आमचे शतकोटी वंदन असो. रत्नागिरी म्हणजे रत्नांचे आगर असलेल्या, नैसर्गिक सौंदर्याने नटलेल्या, तहानभूक विसरायला लावणारा, विस्तीर्ण सागरकिनारा लाभलेल्या, रूद्र पराक्रमी, महाबली भगवान परशुरामाची भूमी असलेल्या कोकण भूमीत आंबे, फणस, काजू, नारळी, पोफळी यांचे आगर असलेल्या या रत्नागिरी जिल्हयात नाणीज गावी श्री स्वामी नरेंद्राचार्यांचा जन्म झाला.
हे नाणीज गाव तसे साधेसुधे. परंतु जगद्गुरू रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांच्या पदस्पर्शाने पुलंकित होवून आज संपूर्ण विश्वाला खऱ्या अर्थाने जागे ठेवणारे हे गाव नाणीज. ना......नीज म्हणजे जे स्वतः झोपत नाही किंवा स्वतः जागे राहून जे अब्जावधी लोकांना खऱ्या अर्थाने जागे रहायला शिकविते ते नाणीज गावं.
नरेन्द्रचार्यांचे माता पिता हे पूर्वजन्मीचे कोणीतरी योगभ्रष्ट तपस्वीच होते. माता सुभद्रा दत्त महाराजांच्या निस्सीम भक्त. पिता बाबूराव गोविंदराव सुर्वे यांचे घराणे सूर्यवंशी, यांचे गोत्र वशिष्ठ, आई भवानीमाता (तुळजापूर) हे यांचे कुलदैवत. पंचपल्लव व सूर्यफूल हे यांचे देवक. हे घराणे मुळात नाशिक जिल्ह्यातील निफाड येथील आहे. छत्रपती शिवरायांच्या गुप्तचर विभागाचे प्रमुख बहिर्जी नाईक (निंबाळकर) यांच्या तुकडीत या घराण्याचे पूर्वज सामिल असल्यामुळे प्रजेचा कानोसा घेण्यासाठी, शत्रूंच्या हालचालींवर बारीक लक्ष ठेवण्यासाठी, गनिमांचे मनसुबे समजून घेण्यासाठी शिवरायांच्या आदेशाने ही तुकडी सतत भ्रमंती करत होती. कोकणाला लाभलेली विस्तीर्ण समुद्रपट्टी सिंधुदूर्ग, विजयदुर्ग, रायगड, जंजिरा असे अनेक किल्ले यांची इत्यंभूत माहिती संग्रही ठेवण्याकरीता हे घराणे कोकणात उतरले.

हिदवी स्वराज्यानंतर हे आणि अशी अनेक कुटूंबे कोकणातच स्थिरावली. नाणीज गाव संपूर्ण विश्वाचे लक्ष आपल्याकडे खेचून घेईल असे कोणी 30-40 वर्षापूर्वी सांगितले असते तर आपण त्यावर विश्वासच ठेवला नसता. साहजिकच आहे, अत्यंत ग्रामीण व दुर्गम भाग, याशिवाय या गावाला असे काही ऐतिहासिक, आध्यात्मिक वा धार्मिक किंवा सांस्कृतिक असा कोणताच नावाजण्यासारखा वारसा नव्हता. मग एका रात्रीत हा बदल कसा झाला? हा चमत्कार कसा घडला?
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृज्याम्यहम्॥ परित्राणाय साधूनामं विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
ज्या ज्या वेळी धर्माची हानी होते, नीतिमुल्यांचा ऱ्हास होतो, साधुसंतांना तसेच सात्विक, सज्जनांना जगणे दुरापास्त होते, त्यावेळी तो विधाता कधी श्रीराम बनून, कधी श्रीकृष्ण बनून तर कधी संत ज्ञानेश्वर माऊली बनून तर कधी स्वामी विवेकानंद बनून या भूतलावर अवतरतोच. असाच या भुतलावर आश्विन शुध्द अष्टमी, आई जगदंबेच्या नवरात्रात, जगदंबा पुत्र जो जगाचा नाथ होणार आहे, असे ज्याचे वर्णन जन्मताच पुरोहितांनी केले होते, तो ज्ञानसूर्य शुक्रवार दि. 21 ऑक्टोबर 1966 रोजी रात्रौ दहा वाजता नरेंद्र या नावाने क्षेत्र नाणीजधाम येथे जन्मास आला. जगद्गुरू नरेंद्राचार्यांना पूज्य मातोश्रींमुळे दत्तभक्तीची बालपणापासूनच ओढ लागली. नरेंद्राचार्यांचे जीवनच असे आहे, कोणतीही गोष्ट करायची किंवा अंगिकारायची तर मग ती एकदम टोकाचीच.....मग ती देवभक्ती असो किंवा सामाजिक कार्य असो अथवा काहीही असो..... या गुणांमुळे श्रीदत्तमहाराजांना त्यांनी आपलेसे करून घेतले. अगदी बालवयात दत्तमहाराज त्यांना प्रत्येक वस्तूत दिसायचे. एखादी व्यक्ती दुसऱ्या व्यक्तीबरोबर काय बोलणार आहे हे नरेंद्राचार्यांना या बालवयात अगोदरच कळायचे. ते आपल्या बालमित्रांना सांगायचे अमुक तमुक व्यक्ती अमुक तमुक बोलणार आहे आणि घडायचे ही तसेच. आपल्याला ऐकून आश्चर्य वाटले ना? परंतू भगवंताने गीतेमध्ये म्हटले आहे. .......
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते । तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥
तात्पर्य - जे अनन्य भावाने माझ्या ठिकाणी स्थित झालेले आहेत, जे माझे निरंतर निष्काम भावनेने चिंतन करतात, मला भजतात. त्यांचा योगक्षेम मी चालवतो.
नरेंद्राचार्यांचे बालपण म्हणजे प्रतिपदेचा चंद्र पौर्णिमेकडे झेपावताना जसा हळू हळू वाढत जातो तसे जगद्गुरुश्री यांचे बालपण ईश्वर भक्तीकडे वळताना दिसते. (पुढील अनेक प्रसंगांवरुन लक्षात येईल.) लहान मुलांमध्ये असणारी खेळकर वृत्ती, हुडपणा या सर्व गोष्टी नरेंद्राचार्यांकडे होत्याच. परंतू ध्यान धारणेत एकाग्र होण्याची क्षमता बालवयापासूनच खूप आहे. नरेंद्राचार्य चौथी किंवा पाचवीला असताना श्री दत्त महाराजांच्या ध्यानात एकाग्र झाले होते. त्यांच्या मांडीवर विंचू (छोटी इंगळी)बराच वेळ होता. परंतू त्याची त्यांना माहीती ही नव्हती. त्यांची बहिण रंजना हीने मांडीवरील विंचू पाहून ती मोठ्याने किंचाळली तरीसुद्धा नरेंद्राचार्यांना समजले नाही. मग शेवटी तिने मोठ्याने गदगदा हलवले तेव्हा कुठे ते ध्यानातून बाहेर आले. इतके ईश्वर भक्तीत रममाण असायचे.
नरेंद्राचार्यांकडे उपजतच खिलाडू वृत्ती, संघटन कौशल्य, नेतृत्वगुण होते. त्यामुळे पाचवी सहावीला असताना आपल्या गावी दत्तजयंती हा सार्वजनिक उत्सव सुरू केला. ती प्रथा आजही नाणीजधाम येथे सुरु आहे. कोकणामध्ये होळी उत्सव फार प्रख्यात असतो. हा होळी उत्सव मोठी माणसे करतात. मोठ्यांप्रमाणे अगदी फाल्गुन शुक्ल पंचमी पासून होळी पौर्णिमे पर्यंत कोकणात ज्या पद्धतीने होळी सण साजरा केला जातो तो अगदी हुबेहुब श्री नरेंद्राचार्यांनी वयाच्या दहाव्या, अकराव्या वर्षाचे असताना लहान लहान सवंगड्यांना घेवून सुरुवात केला. लहान मुलांनी होळी उत्सव करण्याची प्रथा आजसुद्धा नाणीजगावी सुरू आहे. तात्पर्य, संघटक वृत्ती त्यांच्यामध्ये उपजतच आहे. आज नरेंद्राचार्यांनी करोडो लोकांना संघटीत केलेले आपण पहातोय. शालेय जिवनात त्यांचा गणित, विज्ञान आणि इतिहास हे आवडीचे विषय. या गणित विषयामुळे नरेंद्राचार्यांनी इन्फॉरमेशन टेक्नॉलॉजीचा उपयोग करुन अध्यात्म आणि समाजसेवा जनमाणसांपर्यंत पोहचवण्यासाठी पुरेपुर उपयोग केला आहे. त्यांनी इन्फॉरमेशन टेक्नॉलॉजीचे 150 ते 200 आय. टी. इंजिनिअर सोबत घेवून 17 ते 18 सॉफ्टवेअर तयार केली आहेत. वैशिष्टय म्हणजे या सर्व सॉफ्टवेअरची रिक्वायरमेंट नरेंद्राचार्यांची आहे. याहून वैशिष्ट्य म्हणजे या सॉफ्टवेअर बांधणीसाठी लागणारे लॉजिक 70 ते 80 टक्के स्वतः नरेंद्राचार्यांचे आहे. थोडक्यात दुरदृष्टी, नेतृत्वगुण, विज्ञान, अध्यात्म आणि जिवनाचे गणित यांची बीजे बालपणातच श्री नरेंद्राचार्यांमध्ये आलेली होती. मार्च 1983 ला एस.एस.सी पास झाल्यानंतर नरेंद्राचार्य पुढील शिक्षणासाठी ठाणे येथे गेले. परंतु तेथील शहरी वातावरणामध्ये ते फार रमले नाहीत. कारण त्यांना लौकीक दुनियेत रमण्याचा शौक नव्हता. पूजाअर्चा, ध्यान धारणा यामध्ये त्यांना फार रुची होती. त्यामुळे ज्यावेळी परत गावी आले त्यावेळी पूज्य मात्यापित्यांनी शासकीय ग्रामसेवक पदाची नोकरी करण्यास भाग पाडले. अध्यात्माचा ओढा असणारे नरेंद्राचार्य संसारात, व्यवहारी जगतात रमणार नाहीत म्हणून त्यांना संसारात ओढण्यासाठी नोकरी करण्यास भाग पाडले. दि. 29 मार्च 1985 ला ते ग्रामसेवक पदावर सरकारी नोकरीत रुजू झाले. ते नोकरी करत होते, परंतु चित्त अध्यात्मात होते. वाटयाला आलेला प्रपंच, नोकरी करून हे सर्व करावे अशी पूज्य मातापित्यांची इच्छा. सर्व भावंडांमध्ये आई वडीलांचा आज्ञाधारक पुत्र नरेंद्राचार्य होते. त्यांच्या सुभद्रा मातोश्री नेहमी सांगायच्या “तू जरुर भक्ती कर पण आमची इच्छा आहे तू संसार ही केला पाहीजेस. आईवडीलांची आज्ञा सुज्ञ मुलाने मोडू नये. तुला आमचे आशीर्वाद नक्की कामी येतील. पण तू नोकरी, संसार करुन आम्हाला आनंद दे. पूज्य मातोश्री दत्त भक्त असल्याने सांगायच्या माझा आशीर्वाद तुझ्या सोबत कायम आहे. तू जगाचे कल्याण करशील. भगवान दत्त महाराज तुझ्यावर नेहमी लक्ष ठेवतील. ते सांगतील त्याप्रमाणे तू वाग.” एके दिवशी दत्तमहाराजांच्या आशीर्वादाने व आदेशाने श्री नरेंद्राचार्य शेगावीच्या गजानन महाराजांचे भक्त झाले. जे आत्मज्ञानी योगीपुरुष आहेत. दत्त महाराजांनी नरेंद्राचार्यांना सांगितले यापुढील तुझा प्रवास गजानन महाराज करतील. श्रीदत्त महाराजांची आज्ञा ब्रम्हआदेश समजून गजानन महाराजांचे ते केव्हाच दास बनले. नरेंद्राचार्यांच्या शब्दात सांगायचे झाले तर.....
“गजानना तुझ्या आम्ही पायातील वहाण। याचक तुझे आम्ही दयावे समाधान॥
तुम्हापुढे देवा आम्ही घुंगुरडया समान। नेणो भावे कैसी घडे सेवा महान॥
उपाधि वचन ना ऐकती कर्ण। बहु त्रासियले आमुचे मन॥
जरी तुम्ही दिले आम्हा शाश्वत सुख। येणे नाही होणार आमुचे मन पाक॥
श्रीहरि तुम्हावीण नको हे जीणे। आस आहे चरणाची नरेंद्र म्हणे॥”
गजानन महाराजांच्या चरणाची आस दिवसागणिक वाढत जात आहे. नोकरीवरील लक्ष कमी होत असल्याचे लक्षात येताच पूज्य मात्यापित्यांनी दि. 15 ऑक्टोबर 1985 रोजी श्री नरेंद्राचार्यांचे जबरदस्तीने लग्न लावून दिले. श्री. शांताराम बाबू रसाळ या मामाची मुलगी ज्यांचा जन्म दि. 2 जून 1968 रोजी झाला. त्या चि.सौ.कां. शोभना, नरेंद्राचार्यांच्या सौ. सुप्रिया नावाने अर्धांगिनी बनल्या. संसाराचा ध्यास आता तरी लागेल अशी अपेक्षा बाळगणाऱ्या मात्यापित्यांना आता मनातून आनंद झाला होता. त्यांना काय ठावूक श्री नरेंद्राचार्यांना मुलगा झाला की ते या सर्व प्रापंचिक ॠणातून मुक्त होतील. त्यांना विरक्त होण्याची धर्म आज्ञा मिळेल! दि. 24 ऑक्टोबर 1988 रोजी कानिफनाथांचा जन्म झाला. वार सोमवार, पौर्णिमा दिवस, रात्रौ 11 वाजून 49 मिनीटांनी पुत्ररत्नाचा जन्म झाला आणि नरेंद्राचार्य मनात आनंदले. कारण संसार प्रपंचाच्या कटकटीतून सुटून आध्यात्मिक, पारलौकीक, आत्मिक प्रवास करण्याचा मार्ग सापडला होता. दुसरीकडे आई वडील, बहिण भावंडे खुश झाली होती कारण होते, श्री नरेंद्राचार्यांना कानिफनाथ मुलाच्या रूपाने संसारातील एक ओझे, एक जबाबदारी वाढली. त्यामुळे आता हे पुरते अडकले या आनंदात संपूर्ण कुटूंब होते.
नरेंद्राचार्यांच्या ध्यानी, मनी, स्वप्नी संत शिरोमणी गजानन महाराज (शेगाव) हे कायम असल्याने नरेंद्राचार्यांच्या सहवासात आलेल्या प्रत्येक व्यक्तीला नरेंद्राचार्यांमध्ये काहीतरी विलक्षण सामर्थ्य आहे याची मनोमन जाणीव होत असे. त्यामुळे कळत नकळत आपली प्रापंचिक दुःखे अनेक लोक नरेंद्राचार्यांजवळ बोलत. त्यांना समजावून सांगताना अगदी सहज बोलता बोलता केलेले मार्गदर्शन लोकांकरीता संजीवनी बनू लागले. आपोआपच भक्तांचा गोतावळा जमू लागला. यातून सामुदायिक भक्तीला सुरूवात झाली. संत शिरोमणी गजानन महाराजांचा प्रकटदीन उत्सव सन 1989 ला नरेंद्राचार्यांच्या राहत्या घरी सुरु झाला. नोकरी, बायको, मुलगा, प्रपंच या कशातच मन रमतच नव्हते. हळूहळू पाच दहा हजार भक्तांचा मेळा जमला. आता भक्तीला आणि उपासनेला जोर धरु लागला होता. संत शिरोमणी गजानन महाराजांनी नरेंद्राचार्यांच्या हृदयात चाललेली आत्मिक समाधानाची लागलेली ओढ जाणून सद्गुरू करण्याचा दृष्टांत दिला. नरेंद्राचार्यांना जाणवू लागले.... “ब्रम्हज्ञानाविण उपदेश। म्हणू नये खास। जैसे धान्याविण भूस। काय कामाचे॥” आता ब्रम्हज्ञानाची तगमग कुठेतरी मनाला सतावत होती. हे जाणून संत शिरोमणी गजानन महाराजांनी समर्थ सिध्दयोगी सद्गुरु मुप्पीन काडसिध्देश्वर महाराज, कणेरी, कोल्हापूर यांना सद्गुरू कर अशी नरेंद्राचार्यांना आज्ञाच केली. ज्यांना तनाने, मनाने स्विकारले आहे अशा पूज्यपाद संत शिरोमणी गजानन महाराजांची वेदाज्ञा कोण मोडणार? दि. 30 जानेवारी 1991 पौर्णिमा, या दिवशी नरेंद्राचार्यांनी समर्थ सद्गुरु काडसिध्देश्वर महाराजांचे शिष्यत्व स्विकारले.
समर्थ सद्गुरु काडसिद्धेश्वर महाराज म्हणजे निंबार्कचार्य गुरु परंपरा यालाचा इंचगिरी संप्रदाय सुद्धा म्हणतात. भगवान दत्तात्रयांचे शिष्य रेवणसिद्धनाथ जे नवनाथांपैकी एक. या नवनाथांचे चौऱ्याऐंशी सिद्ध (अधिकारी शिष्य) होते. रेवणसिद्ध नाथांचे जोगी, शारंगी, निजानंद, नैन, निरंजन, यदु, गैबनशुद्र, काष्टसिद्ध असे आठ अधिकारी शिष्य होते. त्यापैकी काष्टसिद्ध नाथांकडून नारायणराव उर्फ गुरुलिंगजंगम महाराज (निंबार्गी)- त्यांचेकडून रघुनाथप्रिय महाराज (तंजावर- तामिळनाडू) यांनी शिष्यत्व स्विकारले. रघुनाथप्रियांचे शिष्यत्व भाऊसाहेब महाराजांनी स्विकारले. त्यामुळे या संप्रदायाचे नाव इंचगिरी संप्रदाय म्हणून पुढे रुढ झाले. भाऊसाहेब महाराज (उमदी- इंचगिरी) यांचे शिष्यत्व समर्थ सद्गुरु सिद्धरामेश्वर महाराज (पाथरी, सोलापूर) यांनी स्विकारले. सिद्धरामेश्वर महाराज यांचे शिष्यत्व लिंगायत समाजाचे धर्मपीठ असलेले कणेरी - कोल्हापूर या पीठाचे सव्वीसावे आचार्य मठाधिपती श्री समर्थ मुप्पीन काडसिद्धेश्वर महाराज यांनी स्विकारले. समर्थ सद्गुरु मुप्पीन काडसिद्धेश्वर महाराजांचे शिष्यत्व संत शिरोमणी गजानन महाराजांच्या आदेशाने नरेंद्राचार्यांनी स्विकारले. नरेंद्राचार्यांच्या एका अभंगात नरेंद्राचार्य म्हणतात...
“कृपावंत माझा सद्गुरु काडसिद्ध। अनुग्रहीत केले तेणे मला॥धृ.॥
स्वधर्माची खुण दावून मज त्याने। सोह्म मंत्र कानी सांगितला॥1॥
ठायीची लावली अखंड समाधी। संपली उपाधी अविद्येची॥2॥
नरेंद्र म्हणे ईश अणूरेणूत आहे। संसार तो झाला मोक्षमय॥3॥”
समर्थ सद्गुरू काडसिध्दांच्या आत्मबोधाने प्रेरीत होवून नरेंद्राचार्यांनी स्वतःचा आत्मोध्दार करून घेतला. आता पूर्णतः विरक्ती दिसू लागली. पत्नी, मुलगा, आई वडील, प्रपंच सर्व काही सोडून आता कायमचे निघून जायचे असा निश्चय केला. नरेंद्राचार्यांच्या पत्नीच्या, आई वडीलांच्या दृष्टीतून ही गोष्ट सुटली नाही. त्यामुळे नरेंद्राचार्यांना समर्थ सद्गुरु काडसिद्धेश्वरांकडे घेवून गेले. आई-वडील, पत्नी यांनी समर्थ सद्गुरू काडसिध्देश्वर महाराजांकडे साकडे घातले. आम्हाला आता कळून चुकले, नरेंद्र आता आमचा राहिलेला नाही. त्याची पत्नी, मुलगा आणि आम्ही मातापिता यांच्यासाठी त्याने आमच्या सोबत रहावे. आम्ही त्याला कधीच प्रपंचातील गोष्टींमध्ये अडकवणार नाही. त्यांनी खुशाल लोकसंग्रह करावा, लोकांना भक्ती मार्गाला लावावे या अध्यात्मिक कार्यात आम्ही बिलकुल अडथळा आणणार नाही. परंतु पत्नीचे वय 23 वर्ष आहे. मुलगा साडेतीन वर्षाचा आहे. नरेंद्राचार्यांचे वय 25 वर्ष आहे. म्हणून पत्नी व मुलाचा त्याग न करता त्याने आमच्या सोबत रहावे. पूर्णपणे अध्यात्मिक कार्याला झोकून घ्यावे. एवढी कळकळीची विनंती सर्वांनी समर्थ सद्गुरु काडसिद्धेश्वर महाराजांकडे केली. अशी मागणी केल्यामुळे काडसिध्देश्वर महाराजांनी आईवडिलांच्या, पत्नीच्या विनंतीला मान देवून सांगितले.......
“हा माझा प्रसाद तुम्हाला देतो, हा तुमच्यापाशी राहिल, अगदी तुमच्यात राहिल, परंतु कार्य मात्र माझे करेल.”
नरेंद्राचार्यांना प्रपंचात राहायचे नव्हते. म्हणून त्यांनी आपल्या सद्गुरुंना वेगवेगळ्या प्रकारच्या गयावया, विनवण्या करुन पाहीले. शेवटी समर्थ सद्गुरु काडसिद्धेश्वरांनी विठ्ठलपंत कुलकर्णी (आपेगाव- पैठण- संभाजीनगर) यांचा प्रसंग सांगितला. त्यांनी संन्यास दिक्षा घेतली होती. तरीही त्यांच्या श्रीगुरुंनी म्हणजेच रामानंदानी त्यांना संसारात परत पाठवले. गुरूआज्ञा शिरसावंद्य मानून ते प्रपंचात आले. भविष्यात त्यांना निवृत्ती, ज्ञानेश्वर, सोपान, मुक्ताई ही मुले झाली. या चारही मुलांनी जगाला परमार्थ सोपा करुन सांगितला. तूच म्हणतोस गुरु वाक्य मंत्र मुलम् मग गुरु आदेशाचे पालन हाच परमार्थ आहे. नरेंद्राचार्यांचा नाईलाज झाला. त्यामुळे गुरु आज्ञा शिरसावंद्य मानून ते परत नाणीजला आले. हा प्रसंग मार्च 1991 अखेर अखेरचा आहे. संसारातून बाहेर पडणे गुरु आज्ञेमुळे आता शक्य नाही. त्यामुळे प्रपंचात राहूनच परमार्थ करावा लागेल हे जाणून एप्रिल 1991 च्या दरम्याने श्रीक्षेत्र नाणीज येथे वडीलोपार्जित मालकीच्या गट नं. 295 मध्ये छोटेखानी आश्रम बांधायचा आणि भक्ती मार्गाची ध्वजा कायम फडकवण्याचा निश्चय केला. नाणीजवरुन वारंवार गुरु सहवासासाठी तसेच सेवेसाठी नरेंद्राचार्य सतत कणेरी मठावर जात असत. दि. 13 फेब्रुवारी 1992 वार गुरुवार रोजी समर्थ सद्गुरु काडसिद्धेश्वर महाराज यांच्या कणेरी मठावर नरेंद्राचार्य सेवेसाठी गेलेले असताना स. स. काडसिद्धेश्वर महाराजांनी नरेंद्राचार्यांना नोकरी सोडण्याचा आदेश दिला. दुसऱ्या दिवशी सकाळी दि.14 फेबुवारी 1992 वार शुक्रवार रोजी त्यांनी ग्रामसेवक पदाचा राजिनामा देवून आता पूर्णवेळ परमार्थासाठी स्वतःला समर्पित केले. एप्रिल 1991 च्या दरम्याने सुरुवात केलेले आश्रमाच्या इमारतीचे काम पूर्ण झाले होते. त्यामुळे दि. 24 फेब्रुवारी 1992 रोजी गुरु आदेशाने “स्व-स्वरूप संप्रदायाची” स्थापना करून “तुम्ही जगा, दुसऱ्याला जगवा” हा महामंत्र अखील मानवजातीला नरेंद्राचार्यांनी दिला.
गोरगरीबांबद्दल अत्यंत कनवाळू, सत्याची कास धरणारे, परोपकार वृत्ती अंगी असणारे, दिन दुबळ्या समाजाची सेवा हीच ईश्वरी सेवा मानणारे स्वामी नरेंद्राचार्यजी दूरदर्शी विचारसरणी, समाजाचा कळवळा, धर्माबद्दलची आपुलकी, सनातन वैदिक धर्म आणि फार प्राचीन असलेली भारतीय संस्कृती वाचली पाहिजे, टिकली पाहिजे, जगाला हीच प्रेरणा देणारी शक्ती आहे. याच हिंदू संस्कृतीमध्ये दुसऱ्याला अमृत पाजण्याचे सामर्थ्य आहे, असे निक्षून सांगून धर्म कार्य, अध्यात्मिक कार्य सर्वदूर पसरवले. नरेंद्राचार्यांनी जगण्यासाठी त्रिसुत्री सांगितली. “डोळे विज्ञानवादी ठेवा, मन अध्यात्मवादी असू द्या आणि बुद्धि वास्तववादी ठेवा.” म्हणजे ज्ञान-विज्ञान यांची सांगड घालून अज्ञानावर मात करता येईल. नरेंद्राचार्य एक उत्कृष्ट नियोजनकार, उत्तम प्रशासक प्रभावी व्यवस्थापक, उत्तम वास्तूकला तज्ञ, कवी व लेखक, उत्कृष्ट वक्ता, जिवन मार्गदर्शक, उत्कृष्ट संघटक, धर्मरक्षक, समाजसुधारक, कुशल तंत्रज्ञानी, प्रकृतीरक्षक, उत्कृष्ट समाजसेवी इत्यादी गुण असल्यामुळे अल्पावधीत ते महाराष्ट्र व गोवा राज्याच्या कानाकोपऱ्यात पोहचले.
नरेंद्राचार्यांच्या अध्यात्मिक तसेच सामाजिक कार्याचा व्याप अत्यंत सुक्ष्म नियोजनामुळे अल्पावधीमध्ये वाढला. अनेक राज्यातील अनेक जिल्ह्यांमध्ये ते हिंदु धर्म, संस्कृती, अध्यात्म आणि समाजसेवा उद्देशाने खूप प्रवास करत असतात. प्रत्येक महात नाणीजधाम सोडून ते किमान 20 ते 22 दिवस जनउद्धारासाठी प्रवास करत असतात. एवढी धावपळ असूनही त्यांनी ध्यान धारणा, साधना यांना ही अनन्य साधारण महत्व दिले आहे. संपूर्ण वर्षाच्या स्वतःच्या दिनचर्येचे कॅलेंडर बनवत असल्यामुळे प्रत्येक कार्यक्रम सुमारे दीड वर्ष अगोदरच पूर्व नियोजीत असल्यामुळे नरेंद्राचार्यांचे कार्य आणि संपर्क लोकाभिमुख होण्यास फार मदत होते. नरेंद्राचार्यांची सध्या सन 1997 सालापासून आजतागायत पर्यंत दिनदर्शिका उपलब्ध आहेत. सदर कॅलेंडर “जगद्गुरुंचे कालदर्शन” या नावाने प्रसिद्ध आहे. त्या कॅलेंडर मध्ये रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यां संदर्भात सर्व डिटेल्स उपलब्ध असतात. वैशिष्ट्य म्हणजे कॅलेंडर मध्ये नमूद असलेल्या तारखेला नमूद केलेला दिनक्रम असतो. ही खास विशेषता आहे. कारण दीड वर्ष अगोदर कॅलेंडर तयार होवून 21 ऑक्टोबर या जन्मदीनी पुढील वर्षाचे संबंधित कॅलेंडर प्रकाशित होते. या कॅलेंडर मध्ये त्यांच्या साधनेच्या ही तारखा असतात. त्या तारखेला ते ध्यान धारणा, साधना करणारच. त्यांची साधनेची ठिकाणे अत्यंत निर्भीड जंगल असते. बीड जिल्ह्यातील सौताडा (कडा), रत्नागिरी जिल्ह्यातील लांजा तालुक्यातील खोरनिनको, संगमेश्वर तालुक्यातील चाफवली चाफनाथ तसेच निवे बु.॥ येथील सिद्धेश्वर मंदिर ही त्यांची आवडीची साधनेची ठिकाणे आहेत. या व्यतिरिक्त त्यांनी अनेक ठिकाणी साधना केलेल्या आहेत. नरेंद्राचार्य साधना, सेवा, आचरण यांना फार महत्व देतात. ते स्वतः तसे जगतात आणि सर्व अनुयायांना तसे जगण्यास प्रवृत्त करतात. नरेंद्राचार्यांचे म्हणणे आहे अध्यात्म हे सांगण्याचे, ऐकण्याचे शास्त्र नसून प्रत्यक्ष जगण्याचे शास्त्र आहे. जो त्याप्रमाणे प्रत्यक्ष जगेल तोच मानवी देहाचे परम् कर्तव्य साध्य करु शकेल.
त्यांचे अल्पावधीतील कार्य नाशिक कुंभमेळा 2003 मध्ये अखिल भारतीय आखाडा परिषदेच्या काही साधूंनी अगदी जवळून पाहीले होते. त्यामुळे निर्वाणी आखाड्याचे महंत ग्यानदास महाराज हे नरेंद्राचार्यांच्या अध्यात्मिक व सामाजीक कार्यावर प्रचंड खुश होते. त्यावेळी ते अखिल भारतीय षड्दर्शन आखाडा परिषदेचे अध्यक्ष ही होते. त्यांनी नरेंद्राचार्यांना उज्जैन येथील कुंभमेळ्यात दि. 11 एप्रिल 2004 रोजी निर्वाणी आखाड्याचा शिष्य बनवून “महंत नरेंद्रदास” म्हणून साधू परिवारामध्ये अधिकृत स्विकारले. महंत नरेंद्रदास हा प्रचंड विलक्षण ताकदीचा आहे. दक्षिण भारतात वैष्णवांचे कोणतेही धर्मपीठ नसल्यामुळे महंत नरेंद्रदास यांना “जगद्गुरु रामानंदाचार्य” पदी बसवून दक्षिण भारतात वैष्णवांची भक्तीमार्गाची पताका, वैष्णव राम नामाचा प्रचार प्रसार करण्याचा मानस वैष्णवपंथीय सर्व आखाड्यांना बोलून दाखवला. महंत नरेंद्रदासांचे कार्य दिवसागणिक वाढतच चालले होते. अध्यात्म, धर्म, समाजसेवा, विविध प्रकारची कार्ये पाहून अखिल भारतीय षड्दर्शन आखाडा परिषदेने वैष्णव पंथीयांसाठी आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य यांचे “उत्तराधिकारी” म्हणून “जगद्गुरु रामानंदाचार्य” पदी महंत नरेंद्रदास यांना बसविण्याचे निश्चित केले.
दि.21 ऑक्टोबर 2005 रोजी महंत नरेंद्रदास यांचा अखिल भारतीय षड्दर्शन् आखाडा परिषदेचे अध्यक्ष महंत ग्यानदासजी महाराज, आखाडा परिषद सदस्य तसेच निर्वाणी अणी आखाडा, निर्मोही अणी आखाडा, दिगंबर अणी आखाडा, तसेच अठरा उप आखाडे, चतुः संप्रदाय, उदासिन आखाडा, बडा उदासिन आखाडा, निर्मल आखाडा आणि सर्व वैष्णव खालसे या सर्वांच्या प्रमुख उपस्थितीत जगद्गुरु रामानंदाचार्य या पदावर पटृटाभिषेक करण्यात आला. भगवान प्रभू रामचंद्रांच्या पदस्पर्शाने पुनित झालेल्या अयोध्या नगरीत हा पट्टाभिषेक सोहळा संपन्न झाला. महंत नरेंद्रदास त्यामुळे अनंत विभूषित जगद्गुरू रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य झाले. आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्यांचे उत्तराधिकारी म्हणून नरेंद्राचार्यांना संपूर्ण साधु समाजाने हिंदू धर्मगुरु आणि वैष्णव आचार्यांचे सर्व ते अधिकार सुपूर्द करुन पट्टाभिषेक केला. 21 ऑक्टोबर 2005 पासून नाणीज हे गाव नाणीजधाम झाले. आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्यांचे दक्षिणेकडील पीठ म्हणून या पीठाचे नाव “रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ - नाणीजधाम” ठेवण्यात आलेले आहे. आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य यांचे मुळ पीठ पंचगंगा घाट वाराणसी येथे असून या पीठाचे नाव श्रीमठ असे आहे. दुसरे पीठ चित्रकुट मध्यप्रदेश येथे असून त्याचे नाव तुलसीपीठ असे आहे. तिसरे पीठ नाणीजधाम महाराष्ट्र येथे असून त्याचे नाव रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ असे आहे.
भगवान प्रभू रामचंद्रांनी आपल्या अवतारकार्यात धर्ममार्तंडाच्या सांगण्यावरून एका शुद्राचा वध केला होता. त्याकाळी वैदिक उपासना करण्याचा अधिकार फक्त ब्राम्हण आणि क्षत्रियांखेरीज इतरांना नव्हता. प्रभू रामचंद्रांना ते शल्य कदाचित लागून राहिले असावे म्हणून हदू धर्म रक्षण आणि संवर्धन करण्यासाठी इ.स.1299 म्हणजेच विक्रम संवत् १३५६ माघ कृष्ण सप्तमी या दिवशी स्वतः भगवान प्रभू रामचंद्र, आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्यांच्या रूपाने जन्माला आले. आर्ष ग्रंथामध्ये असे म्हटले आहे...........
रामानंदा स्वयं रामः, प्रादुर्भुतो महितले।
म्हणजेच भगवान प्रभू रामचंद्र स्वतः रामानंदाचार्यांच्या रूपाने जन्मास आले आहेत. वैदिक सनातन धर्मातील जातीपातींची विषवल्ली मुळापासून उपटून टाकण्यासाठी आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य म्हणतात....
जात-पात पूछे ना कोई। हरी को भजे सो हरी का होई॥
नुसते म्हणाले नाहीत तर त्यांनी संत कबीरदास, संत रविदास, संत सेन नाई, संत धन्ना जाट, संत नाभा दास, अशा अनेक ब्राम्हणोत्तर समाजातील शिष्यांचा स्विकार केला होता. तसेच त्याकाळी त्यांनी संत सुरासुरी, संत पदमावती या स्त्रीयांना सुद्धा आत्मोद्धार करण्याचा अधिकार प्राप्त करुन दिला होता. त्यांनी जातीपाती हा भेद त्याकाळी मोडून काढला होता. इसवी सन 13 व्या शतकात दिल्ली सलतनचा बादशहा मोहम्मद गयासुद्दीन तुगलक या मुस्लिम शासकाचे राज्य होते. यवनांनी हिंदुंचे ईस्लामीकरण सुरू केले होते. ते रोखण्यासाठी रामानंदाचार्यांचे फार मोठे योगदान आहे. ते अपूरे राहिलेले कार्य करण्यासाठी आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य, हे नरेंद्राचार्यांच्या रुपाने जन्माला आले की काय असे वाटू लागते.
नरेंद्राचार्यांचे 1992 पासून आजपर्यंतचे कार्य, त्यांच्या विविध पुस्तकांमध्ये आलेला त्यांचा अल्प परिचय तो ही वाचला आहे. तसेच भगवान आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्यांचा परिचय त्यांच्या विविध ग्रंथांमध्ये आढळून येतो. या दोन्ही संत विभूतींच्या जिवनाचा त्यांच्या त्यांच्या ग्रथसंपदेवरुन अभ्यास केला की असे वाटते दोघांमध्ये खूप साम्य आहे. आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्यांचा आणि नरेंद्राचार्यांचा जन्मदिवस शुक्रवार. आवडता पदार्थ खीर. दोघांचेही गोत्र वशिष्ठ. तसेच गोर गरिबांबद्दल दोघांनाही कळवळा आहे. दोघेही जात-पात, सोवळे -ओवळे मानत नाहीत. दोघांचा ही सिद्धांत विशिष्टाद्वैत आहे. परमात्मा संपूर्ण चराचरात आहे. हरी आणि हर या दोघांना व्यापून उरलेले ब्रम्ह, अणू रेणूपासून संपूर्ण ब्रम्हांडापर्यंत व्याप्त आहे . दोघे ही वैदिक सनातन धर्माबद्दल प्रचंड जागृत, आपला हिंदू धर्म टिकवण्यासाठी अगदी तळागाळातल्या सामान्यांपासून असामान्यांपर्यंत धर्माची वीण मजबुत कशी राहील यासाठी सातत्याने विविध प्रयत्न, दोघांचेही साहित्यीक योगदान, दोघांनीही धार्मिक शिक्षणाद्वारे समाजामध्ये महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आणलेले आहे, शिक्षण, बेरोजगारी, आपत्ग्रस्तांना मदत, अशी अनेक कार्ये दोघांचीही समाजभिमुख आहेत.
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेद्राचार्य यांच्यामध्ये अनेक अष्टपैलु गुण आहेत. ते अभ्यासण्याजोगे आहेत.
1. उत्कृष्ट नियोजनकार-
1 जानेवारी ते 31 डिसेंबर या संपूर्ण 365 दिवसांसाठी आपल्या दैनंदिनीचे पुढील वर्षाचे संपूर्ण नियोजन करुन कुठे, कधी, कशासाठी जायचे हे अत्यंत सुत्रबद्ध ठरवून नविन वर्ष सुरु होण्यापूर्वी किमान सहा महिने अगोदर कॅलेंडर रुपाने प्रकाशित करुन त्याप्रमाणे एकही दिवस मागे पुढे न होता दैनंदिनीचे पालन करणे आणि ते ही सन 1997 सालापासून आजतागायत प्रत्येक दिवस घडवून आणणे हे सहज आणि सोपे काम नाही. अत्यंत सुक्ष्म असे नियोजन असल्यामुळेच हे शक्य होत आहे.
कोणतेही कार्य करताना इतके सुक्ष्म नियोजन असते त्यामुळे जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी हाती घेतलेले प्रत्येक कार्य बिनचुक होत असते. समाजासाठी आणि समाजाच्या उद्धारासाठी अनेक कार्य आज लोकाभिमुख आहेत.
2. प्रशासक व व्यवस्थापक-
जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान, संजिवन ट्रस्ट अशा विविध संस्था समाजकार्य करण्याकरीता स्थापन करुन त्यांना प्रत्येकाला दिशादर्शक अत्यंत उत्तम नियोजन करुन देणे, त्यांच्या करवी बिनचूक सेवाकार्य करुन घेणे, सर्वांचा उत्तम समन्वय साधून त्यांचा फॉलअप घेणे, प्रत्येकामध्ये समाजकार्य करण्यासाठी प्रेरणा निर्माण करुन देणे, त्यांचे कार्य सुचारुपणे चालण्यासाठी विविध सॉफ्टवेअर निर्माण करुन त्यामार्फत सहज कार्य करण्यास उपलब्धी निर्माण करुन देणे हा जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांचा विशेष समन्वयक गुण आहे.
3. उत्तम वास्तूकला तज्ञ-
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांचे मुख्य पीठ नाणीजधाम असून या पीठाची अन्य बारा उपपीठे आहेत. या सर्व पीठांवर समाजाच्या कल्याणासाठी, मानसिक शांततेसाठी, मानवातील अध्यात्मिक प्रगतीसाठी, प्रपंच आणि परमार्थिक समन्वय साधून व्यक्तिगत उन्नतीसाठी येणाऱ्या लाखों भाविकांना आवश्यक असणाऱ्या गरजा आणि सोयी सुविधा त्या त्या पीठावर निर्माण करण्यासाठी त्या पीठाच्या क्षेत्राचा ले-आऊट बनवणे असो किंवा त्यातील विविध प्रकारच्या इमारती असोत किंवा मंदिरे असोत किंवा लाखों लोकांशी संपर्क साधण्यासाठी व्यासपीठाची इमारत असो किंवा लाखों लोकांनी एकाचवेळी एका ठिकाणी बसून प्रवचने ऐकण्याची जागा असो या सर्व गोष्टी अत्यंत उत्तम वास्तूनिर्माण करण्याचे श्रेय जगद्गुरु श्रीं कडे जाते. नाणीजधाम पीठाचा संपूर्ण डोंगर कंटूर चा अभ्यास करुन त्याला कोणतीही क्षिती न पोचवता आपल्याला आपल्या सामाजिक कार्यासाठी सोयी सुविधा उभ्या करुन निसर्गाची सुंदरता अबादित राखणे हा खरच एक साक्षात्कार आहे. जगद्गुरुश्रींची प्रत्येक पीठासाठी स्वतःची एक थीम असून जागेच्या क्षेत्रफळाप्रमाणे लाखो लोकांना त्याचा उपयोग कसा होईल यासाठी त्या त्या परस्थितीनूसार थीम देणे व प्रत्यक्षात तशी करुन घेणे हे फार कठिण आहे. परंतू आज ते प्रत्यक्षात पहावयास मिळते.
4. कवी व लेखक-
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य हे स्वतः कवी आहेत. जगद्गुरुश्रींनी अवघ्या अठरा दिवसात श्री लिलामृत नावाचा पद्यस्वरुपात 3051 ओव्यांचा ग्रंथ लिहीला आहे. प्रापंचिक जिवाने अध्यात्माची आणि संस्कारांची कास धरुन आपले जिवन उत्तम प्रकारे कसे जगावे? हे या ग्रंथामध्ये सामान्य व्यक्तिला समजेल या भाषेत सांगितलेले आहे. याशिवाय अनेक विषयांवर अनेक अभंग आहेत. भजनमाला नाणीजधाम या पुस्तकातून प्रकाशित झालेले आहेत. त्यांची अनेक अध्यात्मिक पुस्तके सुद्धा प्रकाशित झालेली आहेत. हिंदू धर्म आणि संस्कृती या विषयावर त्यांचे दररोज लेक्चर सुरु आहे. व त्यामार्फत डिजीटल गद्य स्वरुपात ग्रंथ निर्मीती सुरु आहे.
5. उत्कृष्ट वक्ता-
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांचे वक्तृत्व अतिशय प्रभावी असते. समाजातील अगदी तळागाळातील सामान्यातील सामान्य माणूस त्यांच्या वैचारीक विचारधारेमुळे त्यांच्याशी जोडला गेला आहे. कोणताही विषय सोपा करुन कसा सांगायचा हे अत्यंत कुशल कौशल्य जगद्गुरुश्रीं जवळ आहे.
6. जिवन मार्गदर्शक-
मानवी जिवनामध्ये अनेक चढउतार येत असतात. अशावेळी माणूस हतबल होतो चुक काय? बरोबर काय? हे न विचारात घेता जिवनात अनेक चुकीचे निर्णय घेवून बसतो. अशा दुःखपीडीत व्यक्तीना जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य अत्यंत मोलाचे मार्गदर्शन करतात. तुमचे डोळे विज्ञानवादी ठेवा, मन अध्यात्मवादी आणि बुद्धी वास्तववादी ठेवून जगा. ही त्रिसुत्री त्यांनी समाजातील रंजल्या गांजलेल्या दुःखपीडीतांना दिली आहे. स्वतः जगद्गुरु असून ही सामान्य लोकांमध्ये मिसळून त्यांना जगण्याची हिम्मत उभी करतात. ज्ञान, विज्ञान यांची सांगड घालून कसे जगावे आणि अज्ञान म्हणजेच अंधश्रद्धापासून स्वतःला कसे दुर ठेवावे याचे सुंदर मार्गदर्शन अहोरात्र करत आहेत. त्यामुळे भारतातील अनेक राज्यात त्यांच्यावर जिवापाड प्रेम करणारा मोठा वर्ग निर्माण झालेला आहे. तुमच्यातील संयम, समयसुचकता, प्रग्लबता, साधक-बाधक विचार करण्याची क्षमता, खिलाडू वृत्ती, चिकाटी, दुरदर्शीपणा, नेतृत्व करण्याचा गुण भक्तीमुळे विकसित होतो. भक्ती मनाचे संगोपन आणि संवर्धन करते. माणूसकी नावाचा धर्म उदयास येतो आणि त्यामुळे सामान्य माणूस प्रपंच करता करता परमार्थीक बनतो.
7.उत्कृष्ट संघटक-
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी आपल्यातील उत्कृष्ट संघटक या गुणामुळे लाखों लोकांना संघटनात्म बांधणी करुन एकत्र आणलेले आहे. त्यामध्ये मोठ्या प्रमाणात युवावर्ग आहे. युवा सेना, महिला सेना, हिंदू संग्राम सेना, पुरुष सेना अशा विविध संघटना बांधून त्यांच्या करवी जगद्गुरु रामानंदाचार्य समाजासाठी त्यांच्या मार्फत अनेक समाजपयोगी अनेक सेवा करुन घेत आहेत. विशेष म्हणजे विविध वयोगट, विविध शैक्षणिक पात्रता, विविध आर्थीक स्तर, विविध जाती-पाती, विविध जेंडर या सर्वांना समाजाची सेवा करण्यासाठी उद्युक्त करणे आणि आज अनेक वर्षे या संघटनांच्या माध्यामतून विविध स्तरांवर समाजाची पूर्णतः विनामुल्य सेवा करणे तसेच या सर्व विविधतेला उत्तम प्रकारे आपल्या प्रेमबलाने संघटीत करुन ठेवणे आणि अहोरात्र समाजाच्या सेवेसाठी कार्यान्वित ठेवणे हे कार्य उत्तम संघटका शिवाय शक्यच नाही.
8. धर्मरक्षक -
हिंदू धर्मातून परधर्मात गेलेल्या लाखों कुटूंबांना जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी पुनःश्च स्वधर्मात आणले आहे. हे कार्य सतत सुरुच आहे. त्यांचे हजारोंच्या संख्येने रोटीबेटी व्यवहार स्वतः जगद्गुरुश्रींनी सुरु करुन दिले आहेत. ते खंबिरपणे हिंदू बांधवांच्या पाठीशी उभे आहेत. हिंदू समाज भय विरहीत राहीला पाहिजे यासाठी ते अनेक वेळा जनजागरण करत असतात. कुंभमेळ्यांच्या ठिकाणी हदू धर्म खतरे मे है।, डरेंगे तो मरेंगे ।, सभी हदूओं मे एकता हो।, सनातन सात्विक है, पर कायर नही। अशा अनेक प्रकारचे वेळावेळी जनजागरण करत असतात. भगवान आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य यांची शिकवण
जात-पात पूछे ना कोई। हरी को भजे सो हरी का होई॥
या संदेशाप्रमाणे जगद्गुरु रामानंदाचार्य श्री स्वामी नरेंद्राचार्यांनी समाजातील जातीभेद कमी करण्याचे प्रयत्न सुरु केलेले आहेत. त्यांच्या रामानंद संप्रदायामध्ये जातीभेद, वर्ण व्यवस्था या ऐवजी माणसातील देव शोधण्यावर जास्त भर दिला जातो. अध्यात्मिक संस्कार करुन हिंदू संस्कृती जतन करण्याचे कार्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजी करत आहेत. अध्यात्मिक सुसंस्कारांमुळेच माणूस देवत्वापर्यंत पोहचू शकतो. वेदांनी निर्देश केलेल्या महावाक्यांची प्रचिती म्हणजेच तत्वमसी अनुभव घेण्याकरीता आपल्यातील दुर्गूण सोडा आणि सद्गुणांची जोपासना करा. धर्माने सांगितलेले संस्कार आणि संस्कृतीचे जतन करा. आपोआपच तुमच्या धर्माचे संवर्धन होईल. जगद्गुरुश्रींचे म्हणणे आहे धर्माचे रक्षण करणाऱ्यांचे धर्म रक्षण करतो.
9. समाजसुधारक -
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य धर्मासोबत विज्ञानालाही अनन्य साधारण महत्व देतात. त्यांची शिकवण आहे ‘तुम्ही जगा, दुसऱ्याला जगवा’. या शिकवणी नूसार अध्यात्म आणि विज्ञान यांची सांगड घालून जगा. अध्यात्म आत्मउद्धारासाठी असून भौतिक उद्धारासाठी विज्ञानाची गरज आहे. आपले डोळे विज्ञानवादी असले पाहीजेत, मन अध्यात्मवादी आणि बुद्धी वास्तववादी अशी त्रिसुत्री जिवनासाठी देतात. जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी आजवर शेकडो मरणोत्तर देहदान समाजाकडून करुन घेतले आहेत. त्यासोबत अवयवदान हे सुद्धा मोठ्याप्रमाणात करण्याचे काम सुरु आहे. समाजाला अध्यात्मिक मार्गाने समजावून सांगून मरणोत्तर देहदान करण्यास प्रवृत्त करणे ही एक प्रकारची क्रांतीच आहे. आपल्या नातेवाईकाचा देह उदयन्मुख डॉक्टर बनण्यासाठी विनामुल्य देणे, शिवाय कोठेही गुणगौरव नाही, पारितोषीके नाहीत पूर्णतः निस्पृह वृत्तीने समाजाने हे कार्य करणे केवढी मोठी क्रांती आहे!
हिंदू धर्माचे रक्षण, संवर्धन, जतन करण्यासाठी विविध कर्मकांडे आवश्यक आहेत. उदा. विविध पूजाविधी, शांतीविधी, याज्ञिकी विधी अशी अनेक कर्मे धर्माच्या रक्षणासाठी कार्यान्वित असणे काळाची गरज आहे. अशा विधी पुरोहीतांची संख्या हळू हळू कमी होत असल्यामुळे खेडोपाडी ग्रामीण भागात आर्थिक दृष्ट्या दुर्बल घटकांमधून बंद पडत चालल्या आहेत. त्यामुळे धर्म आणि त्याचे संस्कार लोप पावण्याच्या मार्गावर असल्यामुळे हिंदू धर्मातील विविध जातीच्या मुला-मुलींना पौरोहित्याचे शास्त्रोक्त शिक्षण देवून धर्म आणि संस्कृती जतन करण्याचे काम आज अनेक वर्षे सुरु केलेले आहे. व्यसनमुक्तीच्या विळख्यात समाज अडकलेला आहे. विशषतः देशाचे भावी भविष्य म्हणजे युवा. या युवा वर्गाला व्यसनांच्या विळख्यातून बाहेर काढण्याचे काम सन 1992 पासून सुरु आहे. आतापर्यंत चार ते पाच लाख लोक व्यसनमुक्त केले असून त्यांना अध्यात्म आणि विज्ञानाची सांगड घालून सावरण्याचे काम अहोरात्र सुरु आहे. जगात सक्षमपणे उभे राहायचे असल्यास इंग्रजी भाषेशिवाय पर्याय नाही हे जाणून जगद्गुरुश्रींनी सीबीएसई बोर्डाची पूर्णतः विनामुल्य नर्सरी पासून अगदी ग्रॅज्युएशन पर्यंत शिक्षण संकूल उभे केले आहे. विविध जाती धर्मातील मुले या संकुलातून शिक्षण घेवून मोठ्या ताठ मानेने बाहेर पडत आहेत. ही पूर्णतः इंग्रजी माध्यमाची शाळा असली तरी येथे वैदिक धर्माचे संस्कार प्रत्येक मुलांवर केले जातात.
10. कुशल तंत्रज्ञानी-
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य अध्यात्म, धर्म, संस्कृती, संस्कार, समाजसेवा या विविध विषयांवर पूर्णतः विनामुल्य सेवाकार्य करत आहेत. ही सेवाकार्य अत्यंत सुचारुपणे चालण्यासाठी तसेच कमी वेळात अधिक लोकांपर्यंत पोहचण्यासाठी, कार्यामध्ये गतिमानता येण्यासाठी इन्फॉरमेशन टेक्नॉलॉजीचा अतिशय उत्तम उपयोग केलेला आहे. जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांबरोबर आय.टी. क्षेत्रातील 150 ते 200 आय. टी. इंजिनिअर सेवाकार्यात जोडलेले आहेत. त्यांच्या मदतीने संप्रदाय, संस्थान, समाजसेवी संघटना चालवण्यासाठी जगद्गुरुश्रींनी स्वतःची 17 ॲप्लीकेशन (सॉफ्टवेअर) बनवलेली आहेत. यामध्ये वैशिष्ट्य असे, या सॉफ्टवेअरची संपूर्णतः रिक्वायरमेंट जगद्गुरुश्रींची असते. त्यासोबत कोणतेही सॉफ्टवेअर व्यवस्थित चालण्यासाठी त्यामध्ये लॉजिक हे फार महत्वाचे असते. या 17 ॲप्लीकेशनला किमान 70 ते 80 टक्के लॉजिक जगद्गरुश्रींनी दिलेले आहे. आठवड्यातील सात ही दिवस सकाळी 7 ते 8 या कालावधीत या सॉफ्टवेअरच्या संबंधित आय. टी. तज्ञांशी बारचाट प्रमाणे डेव्हल्पमेंट बद्दल तसेच नव नविन रिक्वायरमेंट बद्दल स्वतः जगद्गुरुश्री व्यस्त असतात. त्यांनी बांधून घेतलेल्या सॉफ्टवेअरमुळे सामान्यातील सामान्य माणूस संप्रदाय, समाजसेवी संघटना, संस्थान यांच्याशी जोडला गेला आहे. त्यामुळेच जगद्गुरु रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ नाणीजधामची उत्तरोत्तर प्रगती होताना दिसत आहे.
11. प्रकृतीरक्षक -
विश्वावर ग्लोबल वॉर्मिंगचे महाभयंकर संकट येवून ठेपले आहे. यामध्ये जीवमात्रांची प्रचंड हानी होत आहे. ती टाळण्यासाठी जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी यावर कार्य सुरु केलेले आहे. लोकांमध्ये जागृती होण्याकरीता त्यांच्या विविध पीठांवरुन पदयात्रांनी लोक जनजागरण करत, समाजप्रबोधन करत श्रीक्षेत्र नाणीजधाम येथे दरवर्षी येत असतात. या पदयात्रांमध्ये हजारोंच्या संख्येने लोक सहभागी झालेले असतात. पाणी अडवा, पाणी जिरवा. वृक्षारोपण करा. जलाशयाचे साठे जतन करा. ते खराब करु नका. प्लास्टीकचा वापर टाळा. अशा प्रकारचे जनजागरण करत या पदयात्रा हजारो मैल प्रवास करुन येतात. सन 2023 पासून हे कार्य सुरु आहे. आपल्या पीठांवर वृक्षारोपण करुन घेत आहेत. सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बांधत आहेत. मोठ्या प्रमाणात सौर ऊर्जा निर्मीती करत आहेत. नेट झिरो उपक्रम राबवून पीठांच्या आवारातील उत्सर्जित झालेला कार्बनडायऑक्साईड नष्ट करण्याचे काम करण्यासाठी विविध स्तरांवर कार्य सुरु केलेले आहे. आपल्या अनुयायांच्या माध्यमातून अनेक वृक्ष लावून घेत आहेत. ग्रामस्वच्छता, मंदिर परिसर स्वच्छता, गावातील सार्वजनिक ठिकाणे स्वच्छ करणे, कच्चे बंधारे घालून पाणी अडवणे अशी विविध प्रकृतीरक्षणासाठी कार्ये सुरु आहेत.
12. उत्कृष्ट समाजसेवी-
नैसर्गिक प्रकोपाच्या वेळी जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य स्वतः धावून जातातच. परंतू त्यांचे लाखों अनुयायी पूर, आग, भूकंप, कोवीड-19 अशा विविध नैसर्गिक प्रकोपाच्या वेळी विविध प्रकारची मदत घेवून जातात. मुंबई, चिपळून, महाड व महाराष्ट्रातील अनेक ठिकाणी महापूरामध्ये विविध प्रकारची मदत घेवून जगद्गुरुश्रींचे अनुयायी गेले होते. आग, भूकंप इत्यादी वेळी सुद्धा अनेकवेळा अनेक ठिकाणी मदत केलेली आहे. कोवीड-19 मध्ये जगद्गुरुंच्या अनेक ॲम्बुलन्स महाराष्ट्र सरकारला कोवीड परिस्थिती हाताळण्यासाठी दिल्या होत्या. कोट्यावधी रुपये मुख्यमंत्री आणि पंतप्रधान फंडाला दिले आहेत. अन्नधान्य, औषधे इत्यादी या काळामध्ये मदत केलेली आहे.
जगद्गुरु रामानंदाचार्यांच्या 53 ॲम्बुलन्स सन 2010 पासून महाराष्ट्राच्या राष्ट्रीय महामार्गांवर अहोरात्र विनामुल्य सेवा बजावत आहेत. अपघात झालेल्या व्यक्तींना कमीत- कमी वेळात नजिकच्या हॉस्पीटलला पोहचवून त्यांचे प्राण वाचवणे हा या सेवेचा मुख्य उद्देश आहे. याशिवाय दरवर्षी लाखो रक्तबाटल्या किडणी फेल्युअर, थॅलेसिमीया, सिकलसेल, ब्लड कॅन्सर अशा रुग्णांना महाराष्ट्र सरकारच्या रक्तपेढ्यांना विनामुल्य रक्त पुरवून या आजारांनी त्रस्त असणाऱ्या रुग्णांची सेवा सुरु आहे. याशिवाय गरजु व्यक्तिना त्यांच्या मागणीप्रमाणे जगद्गुरुश्रींच्या ब्लड-इन-नीड या सेवेमार्फंत दरवर्षी हजारो रुग्णांना विनामुल्य रक्तपुरवुन त्यांच्या आजारपणात मदत केली जाते. आदिवासी मुलांना मोटर ड्रायव्हींग प्रशिक्षण तसेच त्यांना लायसन्स काढून देवून रोजगाराची संधी उपलब्ध करुन देण्याचे काम सुरु आहे.
समाजातील आर्थिकदृष्ट्या दुर्बल घटकांना शेळ्यामेंढ्या, गाई-म्हशी, घरघंटी, मोठी पीठाची चक्की, शिलाई मशिन, कृषी अवजारे, बी-बियाणे यांचे संप्रदायाच्या माध्यमातून मोठ्या प्रमाणात दरवर्षी वितरण केले जाते. हे आणि असे अनेक समाजपयोगी गोरगरिब, हीनदीन, दुःखपीडीत समाजाला सकारात्मक ऊर्जा देण्याचे काम जगद्गुरुश्री करत आहेत.
रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य म्हणजे जढमुढांच्या उद्धारासाठी भगवंताकडून मिळालेली एक खास भेटच आहे. तुमचे डोळे विज्ञानवादी ठेवा, मन अध्यात्मवादी असूद्या आणि बुद्धि वास्तववादी अशी त्रिसूत्री जनसामान्यांना देवून सर्वांचे जीवन सुखमय बनवणारे रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य कुशल संघटक गुणांमुळे लाखों अनुयायी संघटीत करु शकले. अनुयायां मार्फत जनसेवेची चळवळ उभी करुन समाजासाठी मोठ्या प्रमाणात अनेक सेवा सुरु केल्या आहेत. रंजले गांजल्यांची सेवा हीच भगवंताची भक्ती असा हितोपदेश करणाऱ्या नरेंद्राचार्यांनी जनकल्याणाचा, उन्नतीचा जणू महायज्ञच सुरु केला आहे. रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य आपल्या लाखों अनुयायांमार्फत अखिल प्राणीमात्रांसाठी विविध प्रकारची सेवा कार्ये करत आहेत. सर्व सेवाकार्य पूर्णतः विनामुल्य आहेत. रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांचे वैशिष्टय असे आहे, सुरु केलेले सेवाकार्य कधीही बंद पडत नाही उलट सेवाकार्याचा विस्तार होत असतो. नरेंद्राचार्यांवर भगवान आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्यांचा पूर्णतः कृपाआशिर्वाद असल्याचे द्योतक आहे. रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य करत असलेली सेवाकार्य- त्यांची संक्षिप्त माहीती............
1.शैक्षणिक सुविधा- सीबीएसई बोर्डाची नर्सरी ते बारावी पर्यंत इंग्रजी माध्यमाचे शाळा व कॉलेज घालून ग्रामीण भागातील गरीब गरजु मुलांसाठी शिक्षणाची विनामुल्य सोय केली आहे.
2. वेदपाठशाळा- हिंदू धर्मातील सर्व जातीच्या युवांना पौरोहित्याचे शिक्षण देवून युवांचे आर्थिक सक्षमिकरण त्याचबरोबर धर्माचे रक्षण व बळकटीकरण आणि हिंदू धर्मातील प्रथा परंपरा जागृत ठेवण्याकरीता वेदपाठशाळा घालून शास्त्रोक्त ज्ञान उपलब्ध करुन दिले आहे.
3. मुलींची वेदपाठशाळा- हिंदू धर्मातील सर्व जातीच्या मुलींना पौरोहित्याचे शिक्षण देवून त्यांचा आर्थिक स्तर उंचावणे त्याचबरोबर धर्म रक्षणासाठी त्यांना सहभागी करुन नारी शक्तीचा आदर समाजामध्ये प्रस्तापित करणेसाठी खास मुलींची वेदपाठशाळा निर्माण केली आहे.
4.ॲम्बुलन्स सेवा- राष्ट्रीय महामार्गांवरील अपघातग्रस्तांसाठी 24 तास विनामुल्य ॲम्बुलन्स सेवा निर्माण करुन अपघातग्रस्तांचे प्राण वाचवण्यासाठी ही सेवा सुरु केलेली आहे.
5. आरोग्य शिबीरे- रामानंदाचार्य पीठांवर वर्षातून अनेकवेळा उत्सवाच्या कारणाने लाखों लोक जमा होत असतात. अशावेळी गरीब गरजु व्यक्तींकरीता तज्ञ डॉक्टरांमार्फत वेगवेगळ्या आजारांची आरोग्य शिबीरे सातत्याने घेतली जातात.
6. व्यसनमुक्ती- दुर्व्यसनांच्या आहारी गेलेल्या युवा पीढीला व्यसनमुक्तीद्वारे सुधरवण्यासाठी दरमहा हा उपक्रम राबवून भारत देशाचे भविष्य उज्वल करणाऱ्या युवा पीढीला व्यसनांच्या विळख्यातून मोठ्याप्रमाणात बाहेर काढण्याची सेवा सुरु आहे.
7. अंधश्रद्धा निर्मुलन- देशाच्या आणि समाजाच्या उन्नतीसाठी अंधश्रद्धेत अडकलेल्या लाखों व्यक्तींमध्ये जावून अध्यात्मिक प्रबोधनातून त्यांचे मनोबल उंचावून त्यांच्यामध्ये अध्यात्म व विज्ञानवादी दृष्टीकोन निर्माण करुन अंधश्रद्धांचे निर्मुलन करुन समाजाचे मानसिक स्वास्थ्य आबादीत राखण्याचे कार्य सुरु आहे.
8. कृषी उपक्रम- गरजु गरीब शेतकऱ्यांना बी-बीयाणे, शेतीची अवजारे विनामुल्य पुरवून देशातील शेतकरी कृषी प्रदान बनवण्यासाठी कृषी विषयक सेवा केली जाते.
9. आपत्कालीन मदत - महापूर, भुकंप, आवर्षण, महामारी किंवा कोरोना सारखी आपत्कालिन स्थिती निर्माण होते त्या त्या वेळी औषधे, कपडालत्ता, अन्नधान्ये तसेच नैसर्गिक प्रकोपानंतर रोगराईचे साम्राज्य पसरु नये म्हणून हजारो अनुयायांच्या माध्यमातून स्वच्छतेसाठी श्रमदान इत्यादी विविध प्रकारची मदतरुपी सेवा केली जाते.
10. विकलांग सेवा- समाजातील अंध, अपंग, कर्णबधिर इत्यादी व्यक्तींसाठी स्टिक, व्हीलचेअर, कृत्रिम अवयव, श्रवणयंत्र इत्यादींसारखी उपकरणे देवून विकलांग सेवा केली जाते.
11. दुर्बल घटक संगोपन- आर्थिक दृष्टया दुर्बल घटकांच्या सेवेसाठी घरघंट्या, पीठाच्या चक्क्या, शेळ्या मेंढ्या, गायी-म्हशी, शिलाई मशिन, तसेच आर्थिक दृष्ट्या सक्षमिकरण्यासाठी विविध प्रकारची मदत करुन दुर्बल घटकांची सेवा केली जाते.
12. उपपीठांची निर्मीती- भारतीय संस्कृती, तीचे संस्कार आणि भक्तीमार्ग सर्व दुर पसरवण्यासाठी विविध राज्यांमध्ये रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ नाणीजधामची अनेक उपपीठे निर्माण करुन त्या उपपीठांच्या कार्यक्षेत्रांमध्ये येणाऱ्या जिल्ह्यांमध्ये प्रत्यक्ष जावून वैदिक सनातन धर्म जागृतीचे कार्य व्यापक स्वरुपात केले जाते. त्यातून मनःशांती, बंधुभाव, सद्गुणांची वाढ करुन घेतली जाते.
13. भक्तीमार्गाचा प्रचार- जगद्गुरु रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ नाणीजधामच्या विविध उपपीठांवर उपासना केंद्रे, यात्रीनिवास, धर्मशाळा, अन्नछत्रालये उभारुन समाजाच्या मनःशांतीसाठी तसेच विश्वबंधुत्वासाठी उपपीठांच्या माध्यमातून सेवाकार्य सुरु आहेत.
14. वारी उत्सव सोहळे- वैदिक सनातन धर्मातील उत्सव, प्रथा परंपरा, सणवार, शिकवण्यासाठी लाखों लोकांना एकत्र आणून त्यांच्यामध्ये बंधुभाव, प्रेम, सलोखा निर्माण होण्याकरीता वर्षातून अनेकवेळा वारी उत्सव साजरे केले जातात. या वारी उत्सवाच्या अनुषंगाने लाखों लोक एकत्र येतात. त्यामुळे त्यांच्या सेवेसाठी आवश्यक त्या सोयी सुविधा सेवा सुरु आहे.
15. .ग्लोबल वॉर्मिंग जनजागरण पदयात्रा- विश्वावर आलेले ग्लोबल वॉर्मिंगचे संकट दुर होण्यासाठी युवा-युवतींच्या माध्यमातून दरवर्षी “वसुंधरा पायीदिंडी” या नावाने पदयात्रा काढली जाते. हजारोंच्या संख्येने या पदयात्रेत लोकांचा सहभाग असतो. गोवा, तेलंगणा आणि महाराष्ट्र या राज्यातून या पदयात्रा येतात. महाराष्ट्र राज्यातील जवळजवळ सर्व जिल्ह्यांमध्ये या पदयात्रांच्या निमीत्ताने व्यापक जनजागरण होते. जगद्गुरु रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ नाणीजधामच्या नागपूर, परभणी, नाशिक, पूणे, मुंबई, गोवा, तेलंगणा या उपपीठांवरुन या पदयात्रा ग्लोबल वॉर्मिंगचा धोका समजावून सांगत, वृक्ष लागवड करत हजारो हजारो मैलांचा प्रवास करुन येत असतात. दरवर्षी माहे 11 सप्टेंबर ते 21 ऑक्टोबर या कालावधीत रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ नाणीजधाम कडे येत असतात.
16. नेट झिरो- निसर्गाचा बिघडलेला समतोल लक्षात घेवून रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ नाणीजधामच्या अनेक उपपीठांवर ग्लोबल वॉर्मिंगसाठी बचावासाठी नेट झिरो करण्याचा प्रयत्न सुरु झालेला आहे. मोठ्या प्रमाणात या उपपीठांवर वृक्ष लागवड केली गेलेली आहे, सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बांधले आहेत, सौर ऊर्जा निर्मीती करत आहेत, एनर्जी व्यवस्थापन, वेस्टेज नियंत्रण व्यवस्थापन, पाणी अडवून ते जिरवण्याचे काम आणि असणारे पाणी दुषित होणार नाही असे व्यवस्थापन, वापरात येणारे मटेरिअल प्रदुषण विरहीत करणारे व्यवस्थापन, लँड स्केपग च्या माध्यमातून पर्यावरण व्यवस्थापन, अशाप्रकारे नेट झिरो उपक्रम राबवून ग्लोबल वॉर्मींग टाळण्याचा प्रयत्न सर्वच पीठांवर सुरु केलेला आहे.
17. हरितक्रांती सेवा- महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तेलंगणा इत्यादी राज्यांमध्ये 1100 गावे हरित गावे करण्याचा संकल्प केलेला असून प्रायोगिक तत्त्वावर त्यातील काही गावांमध्ये हरित क्रांती करण्यास सुरुवात केलेली आहे.
18. आदिवासी युवकांना स्वावलंबन शिकवणे- महाराष्ट्रातील ठाणे, पालघर या आदिवासी जिल्ह्यांमधील युवकांना स्वयंरोजगार उपलब्ध व्हावा याकरीता मोटर ड्रायव्हिंग प्रशिक्षण स्कुल निर्माण करुन युवकांना चालक बनवण्याचे काम मोठ्या प्रमाणात सुरु आहे. त्यातील अनेक युवक वाहनांवर चालक म्हणून ड्रायव्हिंग करुन स्वावलंबी झालेले आहेत.
19. धर्मजागरण सेवा- भारतीय संस्कृती, तिचे संस्कार, इतिहास, धर्म इत्यादी शिक्षणासाठी धर्मक्षेत्र नाणीजधाम मासिक पत्रिका सुरु करुन धर्म जनजागरणाचे काम व्यापक प्रमाणात सुरु आहे.
20. हिंदू नववर्ष स्वागत सेवा- हिंदू नववर्ष, हिंदू संस्कृती, तिचा प्रचार-प्रसार व्हावा याकरीता दरवर्षी महाराष्ट्रातील प्रत्येक जिल्ह्यात भव्य स्वरुपात शोभायात्रा काढून धर्माचा प्रचार-प्रसार करण्याचे कार्य सुरु आहे.
21. पादुका दर्शन सोहळे- वैदिक सनातनी लोकांना अध्यात्म, भक्तीमार्ग, उपासना इत्यादी बाबतचे ज्ञान देण्याकरीता अनेक राज्यांमध्ये पादुका दर्शन सोहळे आयोजित करुन हजारोंच्या संख्येने हिंदू बांधवांना संघटीत केले जाते. त्या दर्शन सोहळ्यांत प्रवचनांच्या माध्यमातून तसेच उत्तर भारतातील काही राज्यांमध्ये श्रीकथांच्या माध्यमातून जनजागरण करण्याचे व्यापक कार्य सुरु आहे.
22. डिजिटल माध्यमातून धार्मिक शिक्षण- रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य दररोज लाखों लोकांना डिजीटल एपीकेच्या माध्यमातून स्वतः अध्यात्मिक शाळा घेतात. त्या वर्गामार्फत धर्म, संस्कृती, ज्ञान-विज्ञान, अंधश्रद्धा, हिंदू धर्मातील सोळा संस्कार, विविध ग्रंथ इ. अनेक विषयांवर शिकवून त्या वर्गात सहभागी असलेल्या व्यक्तींचे प्रश्नोत्तराच्या माध्यमाने शंका समाधान करुन धर्माची वीण बळकट करत आहेत.
आधिकारिक डिजिटल माध्यम
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23. ग्रंथ संपदा- जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वतः कवी आणि लेखक असल्यामुळे सामान्य माणसाला समजेल अशी अनेक अध्यात्मिक ग्रंथ संपदा, तसेच अभंग लिहून समाज प्रबोधनाचे कार्य सुरु आहे.
24. युवाशक्ती संघटन- वैदिक सनातन धर्माचे रक्षण, संवर्धन तसेच प्रचार-प्रसार होण्याकरीता सोळा ते पंचेचाळीस वयोगटातील लाखों युवा-युवतींना रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ, नाणीजधाम अंतर्गत युवा सेना स्थापन केली आहे. या युवासेनेच्या माध्यमातून युवा-युवतींना संघटीत करुन त्यांच्यामध्ये धर्म प्रेम, देशप्रेम, समाज प्रेम जागृत केले आहे. त्यामुळे नरेंद्राचार्यांना जोडलेला युवावर्ग आपले करिअर सांभाळून समाजहिताची अनेक सेवाकार्य करत आहेत.
25. नारीशक्ती संघटन- रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ, नाणीजधाम अंतर्गत विविध वयोगटातील महिला वर्गाला एकत्र आणून महिला सेना नावाची स्वतंत्र विंग स्थापन केलेली आहे. या महिला सेनेमार्फत धर्म, अध्यात्म, संस्कार हे कार्य उर्वरीत समाजाला शिकवले जाते. महिला सेनेतील महिलांचे सक्षमिकरण करण्यासाठी विविध क्षेत्रातील तज्ञ व्यक्तींना पाचारण करुन महिलांना विविध विषयांवर मार्गदर्शन केले जाते. महिलांचे आरोग्य, कुटूंबाची काळजी, स्व-संरक्षण, करिअर मार्गदर्शन इत्यादी अनेक विषयांवर मेळावे घेवून प्रबोधने केली जातात.
26. हिंदू धर्महित रक्षण- हिंदू धर्मावर अनेक लोक विविध प्रकारची आक्रमणे करतात. धर्म, संस्कृती, संस्कार यांच्यावर होणारा अन्याय दुर होण्यासाठी हिंदू संग्राम सेने मार्फत अन्यायांना वाचा फोडण्याचे काम केले जाते.
27. अध्यात्मिक ज्ञान वारसा जतन- अध्यात्मिक ज्ञानाचा तसेच भक्तीमार्गाचा प्रचार-प्रसार होण्याकरीता हजारोंच्या संख्येने प्रशिक्षित प्रवचनकार तयार करण्यासाठी ज्ञानपीठाची निर्मीती करुन विविध भाषेतील प्रवचनकार तयार केले जात आहेत.
28. वैदिक सनातन वारसा जतन- हिंदू धर्मातील होणाऱ्या सर्व कुंभ मेळ्यांच्या ठिकाणी आरोग्य, आपत्कालीन मदत, स्वच्छता, अन्नदान, धर्म जागरण तसेच मोठमोठे धर्म जागृतीचे होल्डींग्स लावून हिंदु धर्माला संघटीत करण्याचे, जागृत करण्याचे आणि धर्माभीमानी बनवण्याचे काम प्रत्येक कुंभ मेळ्यात केले जाते.
29. साप्ताहिक संतसंग- हिंदू धर्मातील लोक कायमस्वरुपी संघटीत रहावेत याकरीता हजारों गावांमध्ये दर आठवड्याला साप्ताहीक डिजिटल संतसंग सुरु करुन हिंदू धर्मातील एैक्य टिकवण्याचा प्रयत्न केला जातो. हा संतसंग सोहळा दर रविवारी सकाळी 09:00 वाजता सर्वत्र होतो.
30. महारक्तदान कुंभ- थलेसिमीया, सिकलसेल, ब्लड कॅन्सर, किडणी फेल्युअर रुग्णांना वारंवार रक्त घ्यावे लागते. अशा रुग्णांना रक्त उपलब्ध व्हावे याकरीता दरवर्षी जानेवारी महात अवघ्या पंधरा दिवसाचा महारक्तदान कुंभ आयोजित केला जातो. व त्यामार्फत लाखों रक्तबाटल्या शासनाकडे जमा केल्या जातात. हे सेवाकार्य दरवर्षी सुरु आहे.
31. गरज लागेल तेव्हा रक्ताची मदत- समाजातील गरीब, गरजु रुग्णांना ऑपरेशनच्या वेळी किंवा काही आजारात रक्ताची गरज लागते. अशा रुग्णांना रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ, नाणीजधाम युवा सेनेच्या मार्फत ब्लड-इन-नीड या योजने मार्फंत रक्त पुरवले जाते. दरवर्षी सुमारे 25 ते 30 हजार रुग्णांना विनामुल्य रक्त उपलब्ध करुन दिले जाते.
32. मरणोत्तर देहदान- समाजाच्या उत्तम स्वास्थ्यासाठी निष्णांत डॉक्टरांची आवश्यकता असते. वैद्यकिय महाविद्यालयांमध्ये डॉक्टरी प्रशिक्षण घेणाऱ्या विद्यार्थ्यांना मानवी देह प्रशिक्षणासाठी उपलब्ध झाला पाहीजे याकरीता जगद्गुरु रामानंदाचार्यांनी समाजाला स्वतः आवाहन केले. शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालयांना रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांच्या अनुयायांनी 56,537 अर्ज भरुन सन 2016 साली विद्यापीठांना सूपुर्द केले आहेत. त्या अर्जदारांच्या इच्छेनुसार शेकडो मरणोत्तर देह विद्यापीठांना सूपुर्द करुन प्रत्यक्ष मरणोत्तर देहदान कार्य सुरु झाले आहे.
33. अवयवदान- माहे फेब्रवारी 2025 मध्ये अवयव दान करा असे आवाहन रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी केले. त्याला प्रतिसाद म्हणून अनेक व्यक्तींनी मरणोत्तर नेत्र, त्वचा अशा अवयवांचे समाजासाठी दान केले आणि ही सेवा जोमाने सुरु आहे.
34. हिंदू धर्म पूर्नप्रवेश- वैदिक सनातन धर्मातून वेगवेगळ्या प्रलोभनांना बळी पडून अन्य धर्मात गेलेल्या हिंदू बांधवांना घर वापसी मोहीमेने रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी पुन्हा आपल्या धर्मात आणले आहे. आतापर्यंत 1,52,354 कुटूंबांना हिंदू धर्मात पुर्नप्रवेश दिला आहे. तसेच त्यांचे रोटीबेटी व्यवहार सुरु होण्यासाठी 15,400 विवाह करुन देण्यात आलेले आहेत.
35. अध्यात्मिक दिक्षा- अध्यात्माच्या माध्यमातून रज आणि तम या गुणांना कमकुवत बनवून सत्वगुणाची वृद्धी करण्याकरीता अध्यात्मिक दिक्षा देवून लाखोंच्या संख्येने श्रद्धाळू भाविकांना भक्तीमार्गाला लावले आहे. प्रपंच करता करता परमार्थ ही करा, स्व-स्वरुपाची ओळख करुन घेण्यासाठी या बुद्धीवान मानवी देहाचा उपयोग करा. याकरीता दरमहा मोठ्या प्रमाणात अध्यात्मिक दिक्षा देवून लाखों लोकांना सन्मार्गाला लावले जाते.
36. धर्म जागृती मेळावे- विविध सार्वजनिक ठिकाणी सार्वजनिक कार्यक्रमांमध्ये हिंदू धर्मगुरु या नात्याने जावून धर्म, संस्कृती, तिचे संस्कार, धर्माभिमान जागृत करण्यासाठी उद्बोधन केले जाते. वर्षातून अनेक ठिकाणी अशा कार्यक्रमांना रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य स्वतः उपस्थित राहतात.
37. ग्राम स्वच्छता अभियान- शरीर शुद्धी बरोबर आपल्या आजुबाजूची स्वच्छता करणे आवश्यक आहे. स्वच्छतेमुळे विविध रोगराई येत नाही. त्याचबरोबर आनंदी व निरोगी आरोग्य राहण्यास मदत होते. याकरीता अनुयायांच्या माध्यमातून हजारो गावे ग्राम स्वच्छता मोहीम आखून स्वच्छ केली जातात.
38. करिअर गाईडंस- साधारणतः दहावी, बारावी झालेल्या विद्यार्थ्यांना भविष्याच्या भल्यासाठी कोणते ॲकॅडमिक शिक्षण घ्यावे हे कळत नाही. या विद्यार्थ्यांचे आयुष्य उज्वल व्हावे याकरीता रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ, नाणीजधाम च्या वतीने तज्ञ व्यक्तींकडून करिअर गाईडंस मार्गदर्शन केले जाते.
39. विविध सॉफ्टवेअर- रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य नेहमी सांगतात तुमचे डोळे विज्ञानवादी ठेवा, मन अध्यात्मवादी आणि बुद्धी वास्तववादी ठेवा. तात्पर्य- अध्यात्म, विज्ञान, व्यवहार यांची सांगड घालून जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी प्रचंड सेवाकार्य सुरु ठेवली आहेत. ही सेवाकार्य बिनचुक, विस्तारपूर्वक आणि शिस्तबद्ध सुरु राहण्यासाठी त्यांच्या आय.टी. क्षेत्रातील अनुयायांमार्फत 18 सॉफ्टवेअरची निर्मीती केली आहे. या सॉफ्टवेअरच्या माध्यमातून वरील सर्व सेवाकार्य नियंत्रित केली जातात. या सर्व सॉफ्टवेअरची रिक्वायरमेंट 100टक्के नरेंद्राचार्यांची आहे. विशेष म्हणजे हे सॉफ्टवेअर बांधण्यासाठी लागणारे लॉजिक स्वतः रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य देत असतात. प्रत्येक सॉफ्टवेअरमध्ये किमान 70 ते 80 टक्के लॉजिक त्यांचे आहे.
40. विविध डिजीटल मिडीआ- रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांचा दृष्टिकोन विज्ञान आणि अध्यात्म याची सांगड घालून समाजाची विनामुल्य सेवा करणे, या सेवेत समाजातील समाजसेवा करणारे लोक मोठ्याप्रमाणात उपलब्ध व्हावेत व या सर्वांच्या माध्यमातून रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य चालवत असलेले सर्व सेवा उपक्रम विनामुल्य समाजभिमुख होण्याकरीता त्यांचे अनेक अनेक अनुयायी विविध डिजीटल सोशल मिडीआच्या माध्यमातून जनसेवा करत आहेत.
41. माँ नर्मदा परिक्रमा सेवा- सनातनी श्रद्धाळू व्यक्ती पदयात्रा करुन माँ नर्मदा परिक्रमा करत असतात. परिक्रमा मार्गावर अलिबुजूर्ग- सनावद- खरगौन (मध्यप्रदेश) या ठिकाणी उपपीठाची निर्मीती करुन सर्व यात्रेकरुंची विनामुल्य चहा, नाश्ता, दुपारचे व संध्याकाळचे भोजन तसेच निवासाची सोय पूर्णतः विनामुल्य सुरु आहे.
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजींचे गौरव
सन 2000 मध्ये अखिल भारतीय मराठा महासंघाचे अध्यक्ष शशिकांत पवार यांच्या हस्ते ‘शिवतेज पुरस्कार’ प.पू. स्वामीजींना प्रदान करण्यात आला.
11 एप्रिल 2004 उज्जैन, मध्यप्रदेश येथे श्री महंत ग्यानदासजी महाराज, राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय षड्दर्शन आखाडा परीषद एवं राम जन्मभूमी पुनोरोद्धार समिती, हनुमानगढी अयोध्या यांनी धर्माचार्य आणि पीठाधीश्वर पदव्यांनी प.पू. नरेंद्राचार्यजींना भूषविण्यात आले.
21 ऑक्टोबर 2005 रोजी अयोध्येमध्ये अखिल भारतीय षड्दर्शन आखाडा परिषदेचे प्रमुख तसेच वैष्णव सर्व आखाडे, उप आखाडे, चतुः संप्रदाय आणि खालसे यांच्या उपस्थितीत जगद्गुरु रामानंदाचार्य हरीयाचार्यजी यांच्या हस्ते ‘जगद्गुरु रामानंदाचार्य’ पदी विराजमान करण्यात आले.
26 मे 2008 रोजी स्वातंत्र वीर सावरकर, राष्ट्रीय स्मारक मुंबई यांच्या तर्फे जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य यांना “समाजसेवा पुरस्कार” देवून गौरविण्यात आले.
5 डिसेंबर 2008 रोजी शिवप्रतापगड उत्सव समितीच्या अध्यक्षा विजया राजे भोसले यांच्या हस्ते वाई, सातारा येथे ‘वीर जिवा महाला पुरस्कार’ देवून गौरविण्यात आले.
25 मे 2009 रोजी मुंबई येथे विनायक सावरकर यांचे नातू विक्रम सावरकर यांच्या हस्ते ‘वीर सावरकर पुरस्कार’ देवून गौरविण्यात आले.
20 फेब्रुवारी 2010 रोजी शिव प्रतिष्ठान, कोल्हापूर, अध्यक्ष भिडे गुरुजी यांच्या हस्ते ‘राष्ट्रसंत’ पदवी देवून भूषविण्यात आाले.
20 ऑगस्ट 2010 रोजी मा. डॉ. मोहनराव भागवत सरसंघचालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यांच्या हस्ते ‘धर्माचार्य ब्रम्हचारी विश्वनाथजी पुरस्कार’ देवून गौरविण्यात आले.
14 एप्रिल 2012 रोजी जेएनएमजी फाऊंडेशन इंक., अमेरिका या संस्थेने अंतराष्ट्रीय बंधूता, शांतता पूर्ण तणामुक्त जिवन संदेश संपूर्ण जगाला देणाऱ्या जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य यांना एडवर्ड पी. मंगानो, नासाऊ काउंटी एक्झिक्युटिव्ह यांच्या हस्ते सन्मानित करण्यात आले. त्याची दखल अमेरिका देशातील न्यु जर्सी विधान सभेने दि. 15 एप्रिल 2012 रोजी ठराव संमत करुन स्वागत केले.
23 डिसेंबर 2016 ‘धर्मसंस्कृती महाकुंभ पुरस्कार’ जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य यांना श्रीमद् जगद्गुरु शंकराचार्य श्री वासुदेवानंद सरस्वती, ज्योर्तिमठ बद्रिनाथ यांच्या हस्ते देवून सामाजिक कार्याचा गौरव केला.
दि. 14 जून 2022 रोजी महाराष्ट्र राज्य रक्त संक्रमण परिषदेकडून ‘राज्यस्तरीय रक्तदाता गौरव सन्मान’ पुरस्काराने आरोग्य मंत्री राजेश टोपे यांच्या हस्ते सन्मानित करण्यात आलेले आहे.
14 फेब्रुवारी 2025 रोजी अखिल भारतीय मराठा मघासंघ यांनी “मराठा समाजरत्न पुरस्कार” देवून रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य यांचा सन्मान केला आहे.
दि. 20 फेब्रुवारी 2025 रोजी महाराष्ट्र रक्त संक्रमण परिषदेकडून ‘राज्यस्तरीय रक्तदाता गौरव सन्मान’ पुरस्काराने सन्मानित करण्यात आलेले आहे. जवळजवळ दरवर्षी महाराष्ट्र रक्त संक्रमण बँक राज्यस्तरीय पुरस्कार देवून गौरव करत असते.
दि. 14 जून 2025 रोजी जागतीक रक्तदाता दिनाचे औचित्य साधून इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी यांच्यातर्फे तेलंगणा राज्याचे महामहीम राज्यपाल जिष्णु देव वर्मा यांच्या शुभहस्ते पुरस्कार देवून सन्मानित करण्यात आले आहे.
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य यांनी सामाजिक सेवेसाठी स्थापन केलेले संस्थान जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य यांचे विविध क्षेत्रात प्रचंड कार्य आहे. ही कार्ये करण्यासाठी त्यांच्या विविध संस्था आहेत पैकी जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान ही सामाजिक कार्य करण्यासाठी केलेली संस्था असून सर्व प्राणीमात्रांच्या स्थैर्य, उन्नती, प्रगती व शांती करिता सेवाकार्य करण्यासाठी निर्माण केली आहे. भारतातील दुर्गमातील दुर्गम खेड्यापाड्यांपासून अगदी शहरी भागातील गरीब, गरजू, दीनदुबळया लोकांची तसेच प्राण्यांची विनाशुल्क वेगवेगळ्या प्रकारची सेवा अविरतपणे सुरु ठेवण्यासाठी शासनमान्य रजिस्टर संस्था आहे. एकदम सुरुवातीला एफ. ९९५/१९९१.या नंबरने रजिस्ट्रेशन करुन संस्थेची निर्मिती केली. या कार्याचा व्याप संपूर्ण रत्नागिरी जिल्ह्यात वाढू लागला. एफ.९९५ या संस्थेचे कार्यक्षेत्र मर्यादीत असल्यामुळे कार्याची व्यापकता वाढविण्यास अडचणी येवू लागल्या. त्यामुळे दि. १३/४/१९९४ रोजी मा. सहाय्यक धर्मदाय आयुक्त कार्यालयामध्ये ई/६९४ नंबरने जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थानाची निर्मिती झाली. या ट्रस्टचे कार्यक्षेत्र संपूर्ण भारत देश असून या संस्थानातर्फे शिक्षण, आरोग्य, आपत्कालीन मदत, कृषी, प्राणीमात्रांचे संगोपन, दुर्बल घटकांचे लालन-पालन, सामाजिक जनजागृती, अंधश्रद्धा निर्मूलन, व्यसनमुक्ती, हुंडा निर्मूलन, सामाजिक सोयी सुविधा, पर्यावरणाचे संरक्षण-संतुलन व संवर्धन, सामाजिक ऋणानुबंध, धार्मिक-अध्यात्मिक जनजागरण, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक वास्तु, स्थळे, स्मारकांचे जतन इ. उपक्रम ही संस्था राबवत आहे. महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तेलंगणा, छत्तीसगड, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, जम्मु, उत्तर प्रदेश, बिहार इत्यादी राज्यांमध्ये या संस्थानाचे सेवाकार्य जोमाने सुरु आहे.
जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थानाचे उपक्रम
१. इंग्रजी माध्यम शाळा व कॉलेज
अति दुर्गम भागातील, गोरगरीबांच्या मुलांना इंग्रजी माध्यमाचे विनामुल्य शिक्षण मिळावे याकरीता जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी दि. २० ऑगस्ट २००९ पासून सर्व सोयी सुविधांनी युक्त अशी एज्युकेशनल इन्स्टिट्युट सुरु केली. शासनाची एकही रुपयाची मदत न नसताना नर्सरी ते गॅ्रज्युएशन पर्यंत सी.बी.एस.ई बोर्डाचे पूर्णतः विनामुल्य शिक्षण या इन्स्टिट्युट मधून दिले जाते. या इन्स्टिट्युटच्या स्थापनेपासून दरवर्षी दहावी व बारावी वर्गांचा रिझल्ट १०० टक्के लागतो. ही इन्स्टिट्युट सर्व सोयी सुविधांनी सुसज्ज आहे. सुसज्ज प्रयोगशाळा, कॉम्प्युटर लॅब, बोलते वर्ग, विविध खेळांमध्ये प्राविण्य मिळवण्यासाठी उच्च प्रतीचे क्रिडा साहित्य उपलब्ध आहे. जिल्हास्तरीय, राज्यस्तरीय विविध क्रीडा आणि कला स्पर्धांमध्ये या इन्स्टिट्युट ची मुले अत्यंत उल्लेखनीय कामगीरी बजावत आहेत. याशिवाय या इन्स्टिट्युट मधून केवळ पुस्तकी ज्ञान न देता सुसंस्कारीत जगण्यासाठी आध्यात्मिक संस्कारांचे शास्त्रीय महत्व मुलांना शिकवले जाते. वेद विज्ञान सिद्धांतावर हे एज्युकेशनल इन्स्टिट्युट चालते त्यामुळे नितीमुल्ये जोपासून एक आदर्श भारतीय नागरीक बनवण्याकडे जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांचा कल आहे. या इन्स्टिट्युट मधून बाहेर पडणारी सर्व मुले समाजाला आदर्श वाटतील अशीच निर्माण करुन धर्म, संस्कृतीचे रक्षण करण्याचे दिशादर्शक काम सुरु आहे.
याव्यतिरीक्त समाजातील गरीब व गरजू शालेय मुलांना लाखो वह्यांचे दरवर्षी विनामूल्य वाटप केले आहे. आतापर्यंत काही लाख वह्यांचे वाटप केलेले आहे. गरीब व गरजू शालेय मुलांना गणवेषांचे दरवर्षी विनामूल्य वाटप केले जाते. आतापर्यंत मोठ्या प्रमाणात वाटप केलेले आहे. ज.न.म. संस्थानाच्या दत्तकपालक योजने अंतर्गत यापूर्वी शालेय मुलांना शिक्षणासाठी दत्तक घेवून त्यांचा शिक्षणाचा खर्च संस्थानातर्फे केला आहे. सदरच्या मुलांना त्यांच्या शाळेमार्फत दत्तकपालक योजनेची रक्कम संस्थान सुपूर्द केली आहे. पूर्वी संस्थानातर्फे अतिदुर्गम भागात विनामूल्य बालवाड्या (बालांगणे) चालविल्या जात होत्या. मुकबधीर मुलांच्या शाळेला ज.न.म. संस्थानतर्फे दरवर्षी अनुदान दिले जाते. संस्थानातर्फे हजारो गरजू व गरीब विद्यार्थ्याना तसेच ग्रामीण व आदिवासी भागातील शाळांना संगणकीय शिक्षण देण्यासाठी संगणकाचे मोफत वितरण केले जाते. ग्रामिण व आदिवासी शाळांना शालेय वस्तूचे मोफत वाटप केले जाते. विविध शैक्षणिक संस्थाना आर्थिक मदत केले जाते. असे शैक्षणिक उपक्रमांतर्गत अनेक उपक्रम राबविले जातात.
२. मुलांसाठी वेदपाठशाळा
कोणताही धर्म टिकून राहण्यासाठी त्या धर्मात पूर्वंपार सुरु असलेल्या उपासना पद्धती, प्रथा, अनेक प्रकारचे विधी, सण, उत्सव, व्रत वैकल्य, धर्माची वीण घट्ट करुन धर्माबद्दल जागृकता निर्माण करतात. ज्या धर्मात अशा गोष्टींना महत्व दिले गेले नाही ते धर्म काळाच्या ओघात नष्ट झालेले आहेत. हिंदू धर्मातील संस्कार सुद्धा हळूहळू लोप पावत चालले आहेत. कारण याबाबतचे ज्ञान देण्यासाठी समाजात पुरोहीतांची संख्या अत्यंत अल्प होत चाललेली आहे. यामुळे धर्माला मोठा धोका निर्माण होणार आहे. हे ओळखून जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी दि. २५ जुलै २०१० पासून कवी कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय, रामटेक नागपूर संलग्न ‘‘आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य वेद पाठशाळा ’’ नाणीजधाम येथे सुरु केली. या पाठशाळेतील मुलांना पाठ्यपुस्तके, गणवेश, निवास व भोजन व्यवस्था, सर्व शैक्षणिक खर्च संस्थानातर्फे पुर्णतः विनामुल्य केला जातो. या वेदपाठशाळेमध्ये हिंदू धर्मातील सर्व ज्ञाती बांधवांच्या मुलांना वैदिक पौरोहीत्याचे शिक्षण दिले जाते. ज्यामध्ये अनुष्ठान, पूजाअर्चा, हिंदू धर्माचे १६ संस्कार, तसेच सर्व धार्मिक विधी, शांती विधी यासह नितीमुल्यांचे ज्ञान सुद्धा अवगत केले जाते. आतापर्यंत या वेद पाठशाळेतून अनेक बॅचेस बाहेर पडल्या आहेत. शेकडों पुरोहित रामानंदाचार्यांनी निर्माण करुन हिंदू धर्म संवर्धनाचे काम व्यापक स्वरुपात सुरु केले आहे.
३. खास मुलींसाठी वेदपाठशाळा
रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य हे पुरोगामी आणि क्रांतीवादी विचाराचे आचार्य असल्यामुळे तसेच ते ज्यांचे उत्तराधिकारी आहेत त्या रामानंदाचार्य पीठाच्या भगवान आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्यांची विचारसरणी नेहमी समाजाच्या कल्याणाचीच राहिली आहे. त्यांनी इ.स.वी.सन १३०० या काळात मुस्लीम धर्मातील संत कबीर, चर्मकार समाजातील संत रैदास, क्षत्रिय समाजातील संत पीपादास, तसेच संत पद्मावती, संत सुरासुरी या महिला शिष्यांचा सुद्धा उद्धार केला आहे. स्पृश्य-अस्पृश्य, सोवळे-ओवळे अशा अनेक प्रथा परंपरांना मोडीत काढून हिंदू धर्मातील प्रत्येक जातींचा सन्मान केलेला आहे. त्याकाळी अधिकारी महिला शिष्य बनवणे ही कल्पनाच न केलेली बरी. अशा काळातही त्यांनी समाजाच्या उत्थानाचे कार्य करण्यासाठी क्रांती केली आहे. त्याच रामानंदाचार्य पीठाचे उत्तराधिकारी जगद्गुरु नरेंद्राचार्य आहेत. भगवान आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य आणि विद्यमान जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य या दोघांची विचारसरणी समाजाचे उत्थान अशीच आहे.
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांच्या प्ररेणेने आणि संकल्पनेतून रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ नाणीजधाम चे उपपीठ मराठवाडा येथे दि. ०७ जुलै २०२५ पासून कवी कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय, रामटेक नागपूर संलग्न जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य वेदपाठशाळा, मराठवाडा ही खास मुलींसाठी वेदपाठशाळा सुरु केली आहे. या पाठशाळेत विद्यार्थींनींना हायर डिप्लोमा इन पौरोहित्य ही पदविका प्राप्त करता येणार आहे. वेदपाठशाळेतील सर्व मुलींना गणवेश, निवास, भोजन, पाठ्यपुस्तके, विद्यापीठाची फी आणि शिक्षण हे पूर्णत: विनामूल्य आहे. भविष्यात या मुलींना पौरोहित्याच्या माध्यमातून अर्थाजनाची संधी मोठ्या प्रमाणात उपलब्ध होणार आहे. ही मुलींची वेदपाठशाळा म्हणजे स्त्री सक्षमीकरणाच्या वाटेवरचे जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजींनी उचललेले हे ठोस कृतीशील क्रांतीकारी पाऊल आहे. विधी, व्रत-वैकल्य, पूजाअर्चांच्या माध्यमातून हिंदू धर्म रक्षण आणि संवर्धन कार्य आणखीन जोमाने होण्यास चालना मिळणार आहे.
४. महामार्गांवरील अपघातग्रस्तांसाठी अॅम्बुलन्स सेवा
जगी ज्यास कोणी नाही, त्यास देव आहे... ही उक्ती या अॅम्बुलन्स सेवेकडे पाहून मुखात येते. राष्ट्रीय महामार्गांवर अपघात झाला की काही मिनीटांत रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांची विनामुल्य अॅम्बुलन्स सेवेची गाडी हजर होतेच. अपघातात सापडलेल्या व्यक्तीला उचलून तात्काळ नजिकच्या हॉस्पीटलला घेवून जाणे आणि त्याचे प्राण वाचविणे केवळ एवढ्याच ध्येयाने ही अॅम्बुलन्स सेवा दि. २५ जुलै २०१० पासून महाराष्ट्रातील सर्व राष्ट्रीय महामार्गांवर सुरु आहे. पूर्णतः विनामुल्य, २४ तास उपलब्ध, अशा ५३ अॅम्बुलन्स, समाजसेवेच्या कार्यात सातत्याने कार्यरत आहेत. या सेवेतून आजवर २७ हजार हून अधिक अपघातग्रस्तांचा जीव वाचवण्यात यश आले आहे. समाजातील विविध स्तरावरुन जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांच्या या विनामुल्य अॅम्बुलन्स सेवेचे वारंवार कौतुक केले जाते.
५. वेगवेगळ्या आजारांची मोफत आरोग्य शिबीरे
नाणीजधाम, मराठवाडा, गोवा, मुंबई येथील पीठांवर दरवर्षी वारी उत्सव साजरे केले जातात. या उत्सवांना लाखो भाविकांची गर्दी असते. साधारणत: वर्षातून ७ वारी उत्सव येत असतात. यावेळी वेगवेगळ्या आजारांचे स्पेशालिस्ट डॉक्टरांकरवी रुग्णांची तपासणी व लागणारी औषधे विनामूल्य दिली जातात. दररोज नाणीजधाम येथे विनामूल्य औषधोपचार सुरु आहेत.
६. व्यसनमुक्ती- नवजीवनाची दिशा
भारत हा देश तरुणांचा देश आहे. या तरुणांना वेगवेगळ्या व्यसनांच्या नादी लावून देशाच्या प्रगतीला अडथळा निर्माण करण्यासाठी अदृश्य शक्ती कार्यान्वित आहेत. मोठ्या प्रमाणात दुर्व्यसनांच्या विळख्यात दुर्दैवाने तरुण अडकत चालला आहे. या तरुणांना या व्यसनांपासून दूर करण्यासाठी जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी १९९२ पासून व्यसनमुक्ती हा उपक्रम सुरु केला आहे. तरुणांना त्यांच्या जबाबदार्या समजवण्यासाठी अत्यंत प्रभावी असे समुपदेशन करुन आतापर्यंत सुमारे चार ते पाच लाख युवांना दारु सारख्या व्यसनांपासून मुक्त केलेले आहे.
जगद्गुरु रामानंदाचार्यांच्या प्रभावामुळे व्यसनमुक्त झालेले लाखो युवा आज स्वतःचा संसार प्रपंच उत्तम प्रकारे सांभाळत आहेत. कुटूंबामध्ये समाधान व आनंदाचे वातावरण पसरलेले आहे. एवढेच काय तर व्यसनामुळे वाया गेलेले अनेक युवक रामानंदाचार्यांमुळे सुधारून आज मोठमोठ्या हुद्द्यांवर नोकरी करत आहेत. तर काही छोटे मोठे उद्योगपती सुद्धा झाले आहेत. निर्व्यसनी तरुण हे देशाचे भविष्य आहे. हे ओळखून या तरुणांचे मित्र बनून जगद्गुरु रामानंदाचार्य या युवा शक्तीकडून अनेक समाजपयोगी सामाजिक सेवा करुन घेत आहेत. त्यामध्ये मरणोत्तर देहदान, अवयवदान, ब्लड-इन-नीड, ब्लड कॅन्सर, थलेसिमीया अशा रुग्णांना वारंवार लागणारे रक्त उपलब्ध होण्यासाठी लाखों रक्त बाटल्यांचे संकलन असो किंवा पर्यावरणाचे संवर्धन असो, किंवा कुंभमेळ्यांच्या ठिकाणी स्वच्छता मोहीम असो, अशी अनेक सेवाकार्य या युवकांमार्फत सुरु करुन त्यांना व्यसनांच्या आहारी जाण्यापासून रोखण्याचे महत्कार्य रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य करत आहेत.
७. अंधश्रद्धा निर्मूलन
जग एकविसाव्या शतकात विज्ञानवादी झाले आहे. विज्ञानाशिवाय भौतिक प्रगती नाही, भौतिक प्रगतीशिवाय सामान्य माणसाला आनंद नाही आणि आनंदाशिवाय माणूस व्यवहारीक दृष्ट्या सुखी नाही. याकरीता आपल्यामध्ये विज्ञानवादी दृष्टीकोन असलाच पाहिजे असे जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांचे म्हणणे आहे. म्हणून ते नेहमी सांगतात, तुमचे डोळे विज्ञानवादी ठेवा, मन अध्यात्मवादी ठेवा आणि बुद्धी वास्तववादी असू द्या, या त्रिसुत्रीने जगा म्हणजे व्यवहारिक जगतात सुखी, समाधानी होता येईल. आजच्या या जगात विज्ञान कितीही प्रगत झाले तरीही समाजामध्ये विज्ञान आणि अध्यात्म हे नीटसे समजले नसल्यामुळे अंधश्रद्धांना खतपाणी घालणारे लोक समाजामध्ये खूप आहेत. भोळा भाबडा, श्रद्धाळू माणूस अंधश्रद्धेच्या नादी लागून वाया जातो. यांना अंधश्रद्धेतून बाहेर काढण्यासाठी रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी अंधश्रद्धा निर्मुलन या उपक्रमांतर्गत आतापर्यंत कोट्यावधी लोकांना अंधश्रद्धेच्या गर्तेतून बाहेर काढले आहे. १९८९ सालापासून या उपक्रमावर कार्य केले जात आहे. अध्यात्मिक प्रबोधनाद्वारे जनजागरण करुन अनिष्ट रूढी परंपरा, अंधश्रद्धेच्या आहारी गेलेल्या लोकांना अध्यात्म, विज्ञान व व्यवहार यांची सांगड घालून कसे जगावे हे शिकविले जात आहे.
८. कृषी उपक्रम
कृषी उपक्रमांतर्गत शेतकर्यांना सुधारीत तंत्रज्ञानाची माहिती होण्यासाठी ज.न.म.संस्थानतर्फे कृषी शिबीरांचे आयोजन करण्यात येते. शेतकर्यांना विविध प्रवचन-दर्शन सोहळ्यांमध्ये बि-बियाणे वाटप करण्यात येते. याशिवाय शेतीची वेगवेगळी अवजारे शेतकर्यांना पुरविण्यात येतात. या कृषी उपक्रमांतर्गत विविध ठिकाणी पाणी अडवा, पाणी जिरवा यासाठी जगद्गुरु रामानंदाचार्यांच्या अनुयायांमार्फत कच्चे बंधारे बांधले जातात.
९. आपतकाळातील मदतकार्य
महापूर, दुष्काळ, महामारी, भूकंप अशा नैसर्गिक आपत्तीच्या वेळी अन्नधान्ये, औषधे, कपडे व साफ सफाईचे साहित्य घेवून रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजींचे हजारो अनुयायी नेहमी मदतीला धावतात. दि. २६ जुलै २००५ च्या कोकण विभागातील चिपळूण पूर प्रसंगात स्वतः रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजी पीडित कुटूंबांपर्यंत गेले आणि मदतकार्य केले. महाराष्ट्र शासनाच्या आपत्कालीन मदतनिधीला ही रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजी वारंवार लाखों रुपयांची आर्थिक मदत संस्थानाच्या माध्यमातून करत असतात.
कोवीड-१९ या आपत्कालीन स्थितीमध्ये महाराष्ट्र शासनाच्या मदतीसाठी अनेक अॅम्बुलन्स कोरोना रुग्णांची ने-आण करण्यासाठी रामानंदाचार्यांनी पाठवल्या होत्या. कोटयावधी रुपये मुख्यमंत्री आणि पंतप्रधान आपत्कालीन फंडाला दिले असून, या कोरोनाच्या काळात शासकीय अधिकारी यांची काळजी घेण्यासाठी विविध उपकरणे देवून त्यांचे मनोबल वाढवण्याचे काम ही रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी केले. कोरोनामध्ये अडकलेल्या अनेक गरिब कुटूंबांना अन्नधान्याचा पुरवठा सुद्धा केला. या महाभयंकर कठिण प्रसंगामध्ये लोकांचे मनोधैर्य वाढवण्यासाठी दररोज सकाळी सोशल मिडीयाच्या माध्यमातून ध्यैर्य आणि चिकाटी निर्माण होईल आणि त्यांच्यातील निरुत्साही पणा निघून जाईल अशा प्रकारचे विलपॉवर वाढवण्याचे कार्य सतत दोन वर्ष जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी केले. नरेंद्राचार्य म्हणजे मानवतेचा कळवळा आलेले हिंदू धर्माचे देवदुतच आहेत. असेच म्हणावे लागेल.
भूज- गुजरात, भूकंपाच्या वेळी संस्थानातर्फे मदत करण्यात आली. त्सुनामीच्या वेळी तसेच महाराष्ट्रात २६ जुलैला आलेला महापूर, गोव्यात आलेला महापूर, कोकणामध्ये आलेला महापूर यामध्ये संस्थानातर्फे मोठ्या प्रमाणात मदत करण्यात आली. सन २०१३ मध्ये महाराष्ट्रात दुष्काळग्रस्त परिस्थिती निर्माण झाली आहे. मुक्या जनावरांना अन्नपाणी मिळेनासे झाले होते, अशा आपत्कालीन परिस्थितीत हजारो टन चारा जनावरांच्या छावणींना पुरविण्यात आलेला आहे. २०२१ मध्ये महाराष्ट्रात आलेल्या महापुराच्या वेळी पूरग्रस्त भागातील कुटुंबियांना अन्नधान्य, कपडालत्ता, भांडी व जीवनाश्यक वस्तूंचे वितरण करण्यात आले तसेच त्या परिस्थितीत हजारो टन चारा जनावरांच्या छावणींना देखील पुरविण्यात आलेला आहे. २२ जुलै २०२१ मध्ये महाड, पोलादपूर जि. रायगड येथे महापूर व दरड कोसळणे या आपत्ती प्रसंगी स्वच्छता मोहीम, अन्नधान्य व जीवनावश्यक वस्तूंचे वाटप, वैद्यकिय मदत अशा अनेक सुविधा संस्थाना तर्फे पुरविण्यात आल्या. संस्थानाच्या या सामाजिक कार्याची दखल घेवून १५ ऑगस्ट २०२१ रोजी जिल्हाधिकारी रायगड यांच्या वतीने मा. पालकमंत्री आदितीताई तटकरे यांच्या हस्ते सन्मानपत्र देवून संस्थानाचा गौरव करण्यात आला.
१०. वैद्यकीय उपक्रम
जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान गरीब, गरजू रुग्णांना ऑपरेशनसाठी नेहमी आर्थिक मदत करते. श्रवणयंत्र, कुबड्या, कृत्रिम अवयव, अपंगांना तीन चाकी सायकलींचे वाटप इ. अनेक गोष्टी रुग्णांसाठी या संस्थानातर्फे विनामूल्य केल्या जात आहेत. देशात पसरलेल्या कोविड १९ आपत्तीप्रसंगी संस्थाना तर्फे रुग्णवाहिका व वैद्यकिय सुविधा पुरविण्यात आल्या. कोविड १९ आपत्तीप्रसंगी संस्थानातर्फे दिनांक १ एप्रिल २०२० रोजी मा. मुख्यमंत्री सहायता निधी करिता ५० लाख रुपयाची आर्थिक मदत करण्यात आली. तसेच दिनांक ३० एप्रिल २०२० रोजी मा. पंतप्रधान सहायता निधी करिता ५२ लाख रुपयाची आर्थिक मदत करण्यात आली. याशिवाय रत्नागिरी जिल्हा पोलीस सहायता निधी करिता २० लाख रुपयाची आर्थिक मदत करण्यात आली.विविध ठिकाणी कोरोनाग्रस्त भागात कोविड सेंटर उभारले तसेच सार्वजनिक ठिकाणी सॅनिटायझर व सॅनिटायझर मशीन, मास्क, हॅन्डग्लोज इत्यादी साहित्यांचे मोफत वाटप करण्यात आले.
११. दुर्बल घटकांना मदत
हिंदू धर्माचे वेळोवेळी जनजागरण करण्यासाठी जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य अगदी खेडोपाडी विविध उपक्रमांच्या माध्यमातून पोहचत असतात. त्यावेळी गोरगरीब समाजाच्या विविध गरजा विचारात घेवून वेगवेगळ्या आर्थिक स्तरातील व्यक्तींना, कुटूंबांना, गायी-म्हशी, शेळ्या- मेंढ्या, कापड शिवणयंत्र, पीठ गिरण्या इ. साधने देवून हजारो कुटूंबांना रोजगारक्षम बनवले आहे. शेतकरी आत्महत्या प्रतिबंध करण्यासाठी जागृती, त्या कुटुंबाना आर्थिक मदत तसेच इतर शेतकर्यांना बी-बियाणे, कृषी उपकरणांचे मोफत वितरण यामुळे अनेक शेतकर्यांचे जीवन सावरले आहे. सातत्याने स्वावलंबनासाठी कृतीशील मदत रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजी यांच्यामार्फत सुरुच आहे. दरवर्षी ऐंशी ते नव्वद लाख रुपये संस्थानाच्या माध्यमातून समाजातील दुर्बल घटकांच्या सेवेसाठी खर्च होत असतात.
१२. पीठांची निर्मिती
जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांचा तुम्ही जगा, दुसर्याला जगवा हा मानवतावादी संदेश आहे. या संदेशाप्रमाणे गोरगरीब, रंजले-गांजले, गरजू व्यक्तींना विविध प्रकारची मदत करण्यासाठी तसेच त्यांच्याशी संपर्क साधणे सुलभ व्हावे याकरीता रामानंदाचार्य दक्षिणपीठ नाणीजधाम हे मुख्यपीठ असून उपपीठे गोवा, मराठवाडा, मुंबई, पश्चिम महाराष्ट्र (पुणे), उत्तर महाराष्ट्र (नाशिक), पश्चिम विदर्भ (शेगांव, बुलढाणा), पूर्व विदर्भ (नागपूर), तेलंगणा (कामारेड्डी), ओंकारेश्वर (मध्यप्रदेश), छत्तीसगड (दुर्ग), गुजरात (बडोदा) अशी उपपीठे आहेत. या पीठांमार्फत अध्यात्मिक व धार्मिक ज्ञान दिले जाते, वारी उत्सव आयोजित केले जातात. या वारी उत्सवाला सुमारे दिड ते दोन लाख भाविकांची उपस्थिती असते. या वारी उत्सवातून धर्म, अध्यात्म, संस्कृती, एकात्मता, मानवता या विषयांवर प्रबोधन केले जाते. सर्व जातीधर्माचे लोक या कार्यक्रमात अत्यंत जिव्हाळ्याने सक्रिय सहभागी झालेले असतात.
१३. यात्रीनिवास
मन:शांती साठी येणार्या भाविकांना आणि यात्रेकरुना निवासाची व्यवस्था व्हावी म्हणून ज.न.म. संस्थानाच्या मुख्यपीठ नाणीजधाम या पीठामध्ये येणार्या यात्रेकरुंना अत्यंत कमी सेवा शुल्कात निवासाची सोय संस्थानाने करुन दिलेली आहे. २८३ खोल्यांचे यात्रीनिवास असून यामध्ये ऍटॅच संडास, बाथरुमची सोय आहे. संस्थानाने यात्रेकरूंच्या सोयी करिता मोठे १० हॉल बांधून त्यामध्ये १०८० बंक बेड, संडास व बाथरूमसह निवासाची सोय केलेली आहे. याशिवाय अनेक धर्मशाळा असून त्यामध्ये निवासाची सोय विनामूल्य आहे. तसेच गोवा उपपीठ आणि मराठवाडा उपपीठ येथे सुद्धा यात्रीनिवास व्यवस्था उपलब्ध आहे.
१४. वारी उत्सव
समाजामध्ये बंधुभाव, शांती, सामंजस्य, एकमेंकांची वैचारिक देवाण-घेवाण तसेच अध्यात्म, मन:शांती इत्यादी अनेक समाजपयोगी उन्नत्तीसाठी दरवर्षी किमान ७ वेळा मोठे वारी उत्सव भरवले जातात. यामध्ये लाखो लोक सहभागी असतात. त्यांना वरील संस्कारांचे प्रबोधन केले जाते. धर्म, देश, संस्कृती याबद्दल स्वाभीमान निर्माण करण्याचे काम या वारी उत्सवांमध्ये केले जाते. त्यामुळे दुष्प्रवृत्ती, दुर्व्यसने, दुर्गुण यापासून समाजाला दुर राखण्याचे काम या वारी उत्सवांमधून केले जाते. वारी उत्सवात आलेल्या जनमाणसाची सर्व सेवा विनामूल्य केली जाते.
१५. अध्यात्मिक, सामाजिक ॠणानुबंध जोपासण्यासाठी पदयात्रा
विश्वावर ग्लोबल वॉर्मिंगचे महाभयंकर संकट येवून ठेपले आहे. यामध्ये जीवमात्रांची प्रचंड हानी होत आहे. ती टाळण्यासाठी रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी जनजागरणाचे व्यापक कार्य सुरु केलेले आहे. समाजामध्ये जागृती होण्याकरीता रामानंदाचार्यांचे हजारो अनुयायी पदयात्रेने समाजप्रबोधन करत मुख्यपीठ नाणीजधाम येथे दरवर्षी येत असतात. वसुंधरा पायी दिंडी या नावाने १. उपपीठ पूर्व विदर्भ श्रीक्षेत्र नेरले- कामठी- नागपूर (१०२२ कि.मी., ४० दिवस), २. उपपीठ मराठवाडा श्रीक्षेत्र सिमुरगव्हाण- पाथरी- परभणी (५३२ कि.मी., २३ दिवस), ३. उपपीठ उत्तर महाराष्ट्र श्रीक्षेत्र रामशेज- दिंडोरी- नाशिक (५२७ कि.मी. २३ दिवस), ४. उपपीठ पश्चिम महाराष्ट्र श्रीक्षेत्र नर्हे- हवेली- पुणे (३५४ कि. मी. १६ दिवस), ५. उपपीठ मुंबई श्रीक्षेत्र शिरसाट फाटा- वसई- पालघर (३९१ कि. मी., १७ दिवस), ६. उपपीठ तेलंगणा श्रीक्षेत्र दोसपल्ली-जुक्कल - कामारेड्डी तेलंगणा (६०५ कि. मी. २५ दिवस), ७. उपपीठ गोवा श्रीक्षेत्र बांयगणी- तिसवाडी- गोवा (२४३ कि. मी., ११ दिवस) एवढ्या अंतरांचा आणि एवढ्या दिवसांचा पायी प्रवास करुन हजारो अनुयायी पायी दिंड्या घेवून पर्यावरण रक्षणाचे, संवर्धनाचे जनजागरण करत आहेत. पाणी अडवा, पाणी जिरवा, वृक्षारोपण करा, त्या वृक्षांना जगवा, जलाशयाचे साठे जतन करा, ते खराब करु नका, प्लास्टीकचा वापर टाळा. अशा प्रकारचे जनजागरण करत या दिंड्या हजारो मैल प्रवास करुन सन २०२३ पासून येत आहेत. पदयात्रेत वृक्षारोपण सुद्धा केले जात आहे.
ग्लोबल वॉर्मिग जनजागृती, हे सामाजिक कार्य करत असताना अध्यात्मिक संस्कारांची बीजे सुद्धा रोवण्याचे काम सुरु आहे. देशाचे भवितव्य असणारा युवा वर्ग अध्यात्मिक संस्कारांमुळे सुशिल, विनम्र, आदर्शवादी, समाजाचे दायित्व आपल्या खांद्यावर घेवून मजल दरमजल करत गुरुनामाचा स्वतः नामजप करत उदयन्मुख पीढीला अध्यात्मिक संस्कारांचे महत्व पटवून देत विज्ञान, अध्यात्म याची सांगड घालून कसे जगावे हे शिकवत आहेत.
१६. पर्यावरण रक्षण व जलसंधारण
ग्लोबल वॉर्मिंग धोका टाळण्यासाठी रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी आपल्या पीठांवर मोठ्या प्रमाणात वृक्षारोपण करुन घेतले आहे. सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बांधले आहेत. मोठ्या प्रमाणात सौर ऊर्जा निर्मीती करत आहेत. एनर्जी व्यवस्थापन, वेस्टेज नियंत्रण व्यवस्थापन, वॉटर बचाव आणि दुषित होणार नाही असे व्यवस्थापन, वापरात येणारे मटेरिअल प्रदुषण विरहीत करणारे व्यवस्थापन, लँड स्केपिंग च्या माध्यमातून पर्यावरण व्यवस्थापन, अशाप्रकारे नेट झिरो उपक्रम राबवून ग्लोबल वॉर्मींग टाळण्याचा प्रयत्न पीठांवर सुरु केलेला आहे.
आपल्या अनुयायांच्या माध्यमातून त्यांच्या त्यांच्या गावी अनेक वृक्ष लावून घेत आहेत. ग्रामस्वच्छता, मंदिर परिसर स्वच्छता, गावातील सार्वजनिक ठिकाणे स्वच्छ करणे, कच्चे बंधारे घालून पाणी अडवणे अशी विविध प्रकृतीरक्षणासाठी कार्ये रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी सुरु केलेली आहेत. त्यांच्या महिला सेना वाहिनीच्या माध्यमातून महाराष्ट्रातील ११०० हरीत गावे करण्याचा संकल्प आहे. त्यातील काही गावांमध्ये पायलट प्रोजेक्ट राबवला जात आहे.
१७. विनामूल्य अन्नछत्रालय
रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांचे नाणीजधाम हे मुख्य पीठ असून, मराठवाडा, मुंबई, नाशिक, नागपूर, तेलंगणा, ओंकारेश्वर, गोवा या ठिकाणच्या उपपीठांवर दररोज मोठ्या संख्येने भाविक भेट देत असतात. दोन्ही वेळेला आलेल्या भाविकांच्या भोजनाची सेवा संस्थानातर्फे विनामूल्य केली जाते. समर्थ सदगुरु काडसिद्धेश्वर महाराज प्रसादालय या नावानी सर्व पिठांवर मोफत अन्नछत्रालय सुरु आहे. अन्नछत्रालयाची प्रशस्त इमारत, अत्यंत शुद्ध व सात्विक आहार, स्वच्छता, टापटीपपणा, दोन्ही वेळचे पोटभर भोजन यामुळे त्या-त्या परिसरात या सेवेचे कौतुक होत असते.
१८.मोटर ड्रायव्हिंग प्रशिक्षण
रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी आदीवासी पाड्यांमधील गरीब, गरजू आदिवासी युवकांना स्वयंरोजगार उपलब्ध व्हावा आणि हे युवक स्वावलंबी व्हावेत यासाठी आपल्या मुंबई उपपीठावर विनामुल्य मोटर ड्रायव्हिंग प्रशिक्षण सेंटर दि. ०४ मार्च २०१४ पासून सुरु केले आहे. या सेंटरमध्ये या युवकांना पूर्णतः विनामुल्य राहण्याची, भोजनाची व्यवस्था तसेच पूर्णतः विनामुल्य प्रशिक्षण एवढेच नाही तर संस्थानाच्या खर्चाने त्यांना प्रादेशिक परिवहन विभागाचे लायसन्स काढून देणे व शक्य झाल्यास चालक म्हणून नोकरी ही शोधून देणे. असे कार्य सुरु आहे. आतापर्यंत ७७१ युवकांनी या प्रशिक्षणाचा लाभ घेवून आपला स्वयंरोजगार सुरु केला आहे.
आदिवासी पाड्यांमध्ये जेवढी जेवढी शक्य आहे तेवढी विविध प्रकारची मदत करुन या आदिवासी बांधवांना समाजाच्या प्रवाहात ठेवण्याचे कार्य रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजी करत आहेत.
१९. नर्मदा परिक्रमावासियांना विनामुल्य सेवा
धर्माच्या आस्थेची वीण मजबुत होण्यासाठी रामानंदाचार्य उपपीठ ओंकारेश्वर, दि. ९ सप्टेंबर २०२१ रोजी माँ नर्मदा तीरावर जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यांनी निर्माण केले आहे. माँ नर्मदा परिक्रमा करणार्या श्रद्धाळू भाविकांची सेवा करण्यासाठी हे उपपीठ निर्माण केलेले आहे. पायी परिक्रमा करणार्या भाविकांना दररोज सकाळी ०६ ते १२ वाजेपर्यंत चहा आणि नाष्टा, दुपारी १२ ते ०३ पोटभर भोजन, पुन्हा दुपारी ०३ ते सायंकाळी ६: वाजेपर्यंत चहा आणि नाष्टा, सायंकाळी ६: ते रात्री १० वाजेपर्यंत पोटभर भोजन आणि निवासाची विनामुल्य सोय केली जाते. महाराष्ट्र तसेच आजुबाजूच्या अनेक राज्यातून मोठ्या प्रमाणात श्रद्धाळू या विनामुल्य सेवेचा लाभ घेत आहेत. आतापर्यंत हजारो भाविकांना या सेवेचा लाभ झाला आहे. आपल्या संस्कृतीतील प्रथा, परंपरा श्रद्धास्थाने धर्म जागृत ठेवण्याचे कार्य करत असतात.
२०. सामाजिक ऋणानुबंध
समाजातील वेगवेगळ्या क्षेत्रात कार्य करणार्या मान्यवरांचे आदरातिथ्य करुन त्यांना विशेष पदवी देवून गौरविले जाते. भारतरत्न, गानकोकीळा श्रीमती लता मंगेशकर यांना महामहीम उपराष्ट्रपती भैरवतसिंह शेखावत यांच्या हस्ते जीवनगौरव पुरस्कार देवून ज.न.म. संस्थानाने त्यांचा सन्मान केला आहे.
त्याच बरोबर भारतीय इतिहासाचार्य श्रीमान बाबासाहेब पुरंदरे यांनाही जीवनगौरव पुरस्कार देवून सन्मानित करण्यात आले आहे. असे समाजातील विविध क्षेत्रात सेवा करणार्या अनेक व्यक्तींना सन्मानित केले जाते. पद्मश्री दादा इधाते यांना कर्मवीर पदवी देवून सन्मानित केले आहे. समाजासाठी कार्य करणार्या अनेक व्यक्तींना समाजाच्या कार्यासाठी प्रोत्साहीत करण्याकरीता वेळोवेळी पुरस्काराने सन्मानित केले जाते. कोट्यावधी भाविकांचे श्रद्धास्थान असलेल्या अयोध्यातील भगवान श्रीरामांच्या भव्य मंदिरासाठी श्रीराम जन्मभूमी तीर्थक्षेत्र न्यासाला कोट्यावधी रुपयांची मदत केलेली आहे.
याव्यतिरीक्त अनेक सामाजिक सेवा जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य वेगवेगळ्या संस्थांमार्फत तसेच त्यांच्या संप्रदायातर्फे करुन घेत असतात.
JNMS, JNMS | Jagadgurushree - About Jagadgurushree
Introduction of Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya
To Know more, VISIT
“Manushyacharmana baddhah saakshaat parashivah svayam । Sacchishyaanugrahaarthaaya gudham paryatati kshitau । Atrinetrah shivah saakshaadachaturbaahurachyutah । Achaturvadano brahma shri-guruh kathitah priye ॥ Although the human body is composed of bones and flesh, created from the eightfold elements of nature, the divine power that descends into this body in the form of the Sadguru is verily the Guru. The Guru is none other than the Supreme Lord Shiva Himself. He manifests on earth only to bestow grace upon deserving disciples. The Guru is Shiva without three eyes, Vishnu without four arms, and Brahma without four heads. The Guru is not merely Brahma, Vishnu, and Mahesh, but indeed the Supreme Parbramha.
Meaning of the Word "Guru" -
Gukaarastvandhakaarashcha, rukaarasteja uchyate। Adynaanagraasakam brahma, gurureva na sanshayah॥ That which removes the darkness of ignorance and illuminates the light of wisdom, that which destroys ignorance itself—that is the Guru, the manifested Parbramha. There is nothing superior to the Guru.
Nadhikam tattvam, na guroradhikam tapah। Tattvadynanat param nasti, tasmai shri-gurave namah॥
Bramhanandam paramasukhadam kevalam dynanamurtim। Dvandavateetam gaganasadrishyam tattvamatsyaadilakshyam॥ Ekam nityam vimalamachalam sarvadhisaakshibhootam। Bhavateetam trigunarahitam sadgurum tam namami॥ There is nothing more supreme in the world than the Guru. Beyond the Guru, no truth exists. No austerity is greater than devotion to the Guru. The Guru is beyond mere philosophical knowledge; He is the Supreme Bramh. He is the giver of supreme bliss, the embodiment of pure knowledge. He transcends pleasure and pain, sunlight and shadow, gain and loss. Subtle and all-pervading like the sky, He is the essence of the Great dictum. “Tattvamasi” (That Thou Art). Eternal, pure, unmoving, and the witness of all intellects, He is beyond all emotions, bestowing the supreme realization. To such a world teacher—Jagadguru Narendracharya—we offer countless salutations.
Birthplace – Ratnagiri
Ratnagiri—a treasure house of gems, adorned with natural beauty, a land where hunger and thirst are forgotten, enriched with vast seashores, and sanctified as the holy land of the valiant Lord Parashurama. In this Konkan region, famous for its abundance of mangoes, jackfruit, cashew, coconut, and areca nut, lies the village of Nanij in Ratnagiri district, where Shri Swami Narendracharya was born.
Although the village of Nanij is simple, it has been sanctified by the divine touch of Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya. Today, it is regarded as a sacred site awakening the consciousness of the entire world.
The very name “Naa…nij” signifies— “one who does not sleep himself but keeps others awake.” Such indeed is this village of Nanij.

Family Background
The parents of Shri Narendracharya must have been ascetic yogis in their previous birth. His mother Subhadra was a devout and dedicated follower of Datt Maharaj. His father, Baburao Govindrao Surve, belonged to the Surya dynasty (Suryavanshi lineage) and the Vashishtha gotra. Their family deity was Goddess Bhavani (Tuljapur). Their sacred family symbols (devak) were Panchapallava (five sacred leaves) and Surya Phool (Sunflower).
The family originally hailed from Niphad in Nashik district. Their ancestors were part of the battalion of Bahirji Naik (Nimbalakar), the chief of intelligence in the army of Chhatrapati Shivaji Maharaj. On the command of Shivaji Maharaj, this battalion constantly traveled to understand the condition of the subjects, monitor the movements of enemies, and gather intelligence regarding secret plans.
To maintain vigilance along the extensive Konkan coastal line and safeguard the information regarding the strategic forts of Sindhudurg, Vijaydurg, Raigad, and Janjira, the family eventually settled in the Konkan region.अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते । तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥
Biography of Jagadguru Narendracharya (Childhood)
After the establishment of Hindavi Swarajya, many families settled permanently in the Konkan region. If, 30–40 years ago, someone had said that the village of Nanij would attract global attention, it would have been difficult to believe. This was natural, as the village was extremely rural and remote, and it did not possess any special historical, spiritual, religious, or cultural legacy of distinction. How, then, did this transformation occur? How was this miracle made possible?
“Yada yada hi dharmasya glanir bhavati Bharata, Abhyutthanam adharmasya tadatmanam srijamyaham. Paritranaya sadhunam vinashaya cha dushkritam, Dharma-samsthapanarthaya sambhavami yuge yuge.”
Whenever righteousness declines, whenever moral values deteriorate, and whenever the lives of saints, sages, and virtuous people become arduous, the Divine descends upon the earth—at times as Shri Rama, at times as Shri Krishna, at times as Sant Dnyaneshwar Mauli, and at times as Swami Vivekananda—to re-establish Dharma.
In the same manner, on Ashwin Shukla Ashtami, during the Navratri of Mother Jagadamba, the priests proclaimed at his birth that this child was the son of Jagadamba and would one day become the protector of the world. Thus, the radiant sun of knowledge—Jagadguru Narendracharya—was born on Friday, 21 October 1966, at 10:00 p.m., in the Nanijdham area.
From his revered mother, Jagadguru Narendracharya imbibed devotion to Lord Dattatreya from early childhood. His life principle has always been this: whatever he undertakes or accepts, he takes it to the highest culmination—be it divine worship, social work, or any other responsibility. Because of these qualities, he made Shri Datt Maharaj his own. Even in childhood, he perceived the form of Datt Maharaj in every object.
Indeed, he would even sense in advance what a person was about to say. He would tell his friends, “That person will say precisely these words,” and events unfolded exactly so. This may appear astonishing, yet the Bhagavad Gita affirms:
“Ananyashchintayanto mam ye janah paryupasate; Tesham nityabhiyuktanam yogakshemam vahamyaham.”
Meaning: Those who remain steadfast in Me with undivided devotion and who continuously meditate upon and worship Me selflessly—I Myself carry their welfare and sustenance.
Jagadguru Narendracharya’s childhood was like the first day’s crescent moon, steadily waxing toward the full moon; in the same way, his early years advanced toward devotion to God (further incidents will be described later).
Although he possessed the playfulness and sportsmanship typical of children, his capacity for deep concentration in meditation and spiritual practice was exceptional. In the 4th–5th class, he once became so deeply absorbed in meditation on Shri Datt Maharaj that a scorpion remained on his lap for quite some time without his awareness. Even when his sister, Ranjana, screamed upon seeing it, he remained immersed in meditation. Only when she shook him forcefully he emerge from that state. Such was the depth of his devotion.
Narendracharya exhibited an innate sense of play, organizational ability, and leadership. By the 5th–6th class, he had initiated the public celebration of Datta Jayanti in his village—a tradition that continues in Nanijdham till date. In Konkan, the Holi festival is widely renowned and was typically organized by elders. Yet, at just ten or eleven years of age, Shri Narendracharya began organizing this festival with his younger companions. From Falgun Shukla Panchami to Holi Purnima, they established, as a group of children, the same observances practiced by adults. To this day, the tradition of children organizing Holi celebrations remains alive in Nanij. This clearly shows that organizational ability was innate in him. Today, we see Jagadguru Narendracharya has organized and inspired millions.
During his school years, his favorite subjects were Mathematics, Science, and History. Owing to his strength in mathematics, he later leveraged Information Technology to take spirituality and social service to the masses.
Jagadguru Narendracharya: Early Youth
To disseminate spirituality and social service among the public, Narendracharya made comprehensive use of Information Technology. In collaboration with 150–200 IT engineers, he developed approximately 17–18 software applications. Notably, the requirements for all these applications were authored by Narendracharya himself. More importantly, 70–80% of the underlying logic was his own. In summary, foresight, leadership, science, spirituality, and the mathematics of life—these seeds had been present in him since childhood.
After passing his S.S.C. in March 1983, he went to Thane for further studies. However, he did not take to the urban environment, as his heart was never inclined toward worldly life; he was interested only in worship, meditation, and spiritual practice. When he returned to the village, his revered parents pressed him to accept a government position as Gram Sevak (Village Development Officer) to anchor him to worldly responsibilities. Due to his spiritual disposition, he was not one to immerse himself in worldly life, which is why his parents insisted on gainful employment.
On 29 March 1985, he was appointed to government service as a Gram Sevak. Although he worked, his mind remained wholly absorbed in spirituality. His parents wished that he should also fulfill worldly duties. Among all the siblings, Narendracharya was always an obedient son. His revered mother, Subhadra Mata, would often say:
“You must certainly pursue devotion; however, it is our wish that you also engage in worldly responsibilities. A prudent son should never disobey the command of his parents. Our blessings are with you. Therefore, take up gainful employment, establish and maintain a household, and keep us pleased. I am a devotee of Lord Datt; my blessings will remain with you. You will work for the welfare of the world. Lord Datt Maharaj will always bestow His grace upon you, and you must conduct yourself exactly as He commands.” By the blessings and command of Shri Datt Maharaj, Shri Narendracharya became a devotee of Shri Gajanan Maharaj of Shegaon, an enlightened yogi. Datt Maharaj told him, “From now on, Gajanan Maharaj will guide your path.” Accepting this as a divine decree, Narendracharya became His humble thrall.
Narendracharya expressed his devotion in these words:
“Gajanana Tuzya aamhi payatil vahan. Yachak tuje aamhi dyave samadhan.
Tumhapudhe deva aamhi ghunguradya saman. Neno bhave kaisi ghade seva mahan.
Upadhi vachan na aikati karna. Bahu trasiyale amuche man.
Jari tumhi dile amha shashvat sukh. Yene nahi honar amuche man pak.
Shrihari tumhavina nako he jine. Aas aahe charanachi Narendra mhane.”
This longing for the feet of Gajanan Maharaj grew with every passing day. Observing that his focus on his job was diminishing, his revered parents arranged his marriage on 15 October 1985. He married Mrs. Shobhana (later named Supriya), daughter of Shri Shantaram Babu Rasal, born 2 June 1968. His parents hoped that he would now become engaged in worldly life and felt reassured.
However, they did not realize that when Shri Narendracharya was blessed with a son, he would receive the sacred directive to become free from the debt of worldly entanglement and move toward renunciation. On Monday, 24 October 1988, on the night of Purnima at 11:49 p.m., a son named Kanifnath was born. The family rejoiced, believing that Narendracharya had now embraced worldly responsibilities; yet Narendracharya himself felt inward joy, seeing in this event a path to liberation from worldly bonds and the auspicious beginning of his spiritual, transcendental, and inner journey.
Surrender to the Sadguru and Self-Realization
In Narendracharya’s meditation, mind, and dreams, Santashirōmaṇi Shri Gajanan Maharaj of Shegaon was ever-present. Consequently, every person who came into contact with him experienced an exceptional spiritual strength within him. Unconsciously, people began to disclose their worldly sorrows and difficulties to him. Whenever he offered guidance in a simple, natural manner, his words proved life-giving for society. Naturally, groups of devotees began to gather, and the tradition of collective devotion commenced. The celebration of the appearance day of Santashirōmaṇi Gajanan Maharaj began at Narendracharya’s residence in 1989. He derived no joy from his job, wife, son, or any worldly activity. Gradually, assemblies of five to ten thousand devotees started forming around him. The current of devotion and worship now intensified.
Recognizing the deep yearning in his heart for inner fulfillment, Shri Gajanan Maharaj directed him to seek refuge at the feet of a Sadguru. Then, Narendracharya realized:
“Brahmadynanavina upadesh, mhanu naye khas. Jaise dhanyavina bhus, kay kamache.”
(Meaning: Without enlightment, preaching is futile—just as husk without grain is of no use.)
This thirst for true knowledge began manifesting ever more strongly within him. Accordingly, Shri Gajanan Maharaj instructed him to accept Samarth Siddhayogi Sadguru Muppin Kadasiddheshwar Maharaj (Kaneri, Kolhapur) as his Sadguru. Who could disobey the Vedic command of the saint whom Narendracharya had embraced with body and soul? Thus, on 30 January 1991 (Purnima), Narendracharya accepted discipleship under Sadguru Kadasiddheshwar Maharaj.
The Guru Lineage — Samarth Sadguru Kadasiddheshwar Maharaj and the Inchagiri Sampraday
Samarth Sadguru Kadasiddheshwar Maharaj is associated with the Nimbarkacharya guru lineage, also known as the Inchagiri Sampradaya. Among the disciples of Bhagwan Dattatreya was Revan Siddhanath, one of the Navnath. Revan Siddhanath had eight principal disciples—Jogi, Sharangi, Nijanand, Nain, Niranjan, Yadu, Gaiban-shudra, and Kashtasiddha. Among these eight, Kashtasiddhanath accepted Narayanrao, also known as Guruling Jangam Maharaj (Nimbargi), as his disciple. Raghunathpriya Maharaj (Thanjavur, Tamil Nadu) received discipleship from him. Bhausaheb Maharaj became a disciple of Raghunathpriya Maharaj, and due to Bhausaheb Maharaj, this lineage later came to be known as the Inchagiri Sampradaya. Samarth Sadguru Siddharameshwar Maharaj (Pathri, Solapur) was a disciple of Bhausaheb Maharaj (Umadi–Inchagiri). Shri Samarth Muppin Kadasiddheshwar Maharaj, the 26th Acharya-Mathadhipati of the Lingayat religious seat at Kaneri–Kolhapur, was a disciple of Siddharameshwar Maharaj.
In obedience to the instruction of Santashirōmaṇi Gajanan Maharaj, Narendracharya accepted discipleship under Samarth Sadguru Muppin Kadasiddheshwar Maharaj.
Narendracharya says in one of his abhang:
“Krupavant majha Sadguru Kadasiddha, anugrahit kele tene mala.
Swadharmachi khun davun maj tyane, Soham mantra kani sangitla.
Thayichi lavli akhand samadhi, sampli upadhi avidyechi.
Narendra mhane Eesh anurenut aahe, sansar to jhala mokshamay.
”
Renunciation Inspired by enlightment and a Resolve for Public Welfare
Inspired by the Enlightment bestowed by Samarth Sadguru Kadasiddheshwar Maharaj, Narendracharyaji accomplished his own spiritual upliftment. Now the signs of complete detachment became clearly visible in his life. He resolved to renounce his wife, son, parents, and all familial ties, and to set out permanently on the path of sannyasa.
However, this transformation could not remain hidden from his wife and parents. They therefore took Narendracharyaji to Samarth Sadguru Kadasiddheshwar Maharaj and humbly prayed:
“Now we fully understand that Narendra no longer belongs to us. Nevertheless, we desire that for the sake of his wife, young son, and parents, he remain with us. We will never bind him with worldly fetters. Let him freely serve society, inspire people on the path of devotion; we shall never obstruct his spiritual work. But his wife is only 23 years old, his son is three and a half, and Narendracharyaji himself is only 25. Therefore we request that he not abandon his wife and child, but stay with us and engage fully in spiritual work while remaining at home.”
Hearing their compassionate plea, Samarth Sadguru Kadasiddheshwar Maharaj, honoring the sentiments of his parents and wife, said:
“This is my prasad that I give to you. He will remain with you, amidst you, but he will work only for me.”
Narendracharyaji’s mind did not desire to remain in the worldly sphere. He made many supplications to his Sadguru. Then Samarth Sadguru Kadasiddheshwar Maharaj narrated the episode of Viththalpant Kulkarni (Apegaon–Paithan–Sambhajinagar). Viththalpant had taken sannyasa diksha, but his Shri Guru, Ramanandacharya, sent him back to household life. Accepting the Guru’s command with reverence, he returned to the world; later, Nivruttinath, Dnyaneshwar, Sopan, and Muktabai were born as his children. These four saints showed the world the simplest path to supreme spirituality.
The Guru’s word is akin to a mantra; thus, obedience to the Guru’s command is itself the highest spirituality.
Narendracharyaji had no other course. He too accepted the Guru’s command and returned to Nanij. This occurred toward the end of March 1991. Renouncing the world was no longer possible due to the Guru’s directive. He therefore resolved to pursue paramartha (spiritual welfare) while remaining within worldly life. In mid-April 1991, he undertook a vow to construct a small ashram on ancestral land (Gat No. 295) at Shri-kshetra Nanij, so that the flag of the path of devotion might always remain aloft.
From Nanij, he repeatedly traveled to Kaneri Math for the company and service of the Guru. On Thursday, 13 February 1992, while he was present at Kaneri Math for service, Samarth Sadguru Kadasiddheshwar Maharaj instructed him to resign from his job. The very next morning—Friday, 14 February 1992—Narendracharyaji resigned from the post of Gram Sevak, dedicating himself fully to paramartha.
By this time, the ashram whose construction began in April 1991 had also been completed. Accordingly, on 24 February 1992, in obedience to the Guru’s command, he established the “Swa-Swarupa Sampradaya” and gave to all humanity the great mantra— “Tum jiyo aur doosron ko jeevan do” (“Live, and enable others to live”).
Spirituality and Social Service
Highly sensitive toward the poor and underprivileged, a seeker of truth, endowed with altruistic disposition, and believing that, service to the distressed is service to God, Swami Narendracharya is a visionary thinker. He believes that the protection and promotion of Sanatan Vedic Dharma and ancient Indian culture are essential, for these are the forces that can inspire the entire world. It is Hindu culture, he asserts, that possesses the strength to offer elixir to others. With this conviction, he expanded religious and spiritual initiatives at scale. He articulated a three-point life doctrine: “Let the eyes be scientific, the mind spiritual, and the intellect realistic.” In essence, only through the confluence of knowledge and science can ignorance be overcome.
A Multifaceted Personality
Narendracharya is an excellent planner, an able administrator, an effective manager, a master of Vastu-shastra (sacred architecture), a poet and author, a powerful orator, a life-guide, a great organizer, a protector of Dharma, a social reformer, a skilled technologist, a guardian of nature, and an exemplary social worker. Because of these qualities, he reached every corner of Maharashtra and Goa in a short time.
The reach of his spiritual and social work expanded rapidly due to meticulous planning. He travels continuously across many states and districts for Dharma, culture, spirituality, and social service. Each month, he spends at least 20–22 days outside Nanijdham for public welfare.
Discipline and Spiritual Practice
Despite such a demanding schedule, he accords the highest priority to meditation, spiritual practice, and worship. He pre-plans his annual calendar, with almost all programs scheduled about eighteen months in advance, enabling his work and outreach to be people-centric.
Since 1997, his diary has been publicly available under the title “Jagadgurūn ka Kaal-Darshan” (A Time-Vision of the Jagadgurus), recording his specific program for every date. A unique feature is that each year’s calendar is published on 21 October (his birthday).
This calendar also lists his Meditation days, and he invariably undertakes Meditation on those dates. His preferred places of meditation are generally secluded forests—for example, Soutada (Kada) in Beed district; Khor Ninko in Lanja taluka, Ratnagiri; Chafavali–Chafnath in Sangameshwar taluka; and Siddheshwar Temple at Nive Budruk. Beyond these, he has spiritual practiced in many other locations as well.
Message of Spirituality
Narendracharya places supreme importance on practice (sadhana), service, and conduct. He lives accordingly and inspires his followers to do the same. His clear assertion is: “Adhyatma (spirituality) is neither merely a discipline of discourse nor a matter for debate; it is a discipline to be lived. Only those who bring it into practice can fulfill the highest duty of the human birth.”
Coronation (Pattabhishek) of Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya
The extensive work accomplished by Narendracharya in a short span was closely observed by many saints of the Akhil Bharatiya Akhada Parishad during the Nashik Kumbh Mela (2003). Consequently, Mahant Gyandas Maharaj of the Nirvani Akhada, who was then the President of the Akhil Bharatiya Shad-Darshan Akhada Parishad, was deeply impressed by Narendracharya’s spiritual and social endeavors. He officially accepted Narendracharya into the monastic fold as “Mahant Narendradās” on 11 April 2004 during the Ujjain Kumbh Mela, making him a disciple of the Nirvani Akhada.
Endowed with extraordinary strength and a remarkable personality, Mahant Narendradās was chosen by the Vaishnava Akhadas, which lacked a religious peeth in South India, to be enthroned as “Jagadguru Ramanandacharya.” The intent was to hoist the flag of the Vaishnava path of devotion in the South and widely propagate Ram-naam. As Narendracharya’s work expanded day by day, the Akhil Bharatiya Shad-Darshan Akhada Parishad resolved to recognize him as the “Successor” to Adya (Original) Jagadguru Ramanandacharya for the Vaishnava tradition.
The Pattabhishek Ceremony
On 21 October 2005, in the presence of Mahant Gyandasji Maharaj, President of the Akhil Bharatiya Shad-Darshan Akhada Parishad, members of the Parishad, the Nirvani Ani Akhada, Nirmohi Ani Akhada, Digambar Ani Akhada, eighteen sub-akhadas, Chatursampradaya, Udasin Akhada, Bada Udasin Akhada, Nirmal Akhada, and the heads of all Vaishnava Khalsa Akhadas, Mahant Narendradās was ceremonially enthroned as Jagadguru Ramanandacharya.
This historic ceremony was held in the sacred city of Ayodhya, sanctified by the footsteps of Bhagwan Shri Ramachandra. From that day onward, Mahant Narendradās was adorned with the title “Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya.” As the successor to Adya Jagadguru Ramanandacharya, the entire monastic community conferred upon Narendracharya all the rights of a Hindu religious preceptor and Vaishnava Acharya. From that very moment, the name of Nanij village was changed to “Nanijdham.” It was declared the Southern Seat (Dakshin Peeth) of Adya Jagadguru Ramanandacharya and named “Ramanandacharya Dakshinpeeth – Nanijdham.”
The original seat of Adya Jagadguru Ramanandacharya is located at Panchganga Ghat, Varanasi, known as Shrimath. The second seat is at Chitrakoot (Madhya Pradesh), called Tulsipeeth. The third seat, Nanijdham in Maharashtra, has been established as the Ramanandacharya Dakshinpeeth.
The Incarnation of Adya Jagadguru Ramanandacharya
According to the Puranas, during his earthly incarnation, Bhagwan Shri Ram—acting under the guidance of Dharmamartanda—slew a Shudra named Shambuk (as mentioned in the Uttara Kanda of Valmiki Ramayana), because at that time the right to Vedic worship was reserved for Brahmins and Kshatriyas. It is possible that this episode remained in his heart like a thorn. To protect and promote Dharma, on Vikram Samvat 1356, Magha Krishna Saptami (A.D. 1299), Bhagwan Shri Ram Himself took birth as Adya Jagadguru Ramanandacharya.
The ancient scriptures clearly record:
“Ramananda swayam Ramaḥ, pradur-bhuto mahitale.” Meaning: Bhagwan Shri Ramachandra Himself incarted on earth as Ramanandacharya.
Message of Social Reform and Equality
Adya Jagadguru Ramanandacharya uprooted the poisonous vine of casteism embedded in Sanatan Vedic Dharma. He proclaimed:
“Jat-paat pooche na koi. Hari ko bhaje so Hari ka hoi.” (Meaning: No one should ask about caste or creed; whoever worships Hari belongs to Hari.)
He did not merely preach; he accepted disciples from non-Brahmin communities such as Sant Kabirdas, Sant Ravidas, Sant Sena Nai, Sant Dhanna Jat, and Sant Nabhadas. He also affirmed the right of women—like Sant Surasuri and Sant Padmavati—to pursue spiritual liberation. In the 13th century, when the Delhi Sultanate under Muhammad Ghiyasuddin Tughlaq vigorously promoted Islamization, Ramanandacharya’s role in resisting that movement was unique. It appears that, to complete that unfinished mission, Adya Jagadguru Ramanandacharya has re-manifested today in the form of Narendracharya.
Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya: Work and Multifaceted Persona
The work of Narendracharya from 1992 to the present is documented across his various books and compilations. Likewise, the life of Bhagwan Adya Jagadguru Ramanandacharya is recorded in his collected works. A comparative study of these two saintly lives reveals deep and striking parallels.
Both Adya Jagadguru Ramanandacharya and Narendracharya were born on a Friday; both favor kheer as a preferred food; and both belong to the Vashishtha gotra. Each harbors profound compassion for the distressed and downtrodden. Neither accepts distinctions of caste, high or low status, or untouchability. Both espouse “Vishishtadvaita”, holding that the Supreme pervades the entire animate and inanimate universe; the “Bramh” beyond Hari and Har extends from the subtlest particle to the entire cosmos. Both have been vigilant custodians of Sanatan Vedic Dharma, consistently working—from the common person to the eminent—to strengthen Dharma’s foundations. Their literary contributions are significant; through religious education they have effected meaningful social change and initiated numerous people-centric programs such as education, unemployment alleviation, and disaster relief.
The Twelvefold (Ashtapailu) Qualities of Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya
Jagadguru Ramanandacharya Narendraacharya embodies numerous multifaceted attributes worthy of study.
1) Outstanding Planner
He plans the entire year with meticulous precision. His daily schedule for 1 January to 31 December is finalized at least six months before the start of the year and published as a calendar. This has continued uninterrupted since 1997. Where to go, on which day, and for what purpose is defined with methodical rigor, and he follows the timetable without deviation. Such fine-grained planning is exceptional, ensuring error-free execution and enabling many public-interest projects to become widely impactful.
2) Administrator and Manager
He established institutions such as the Jagadguru Narendracharya Maharaj Sansthan and the Sanjeevan Trust. Through these, he sets direction for social work, executes services flawlessly, coordinates stakeholders, and inspires individuals to participate. A distinctive feature is his use of bespoke software systems to streamline operations—testimony to exceptional coordination and managerial capability.
3) Master of Sacred Architecture (Vastu)
The principal Peeth is Nanijdham, under which twelve Up-Peeth have been set up. Each campus includes buildings, temples, and facilities designed to meet the needs of hundreds of thousands of devotees—for social welfare, mental peace, spiritual progress, and balance between worldly and transcendental life. The entire mountain terrain at Nanijdham has been studied scientifically to add necessary infrastructure without compromising natural beauty—a remarkable discipline in itself. Each peeth follows its own theme; plans are tailored to geography and scale so that large numbers benefit—difficult in practice, yet now visible in concrete form.
4) Poet and Author
A capable poet, he composed Shri Leelamrit—a work of 3,051 ovis (poetic verses)—in just eighteen days. It explains how an ordinary person, while living a worldly life, can adopt spirituality and culture to live well. The language is simple and accessible. He has also composed numerous abhangs and published Bhajanmala Nanijdham, along with many spiritual books. He delivers daily discourses on Hindu Dharma and culture, and continues to produce new digital prose works through these talks.5) Powerful Orator
His oratory is highly persuasive, drawing even the most ordinary individuals into deep engagement. He possesses a rare ability to render complex subjects simple and clear, which has connected lakhs of people to spirituality and the path of Dharma.
6) Life Mentor
Life brings many ups and downs that can lead to confusion and poor decisions. In such times, Jagadguru Narendracharya offers invaluable guidance. His three-point doctrine for life is: “Let the eyes be scientific, the mind spiritual, and the intellect realistic.” He personally reaches people to inspire righteous living, teaching how to combine knowledge with science and avoid ignorance or blind faith. The path of devotion cultivates discipline, timeliness, discernment, firmness, foresight, and leadership. Devotion nurtures humanity and establishes the religion of humaneness, enabling ordinary people to orient toward higher purpose while living their daily lives.
With outstanding organizational capacity, he has unified millions of followers. Youth participation is particularly high. Under his guidance, organizations such as Yuva Sena, Mahila Sena, Hindu Sangram Sena, and Purush Sena have been established. People across ages, education levels, economic status, and castes are engaged in social service through these bodies. For years, they have provided free services and carried the inspiration of Dharma and spirituality to diverse strata. Sustaining such diversity in a single thread through love and leadership is possible only for a truly capable organizer.
8) Protector of Dharma
He has re-established lakhs of families, who had left Hindu Dharma, back into Sanatan Dharma. He restarted roti-beti relations (social and matrimonial ties) across thousands of families and continuously strives to eliminate fear within Hindu society. He conducts mass awareness at Kumbh Melas and other sacred sites, proclaiming:
“Hindu Dharma khatre mein hai; darenge to marenge. Sabhi Hinduoṅ mein ekta ho. Sanatan saatvik hai, par kayar nahi.”
In line with the teaching of Bhagwan Adya Jagadguru Ramanandacharya— “Jat-paat pooche na koi. Hari ko bhaje so Hari ka hoi.”—he consistently works to reduce caste discrimination. In the Ramananda Sampradaya, emphasis is placed on discovering the Divinity within the individual, rather than on caste or varna distinctions. He safeguards Hindu culture through spiritual sanskaras, believing that only through such sanskaras can a person attain divinity. The Vedic Great dictum. “Tattvamasi” can be realized only when we renounce vices and strengthen virtues. By preserving the sanskaras and culture prescribed by Dharma, the growth of Dharma follows naturally. As he says, “Dharma itself protects those who protect it.”
9) Social Reformer
Along with Dharma, he accords great importance to science. His holy message is “Live, and enable others to live”—life must harmonize spirituality and science. Spirituality serves self-realization; science is essential for material progress. He reiterates the triad: scientific eyes, spiritual mind, realistic intellect. Under his guidance, hundreds of posthumous body donations have taken place; organ donation is also expanding. It is a social revolution that families donate the bodies of loved ones free of cost for medical education—without expectation of honor or reward, in a spirit of pure selflessness.
To protect and promote Hindu Dharma, various ritual practices (puja, shanti rites, and Vedic yagya) are necessary. As the number of priests declines—especially in rural areas—these practices are waning. To address this, he has launched training initiatives that provide scripturally correct priestly education to boys and girls from various Hindu communities, securing Dharma and culture.
His de-addiction work is notable: since 1992, particularly for youth. Approximately 400,000–500,000 people have become free from addiction and gained stability through a synthesis of spirituality and science.
Recognizing the importance of English, he established a free educational institution under the CBSE board, offering education from nursery to graduation. It is fully English-medium, yet every child receives Vedic sanskaras.
10) Skilled Technologist
All activities related to spirituality, Dharma, culture, sanskaras, and social service are conducted entirely free of charge. To make these services smoother and faster, he has leveraged Information Technology to the fullest. With 150–200 IT engineers, he has developed 17 applications (software); the complete requirements were authored by him, and 70–80% of the logic was provided by him personally.
Every day from 7:00 a.m. to 8:00 a.m., he confers with IT experts on development and new needs. These systems connect ordinary people directly with the sampradaya, institutions, and service organizations. This technological perspective has enabled Ramanandacharya Dakshinpeeth Nanijdham to progress continuously.
11) Guardian of Nature
In the face of global warming, he has initiated impactful environmental conservation efforts. Through padayatras (foot marches) from various peeths, he runs public-awareness campaigns on water conservation, tree plantation, waterbody preservation, and plastic avoidance, involving thousands of participants.
Since 2023, he has pursued tree plantation, sewage treatment plants, solar energy generation, and Net Zero initiatives across his peeths to eliminate carbon dioxide emissions. He leads in village cleanliness drives, temple-campus cleaning, protection of public spaces, and creation of earthen check dams for water storage.
12) Exemplary Social Worker
During natural disasters, he personally arrives to help; lakhs of followers conduct relief operations during floods, fires, earthquakes, and COVID-19. He provided aid in Mahad, Chiplun, Mumbai, and other locations during deluges. During COVID-19, many of his ambulances were provided to the Government of Maharashtra. He donated crores of rupees to the Prime Minister’s and Chief Minister’s Relief Funds, and supplied food, medicines, and essentials.
Since 2010, 53 ambulances have operated free of cost on Maharashtra’s national highways, primarily to save lives by quickly transporting accident victims to hospitals. Additionally, he has enabled free supply of hundreds of thousands of units of blood annually for patients of thalassemia, sickle cell disease, blood cancer, and kidney ailments, assisting thousands through the Blood-in-Need service.
He helps Adivasi youth gain employment by arranging motor-driving training and licenses.
For the economically weaker sections, the sampradaya distributes—each year and in large numbers—goats, sheep, cows, buffaloes, flour-mills for livelihoods, large flour mills, sewing machines, farm tools, and seed stock. Through such programs, he provides positive energy to the poor, suffering, and marginalized.
Ramanandacharya Narendracharya is truly a special boon from God for the upliftment of the distressed. His life doctrine “Let the eyes be scientific, the mind spiritual, and the intellect realistic”—inspires the public to live a happy, meaningful life. With outstanding organizational skill, he has unified millions of followers, channeling a vast current of public service through them to launch numerous social initiatives.
“Serving the sick, the afflicted, and the marginalized is true devotion to God.”
Service to the sick, afflicted, and marginalized is true devotion to God—embracing this injunction, Narendracharya has initiated a grand yagya of public welfare and progress, conducting diverse activities for the service of all beings through his millions of followers.
A defining feature of his work is that all services are entirely free, and once launched, they never stop—they only expand over time. This clearly indicates the complete grace and blessings of Bhagwan Adya Jagadguru Ramanandacharya upon Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya.
Service Initiatives Operated Through Jagadguru Ramanandacharya Narendracharyaji
1) Educational Facilities – Under the CBSE Board, English-medium school from nursery to standard 12 have been established along with college to provide free education for poor and needy children in rural areas.
2) Vedic School (Vedapathshala) – Youth from all Hindu communities receive priestly training. This not only empowers them economically but also equips them with scripturally sound knowledge to protect, strengthen, and sustain Hindu Dharma and its traditions.
3) Vedic School for Girls – A dedicated Vedapathshala for girls of all Hindu communities provides orthodox priestly training to elevate their economic status and engage them in the protection of Dharma. This also reinforces women empowerment in society.
4) Ambulance Service – 53 ambulances operate 24×7 free of cost on national highways to ensure timely medical attention and save lives of accident victims.
5) Health Camps – During annual festivals at Ramanandacharya Peeths, free specialist health camps are regularly organized for poor and needy people, serving the several who gather.
6) De-addiction Campaign – A monthly program to free youth from addictions, providing notable service in securing a bright future for India’s next generation.
7) Eradication of Blind Faith – Reaching out to lakhs trapped in superstition to strengthen morale through spiritual enlightenment, develop spiritual and scientific outlooks, eliminate blind faith, and preserve the mental health of society.
8) Agricultural Initiatives – Free seeds, planting material, and farm tools are provided to needy and poor farmers to enable self-reliance and empower India’s agrarian communities.
9) Emergency Relief – During floods, earthquakes, droughts, pandemics (e.g., COVID-19), arrangements are made for medicines, clothing, food, etc. Post-disaster, followers conduct cleanliness drives and other services to prevent disease outbreaks.
10) Assistance for Persons with Disabilities – White canes, wheelchairs, prosthetics, hearing aids, and other assistive devices are provided to the visually impaired, differently-abled, and hearing-impaired.
11) Support for Economically Weaker Sections – flour mills for livelihoods, goats, sheep, cows, buffaloes, sewing machines, etc., are provided to promote economic empowerment.
12) Establishment of Up-Peeths – Multiple Ramanandacharya Dakshinpeeth Nanijdham Up-Peeths have been set up across states to widely disseminate Indian culture, sanskaras, and the path of devotion, fostering Vedic Sanatan Dharma awareness, mental peace, fraternity, and virtuous living.
13) Promotion of the Path of Devotion – At various Up-Peeths, worship centers, traveler accommodations, dharmashalas, and free-meal centers (annakshetras) strengthen mental peace and universal brotherhood.
14) Wari Festival Celebrations – Multiple annual Wari festivals explicate the importance of Vedic Sanatan festivals and traditions, enhancing love, fraternity, and harmony. Lakhs attend; requisite facilities are provided.
15) Global Warming Awareness Foot March – The annual youth-led “Vasundhara Payi Dindi” padayatra draws thousands. Starting from Goa, Telangana, and Maharashtra, these marches traverse many districts and reach Ramanandacharya Dakshinpeeth Nanijdham between 11 September and 21 October, conducting tree plantation and broad public awareness.
16) Net Zero Initiative – With environmental imbalance in view, Up-Peeths of Dakshinpeeth Nanijdham pursue a Net Zero target via tree plantation, sewage treatment plants, solar energy generation, energy management, waste control, water conservation, use of non-polluting materials, and landscape-based conservation, mitigating impacts of global warming.
17) Green Revolution Service – A pledge to make 1,100 villages “green villages” across Maharashtra, Goa, Karnataka, and Telangana; pilot projects have already begun in select villages.
18) Self-Reliance for Tribal Youth – Motor driving training schools in tribal-majority districts such as Thane and Palghar (Maharashtra) train youth as drivers; many now work and are self-reliant.
19) Dharma-Awakening Service – To broaden education on Indian culture, sanskaras, history, and Dharma, the monthly magazine “Dharmakshetra Nanijdham” is published, sustaining robust outreach.
20) Hindu New Year Welcoming Service – Grand processions are organized annually in each district of Maharashtra to promote Hindu New Year and Hindu culture, enabling widespread cultural propagation.
21) Paduka Darshan Ceremonies – Large events across states impart knowledge on spirituality, devotion, and worship to Vedic Sanatan adherents. Thousands gather; through discourses and Shri-katha (in select North Indian states), wide-scale Dharma awakening is accomplished.
22) Religious Education via Digital Media – Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya conducts daily digital Spiritual School sessions (via applications/APKs) for lakhs, teaching Dharma, culture, knowledge-science integration, eradication of blind faith, the sixteen Hindu sanskaras, and key scriptures; Question and answer strengthens foundational understanding.
Official Digital Channels
- www.youtube.com/@NanijdhamOfficial
- www.youtube.com/@JagadguruNanijdham
- www.youtube.com/@DharmakshetraOfficial
- www.youtube.com/@nanijdham
- www.youtube.com/@JNMSAmbulanceSeva
- https://whatsapp.com/channel/0029VbBFUQW7NoZtdKQhcW3k
23) Literary Wealth – Jagadguru Ramanandacharya is himself a poet and author, creating numerous spiritual texts in simple, accessible language for the common person, and composing abhangs for continuous social enlightenment.
24) Youth-Power Organization – To protect, nurture, and propagate Vedic Sanatan Dharma, a Yuva Sena of millions of youths (ages 16–45) has been formed under Ramanandacharya Dakshinpeeth, Nanijdham, instilling love of Dharma, nation, and society. Consequently, youth actively balance career with public service.
25) Women’s Organization – A dedicated Mahila Sena under Dakshinpeeth provides instruction in Dharma, spirituality, and sanskaras. Experts deliver programs on health, family care, self-defense, career guidance, etc., for women’s empowerment.
26) Protection of Hindu Interests – Through the Hindu Sangram Sena, organized responses address injustices and attacks against Hindu Dharma, culture, and sanskaras.
27) Preservation of Spiritual Knowledge – A Gyanpeeth has been established to train thousands of preachers for disseminating spirituality and the path of devotion across multiple languages.
28) Safeguarding Vedic Sanatan Heritage – At every Kumbh Mela, efforts include health services, emergency relief, cleanliness, food donation, Dharma-awareness, and large-scale awakening through public hoardings to strengthen and organize Dharma.
29) Weekly Santsang – To keep Hindu society unified, a weekly digital Santsang is conducted in thousands of villages every Sunday at 9:00 a.m., fostering unity and spirituality.
30) Maha-Blood Donation Kumbh – Each January, a 15-day Maha-blood donation drive ensures blood availability for patients with thalassemia, sickle cell disease, blood cancer, and renal failure, providing lakhs of units to government. This service continues unabated.
31) Blood Assistance When Needed – The Blood-in-Need program supplies free blood to about 25,000–30,000 poor/needy patients annually for surgeries and critical illnesses.
32) Posthumous Body Donation – Recognizing the need for trained physicians, Jagadguru Ramanandacharya called for posthumous body donation. In 2016, followers submitted 56,537 applications to state universities; subsequently, hundreds of followers’ bodies were donated for medical education.
33) Organ Donation – In February 2025, Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya called for organ donation. In response, many people donated eyes, skin, and other organs posthumously, energizing this service.
34) Re-entry into Hindu Dharma – Under the “Homecoming” initiative, Hindus who had converted under various inducements were brought back to Sanatan Dharma. To date, 152,354 families have rejoined; 15,400 marriages were solemnized to stabilize their social lives.
35) Spiritual Initiation (Diksha) – To reduce rajas and tamas and enhance sattva, lakhs of devotees have received spiritual diksha, being guided onto the devotional path with the message: “While engaging in worldly duties, also pursue the highest good; use this intelligent human birth to realize the Self.” Monthly mega-diksha events guide many onto the path of righteousness.
36) Dharma-Awakening Melas – At public forums, as a Hindu religious preceptor, he delivers addresses to awaken Dharma, culture, sanskaras, and pride in Dharma. Throughout the year, he personally attends many such programs to guide society.
37) Village Cleanliness Campaign – Along with bodily purity, maintaining clean surroundings is essential. Cleanliness prevents disease and enables a healthy, happy life. Accordingly, his followers run village-cleanliness drives in thousands of villages annually.
38) Career Guidance – Students completing Grade 10 or 12 often struggle to choose suitable academic pathways. Dakshinpeeth Nanijdham conducts expert-led career guidance sessions to direct youth appropriately.
39) Development of Specialized Software – Consistent with his maxim “Let the eyes be scientific, the mind spiritual, the intellect realistic”, numerous services integrate spirituality, science, and practical life. To run these at scale, error-free, and with discipline, followers in IT have developed 18 special software systems. Narendracharyaji provided the entire requirements and 70–80% of the logic.
40) Diverse Digital Media – His approach is to serve society free of cost by integrating science and spirituality. Many followers actively work across digital and social platforms to broaden and enhance this service.
41) Narmada Parikrama Service – For Sanatani devotees performing Ma Narmada Parikrama on foot, a Up-Peeth has been established in the Alibuzurg–Sanawad–Khargone (Madhya Pradesh) region, providing free tea, snacks, lunch, dinner, and accommodation along the route.
Honors Conferred upon Jagadguru Ramanandacharya Narendracharyaji
-- 2000 – Shivatej Puraskar by Akhil Bharatiya Maratha Mahasangh, presented by President Shashikant Pawar.
-- 11 April 2004 (Ujjain, MP) – Conferred the titles “Dharmacharya” and “Peethadheeshwar” by Akhil Bharatiya Shad-Darshan Akhada Parishad and Ram Janmabhoomi Punarodhar Samiti, Hanumangarhi, Ayodhya, presented by Mahant Gyandasji Maharaj.
-- 21 October 2005 (Ayodhya) – Enthroned as “Jagadguru Ramanandacharya” by Jagadguru Ramanandacharya Hariyacharyaji in the presence of the heads of all Vaishnava Akhadas, sub-akhadas, Chatursampradaya, and Khalsas of the Akhil Bharatiya Shad-Darshan Akhada Parishad.
-- 26 May 2008 – Samajseva Puraskar by Swatantra Veer Savarkar Rashtriya Smarak, Mumbai.
-- 5 December 2008 (Wai, Satara) – Veer Jeeva Mahala Puraskar by Shivpratapgarh Utsav Samiti, presented by Smt. Vijaya Raje Bhosale.
-- 25 May 2009 (Mumbai) – Veer Savarkar Puraskar, presented by Vikram Savarkar, grandson of Vinayak Savarkar.
-- 20 February 2010 (Kolhapur) – Conferred the title “Rashtrasant” by Shiv Pratishthan, President Bhide Guruji.
-- 20 August 2010 – Dharmacharya Brahmachari Vishwanathji Puraskar by RSS Sarsanghchalak Dr. Mohanrao Bhagwat.
-- 14 April 2012 – Honored by JNMG Foundation Inc., America for the global message of international brotherhood and stress-free living, presented by Nassau County Executive Edward P. Mangano; formally acknowledged by a New Jersey Assembly resolution on 15 April 2012.
-- 23 December 2016 – Dharm-Sanskriti Mahakumbh Puraskar by Shrimad Jagadguru Shankaracharya Shri Vasudevananda Saraswati, Jyotirmath Badrinath, recognizing social work.
-- 14 June 2022 – Maharashtra State Blood Transfusion Council bestowed the State-level Blood Donor Honor, presented by then Health Minister Rajesh Tope.
-- 14 February 2025 – Akhil Bharatiya Maratha Mahasangh awarded the “Maratha Samajratna Puraskar.”
-- 20 February 2025 – Again honored with the State-level Blood Donor Honor by the Maharashtra Blood Transfusion Council; he has been recognized almost every year by the Maharashtra Blood Transfusion Bank with state-level awards.
-- 14 June 2025 (World Blood Donor Day) – Special award by the Indian Red Cross Society, presented by Hon. Governor of Telangana, Shri Jishnu Dev Varma.
Jagadguru Narendracharya Maharaj Sansthan
Founded by Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj for the purpose of social service, the Jagadguru Narendracharya Maharaj Sansthan has emerged as a dedicated institution serving humanity, animals, and society at large.
Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj has carried out immense work across multiple fields, and to effectively implement these activities, he established various organizations. Among them, the Jagadguru Narendracharya Maharaj Sansthan was specifically created to perform social service for the stability, upliftment, progress, and peace of all living beings.
Establishment and Registration:
-- To provide uninterrupted, free services to the poorest and most disadvantaged sections of society — from the remotest villages to urban slums, and even for animals — a government-recognized registered institution was established.
-- Initially, the institution was registered under number F. 995/1991.
-- As its operations expanded throughout Ratnagiri district, the limited scope of the F.995 registration created difficulties in accommodating broader activities.
-- Therefore, on 13th April 1994, the institution was officially re-registered as the Jagadguru Narendracharya Maharaj Sansthan under number E/694 at the office of the Assistant Charity Commissioner.
Nationwide Scope of Work:
Today, the Sansthan’s activities extend across the entire nation of India. Its initiatives cover:
-- Education
-- Healthcare
-- Emergency relief assistance
-- Agricultural development
-- Animal care and protection
-- Support for weaker sections of society
-- Social awareness campaigns
-- Eradication of superstitions
-- De-addiction programs
-- Dowry eradication
-- Social infrastructure and amenities
-- Environmental protection, balance, and conservation
-- Strengthening social bonds
-- Religious and spiritual awareness
-- Preservation of historical and cultural monuments, structures, and heritage sites
States of Operation:
The Sansthan is actively carrying out its service initiatives with great zeal in the states of Maharashtra, Goa, Karnataka, Telangana, Chhattisgarh, Madhya Pradesh, Gujarat, Rajasthan, Jammu, Uttar Pradesh, Bihar, and several others.
1. English Medium School and College
In order to provide free English medium education to children from extremely remote areas and economically weaker sections, Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj established a fully equipped Educational Institute on 20th August 2009.
This institute functions without any financial aid from the Government, yet imparts completely free education from Nursery up to Graduation level under the C.B.S.E. Board curriculum.
Since its inception, the institute has consistently achieved a 100% result in both 10th and 12th standard board examinations every year.
Facilities and Infrastructure:
-- Well–equipped modern laboratories.
-- Computer laboratories.
-- Smart classrooms.
-- High–quality sports equipment to promote excellence in various games and athletics.
The students of this institute have delivered remarkable performances in several district and state–level sports and art competitions.
Holistic Development:
The institute not only provides bookish knowledge but also imparts the scientific importance of spiritual values to enable students to live a cultured and righteous life.
Based on the principles of Vedic Science, the institution is devoted to nurturing moral values and shaping students into ideal Indian citizens.
Thus, Jagadguru Narendracharya Maharaj envisions creating such students who will stand as role models in society and work as guiding forces in the protection of Dharma and culture.
Other Educational Services:
-- Every year, lakhs of notebooks are distributed free of cost to underprivileged school children. Till date, several lakh notebooks have already been distributed.
-- Free uniforms are also distributed every year to poor and needy students, with large–scale distribution carried out so far.
-- Under the Adopt-a-Student Scheme of the institution, many school children were adopted for their educational needs, with the entire cost borne by the institution. The respective amounts under this scheme were handed over to the schools by the institution.
-- In earlier years, the institution also operated free kindergartens (balwadis) in remote areas.
-- Annual financial aid is provided to schools for hearing and speech–impaired children.
-- Thousands of needy students, as well as schools in rural and tribal regions, have been provided with free computers to promote computer education.
-- Distribution of educational materials to rural and tribal schools is also undertaken regularly.
-- Several other educational institutions have been given financial assistance by the institution.
Thus, under its educational initiatives, Jagadguru Narendracharya Maharaj Sansthan has been successfully carrying out a wide range of activities dedicated to the upliftment of society through education.
2. Vedic School for Boys
For the survival and continuity of any religion, it is essential to preserve and practice its traditional forms of worship, rituals, festivals, vows, and ceremonies. These elements strengthen the fabric of faith and create awareness about religion among its followers. History has shown that religions that neglected such practices eventually ceased to exist.
In the present era, Hindu rites and traditions are also gradually disappearing. The primary reason is the decline in the number of priests (purohits) capable of imparting this sacred knowledge to society. This alarming situation poses a significant threat to the future of Dharma.
Recognizing this danger, Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj established the “Adya Jagadguru Ramanandacharya Vedic School” at Naneezdham on 25th July 2010, affiliated with the Kavi Kulguru Kalidas Sanskrit University, Ramtek (Nagpur).
Facilities and Provisions:
-- All students are provided with free textbooks, uniforms, accommodation, and meals.
-- The entire educational expense of each student is borne by the institution.
Curriculum and Training:
This Vedic School imparts Vedic priesthood training to boys belonging to all Hindu castes and communities. The training includes –
-- Rituals and ceremonies (Anushthans)
-- Worship practices (Puja and Archana)
-- The sixteen samskaras (sacraments) of Hindu Dharma
-- Various religious rites and rituals, including peace ceremonies (Shanti Vidhi)
-- Moral and ethical education
Outcomes:
-- Till now, numerous batches of students have successfully graduated from this Vedic School.
-- Jagadguru Narendracharya Maharaj has thus created hundreds of trained priests (purohits), who are actively working across the country for the preservation and promotion of Hindu Dharma on a large scale.
3. Special Vedic School for Girls
Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj is known as a progressive and revolutionary Acharya. As the successor of the Ramanandacharya Peeth, he has always carried forward the vision of Adya Jagadguru Ramanandacharya, which was rooted in social welfare and upliftment.
In the 14th century (around 1300 A.D.), Adya Jagadguru Ramanandacharya undertook a radical reform by uplifting saints and disciples from diverse communities:
-- Saint Kabir from the Muslim community,
-- Saint Raidas from the Chamar (cobbler) community,
-- Saint Peepadas from the Kshatriya community,
-- Women disciples such as Saint Padmavati and Saint Surasuri.
At that time, such inclusion was unthinkable, particularly the initiation of women as disciples. Nevertheless, Adya Ramanandacharya broke social barriers, abolished untouchability and rigid traditions, and gave equal dignity to every caste within Hindu Dharma.
Carrying forward this same legacy, his successor Jagadguru Narendracharya Maharaj continues to uphold the principle that the upliftment of society is paramount.
Establishment of Girls’ Vedic School:
With his inspiration and vision, the “Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Vedic School for Girls, Marathwada” was established at the Marathwada sub–peeth of Ramanandacharya Dakshinpeeth, Naneezdham, on 7th July 2025, affiliated with the Kavi Kulguru Kalidas Sanskrit University, Ramtek (Nagpur).
Key Features:
-- The girl students are offered the Higher Diploma in Priesthood (Pourohittya).
-- Completely free of cost facilities are provided – including uniforms, accommodation, meals, textbooks, university fees, and education.
-- This initiative will enable girls to gain opportunities for economic independence in the future through priesthood.
Significance:
-- The Girls’ Vedic School is a revolutionary step towards women’s empowerment, undertaken by Jagadguru Narendracharya Maharaj.
-- Through learning rituals, vows, worship practices, and ceremonies, the girls will contribute to the protection and propagation of Hindu Dharma with renewed vigor.
This initiative stands as a milestone in social reform, ensuring that women too become torchbearers of Dharma and culture.
4. Ambulance Service for Highway Accident Victims
The saying “He who has no one, has God” is truly reflected in the Ambulance Service initiated by Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj.
Whenever an accident occurs on the national highways of Maharashtra, within just a few minutes the free ambulance service of the institution reaches the spot. The sole mission of this service is to immediately lift the injured person, rush him to the nearest hospital, and save his life.
Establishment and Operation:
-- This noble initiative was launched on 25th July 2010.
-- The service is absolutely free of cost and available 24 hours a day.
-- At present, a fleet of 53 ambulances is continuously active in this mission of social service.
Achievements:
-- Till now, more than 27,000 accident victims have been saved through this ambulance service.
Recognition:
The selfless and humanitarian efforts of Jagadguru Narendracharya Maharaj through this free ambulance service have been widely acknowledged and appreciated across various sections of society.
5. Free Health Camps for Various Diseases
At the principal seat Naneezdham as well as at the sub–peeths in Marathwada, Goa, and Mumbai, the Jagadguru Narendracharya Maharaj Sansthan organizes annual Wari festivals. These festivals witness the participation of lakhs of devotees. On average, seven Wari festivals are celebrated every year.
Health Services During Festivals:
-- During these occasions, specialist doctors from various medical fields conduct free health check–ups for devotees and patients
-- Necessary medicines are provided free of cost by the institution.
Regular Medical Assistance:
In addition to these festival–related health services, daily free medical treatment is provided at Naneezdham. This ensures that the needy and underprivileged have access to timely healthcare and medicines.
6. De-addiction – A Path to New Life
India is recognized as a nation of youth. Unfortunately, invisible forces are actively trying to hinder the nation’s progress by trapping young people in the clutches of various addictions. Consequently, a large number of youth are increasingly falling victim to such destructive habits.
Recognizing the gravity of this issue, Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj initiated the De-addiction Movement in the year 1992.
Counseling and Rehabilitation:
-- Through highly effective counseling sessions, young people are made aware of their responsibilities and guided away from substance abuse.
-- Till now, nearly four to five lakh youth have been freed from addictions such as alcohol.
Positive Impact:
-- Today, lakhs of de-addicted youth, inspired by Jagadguru Narendracharya Maharaj, are leading responsible and happy family lives.
-- Many who once wasted their lives in addiction have reformed themselves; some are employed in prestigious positions, while others have become small and medium-scale entrepreneurs.
Vision for Youth:
-- Jagadguru Narendracharya Maharaj firmly believes that addiction-free youth are the true future of the nation.
-- By befriending these young people and engaging them in social service, he has directed their energy toward constructive activities.
Social Service Initiatives by Youth:
-- Posthumous body donation and organ donation.
-- Blood-in-Need campaigns to provide blood for patients suffering from blood cancer, thalassemia, and other conditions requiring regular transfusions.
-- Environmental protection drives.
-- Cleanliness campaigns during Kumbh Melas and other large gatherings.
Through such initiatives, the youth not only liberate themselves from harmful addictions but also contribute significantly to nation-building and humanitarian service.
7. Eradication of Superstitions
The world in the 21st century has become increasingly science-oriented. According to Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj,
“Without science, there can be no material progress; without material progress, man cannot attain happiness; and without happiness, man cannot live a truly successful practical life.”
Therefore, he often advises:
“Let your eyes be scientific, your mind spiritual, and your intellect realistic. Living by this threefold principle ensures a life of contentment and satisfaction in the practical world.”
The Challenge of Superstitions:
Despite the immense progress of science, society still harbors a large number of people who exploit ignorance and continue to nurture blind beliefs. Innocent and devoted individuals often fall prey to superstitions and, as a result, waste their lives.
The Mission:
To combat this, Jagadguru Narendracharya Maharaj launched the Superstition Eradication Campaign in the year 1989.
-- Till now, crores of people have been guided out of the darkness of superstition.
-- Through spiritual enlightenment and public awareness programs, individuals trapped in harmful customs, blind faith, and irrational traditions have been shown the way to live by harmonizing spirituality, science, and practicality.
Impact:
This campaign has effectively instilled in society the values of scientific outlook, spiritual wisdom, and practical rationality, thereby ensuring that people live with clarity, faith, and reason combined.
8. Agricultural Initiatives
Under its commitment to rural development, the Jagadguru Narendracharya Maharaj Sansthan regularly undertakes various agricultural initiatives aimed at the welfare and progress of farmers.
Key Activities:
Organization of agricultural camps, where farmers are introduced to improved and modern farming technologies.
During religious discourses and congregations, free distribution of seeds to farmers.
Provision of modern agricultural tools and implements to support farming activities.
Water Conservation Efforts:
In addition to these services, the institution also promotes the campaign “Paani Adva, Paani Jirva” (Stop Water, Percolate Water).
-- For this purpose, with the active involvement of devotees and followers of Jagadguru Maharaj, temporary earthen dams and bunds are constructed at different places.
-- These efforts have helped in the conservation of water and improved irrigation facilities for farmers.
Overall Impact:
Through these agricultural initiatives, the Sansthan has significantly contributed to:
-- Improving the knowledge and efficiency of farmers.
-- Enhancing crop productivity.
-- Promoting sustainable farming practices.
-- Supporting water management and conservation for long-term agricultural growth.
9. Emergency Relief Work
During times of natural calamities such as floods, droughts, pandemics, and earthquakes, thousands of followers of Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj rush forward to provide relief to the affected families with food grains, medicines, clothes, and cleaning materials.
Relief during Major Disasters:
-- On 26th July 2005, when a devastating flood struck Chiplun in the Konkan region, Jagadguru Narendracharya Maharaj himself personally reached the affected families and carried out relief work.
-- The Sansthan has frequently contributed lakhs of rupees to the Maharashtra State Emergency Relief Fund.
During COVID-19 Pandemic:
-- Several ambulances were provided to the Government of Maharashtra for transporting COVID patients.
-- Crores of rupees were donated to the Chief Minister’s Relief Fund and the Prime Minister’s Relief Fund.
-- Necessary medical equipment was supplied to boost the morale of government officials working in high-risk areas.
-- Essential food grains were distributed to poor families affected by the lockdown.
-- For two consecutive years, Jagadguru Narendracharya Maharaj addressed people every morning through social media, instilling courage, patience, and willpower to overcome fear and depression during the pandemic.
Other Major Relief Operations:
-- Relief aid during the Bhuj Earthquake (Gujarat).
-- Assistance during the Tsunami disaster.
-- Large-scale support during the floods in Maharashtra (26 July), Goa, and Konkan.
-- In 2013, during the severe drought in Maharashtra, thousands of tons of fodder were supplied to cattle camps to save the lives of animals.
-- In the 2021 floods, food grains, clothing, utensils, and other essential materials were distributed to flood-affected families, along with thousands of tons of fodder for cattle.
-- On 22nd July 2021, during the flood and landslide disaster at Mahad and Poladpur (District Raigad), the Sansthan organized cleanliness drives, distribution of food grains and essential items, and medical aid for the victims.
Recognition:
Acknowledging this extensive social work, on 15th August 2021, the District Collector of Raigad honored the institution with a Certificate of Appreciation, presented by the Honorable Guardian Minister Adititai Tatkare.
10. Medical Initiatives
The Jagadguru Narendracharya Maharaj Sansthan consistently provides medical support to poor and needy patients, ensuring that essential healthcare is accessible to all.
Assistance to Patients:
-- Financial help for surgeries and medical treatments.
-- Free distribution of hearing aids, crutches, artificial limbs, and tricycles for the differently-abled.
-- Regular support to patients from marginalized communities who cannot afford medical expenses.
During the COVID-19 Pandemic:
The Sansthan extended significant assistance during the nationwide crisis caused by COVID-19:
-- On 1st April 2020, a contribution of ₹50 lakh was made to the Chief Minister’s Relief Fund.
-- On 30th April 2020, a further ₹52 lakh was donated to the Prime Minister’s Relief Fund.
-- Additionally, ₹20 lakh was contributed to the Ratnagiri District Police Relief Fund.
-- Ambulances and other medical facilities were provided at various locations.
-- COVID Care Centers were established in affected areas.
-- Free distribution of sanitizers, sanitizer machines, masks, hand gloves, and other essential protective equipment at public places.
Overall Impact:
Through these medical initiatives, the Sansthan has played a vital role in:
-- Saving countless lives.
-- Supporting healthcare systems during emergencies.
-- Providing dignity and relief to patients from underprivileged backgrounds.
11. Assistance to Weaker Sections of Society
Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj frequently reaches even the remotest villages through various initiatives aimed at public awakening and social service. During such outreach programs, the institution has taken into account the diverse needs of the poor and underprivileged, providing them with the means to achieve self-reliance.
Key Support Initiatives:
-- Distribution of cows, buffaloes, goats, and sheep to needy families
-- Provision of sewing machines, flour mills, and other livelihood tools.
-- These efforts have helped thousands of families secure sustainable sources of income.
Preventing Farmer Suicides:
-- Special awareness campaigns were organized to prevent farmer suicides.
-- Direct financial assistance was provided to distressed farmer families.
-- Other farmers were supported with the free distribution of seeds and agricultural equipment, helping them rebuild their lives.
Continuous Self-reliance Support:
-- The institution continues to provide practical and sustainable assistance to ensure long-term self-reliance among weaker sections of society.
-- Every year, an amount of ₹80 to 90 lakh is spent through the Sansthan exclusively for the service of these vulnerable groups.
Impact:
Through these efforts, the Sansthan has brought significant relief to marginalized families, promoted rural employment, and contributed toward reducing economic disparities in society.
12. Establishment of Peeths (Spiritual Centers)
The guiding humanitarian message of Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj is:
“Live yourself and let others live.”
To implement this vision and to extend help to the poor, downtrodden, and needy, while also ensuring direct contact with people across regions, the Ramanandacharya Dakshinpeeth at Naneezdham was established as the main seat, with several sub-centers (Peeths) created in different states of India.
Main and Sub-Peeths:
-- Main Peeth: Ramanandacharya Dakshinpeeth, Naneezdham (Maharashtra).
-- Sub-Peeths:
---- Goa
---- Marathwada
---- Mumbai
---- Western Maharashtra (Pune)
---- Northern Maharashtra (Nashik)
---- Western Vidarbha (Shegaon, Buldhana)
---- Eastern Vidarbha (Nagpur)
---- Telangana (Kamareddy)
---- Omkareshwar (Madhya Pradesh)
---- Chhattisgarh (Durg)
---- Gujarat (Vadodara)
Activities at the Peeths:
-- Spiritual and religious education is imparted at all Peeths.
-- Organization of Wari festivals, which attract about 1.5 to 2 lakh devotees at each gathering.
-- These festivals become a medium for enlightenment on subjects such as Dharma, spirituality, culture, unity, and humanity.
Inclusive Participation:
-- People from all castes and communities actively and enthusiastically participate in these programs.
-- The Peeths serve as vibrant centers of faith, learning, and social harmony, binding people together across social divides.
13. Pilgrim Accommodation Facilities (Yatri Nivas)
To provide comfortable lodging arrangements for devotees and pilgrims visiting for peace of mind and spiritual fulfillment, the Jagadguru Narendracharya Maharaj Sansthan has established Yatri Nivas facilities at its main Peeth, Naneezdham.
Facilities at the Main Peeth (Naneezdham):
-- 283 rooms, each with attached bathrooms and toilets.
-- 10 large halls, equipped with 1,080 bunk beds, along with sanitation and bathroom facilities.
-- Separate Dharamshalas (rest houses), where accommodation is provided free of charge.
Sub-Peeth Accommodation:
-- Additional Yatri Nivas facilities are available at the Goa sub-Peeth and Marathwada sub-Peeth.
-- All arrangements are made to ensure cleanliness, safety, and comfort for the visiting devotees.
Service-Oriented Approach:
The lodging facilities are provided at a very nominal service fee, while in several cases, devotees are accommodated free of cost, reflecting the humanitarian spirit of the Sansthan.
Impact:
These facilities enable lakhs of devotees visiting the Sansthan annually to focus on worship, meditation, and spiritual practices without any concern for their stay.
14. Wari Festivals
To promote brotherhood, peace, harmony, exchange of thoughts, spirituality, and mental tranquility, the Jagadguru Narendracharya Maharaj Sansthan organizes large-scale Wari festivals at least seven times every year.
Scale of the Festivals:
-- Each festival witnesses the participation of lakhs of devotees from different regions of the country.
-- The gatherings are conducted in a highly organized manner, ensuring both spiritual and cultural enrichment.
Objectives of the Wari Festivals:
-- To instill pride and self-respect among people for Dharma, the Nation, and Culture.
-- To create awareness of moral values and guide devotees toward a life of virtue and discipline.
-- To keep society away from evil tendencies, addictions, and immoral behavior.
-- To strengthen unity, faith, and social responsibility among the masses.
Services Provided During Festivals:
-- All facilities including food, accommodation, and spiritual guidance are offered to the participating devotees completely free of cost.
-- The festivals serve as platforms for the propagation of Indian traditions, culture, and spirituality.
15. Padayatras for Spiritual and Social Bonding
The world today faces the grave challenge of global warming, which threatens the survival of countless living beings. To address this crisis, Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj initiated extensive public awareness campaigns.
Annual Padayatras:
Every year, thousands of devotees of Jagadguru Maharaj undertake long spiritual marches (Padayatras) to the main Peeth, Naneezdham, spreading messages of environmental conservation and spiritual awareness.
The initiative is known as “Vasundhara Paayee Dindi” (Earth Foot March) and covers the following routes:
1. Eastern Vidarbha Sub-Peeth – Shriksetra Nerle–Kamthi–Nagpur (1,022 km, 40 days)
2. Marathwada Sub-Peeth – Shriksetra Simurgavan–Pathri–Parbhani (532 km, 23 days)
3. North Maharashtra Sub-Peeth – Shriksetra Ramsej–Dindori–Nashik (527 km, 23 days)
4. Western Maharashtra Sub-Peeth – Shriksetra Narhe–Haveli–Pune (354 km, 16 days)
5. Mumbai Sub-Peeth – Shriksetra Shirsat Phata–Vasai–Palghar (391 km, 17 days)
6. Telangana Sub-Peeth – Shriksetra Dospalli–Jukkal–Kamareddy (605 km, 25 days)
7. Goa Sub-Peeth – Shriksetra Banygani–Tiswadi–Goa (243 km, 11 days)
These Padayatras have been conducted every year since 2023, covering hundreds of miles over several days.
Awareness Messages During Padayatras:
-- “Stop water, let it percolate” (Paani Adva, Paani Jirva)
-- Tree plantation and preservation
-- Protection of water reservoirs
-- Avoidance of plastic usage
-- Cleanliness drives in villages and public places
In addition, devotees actively participate in tree plantation programs during the marches.
Spiritual and Social Impact:
While raising awareness on environmental protection and global warming, the Padayatras also sow the seeds of spiritual culture:
-- The youth generation is taught the importance of combining science and spirituality.
-- They are inspired to live with discipline, humility, and responsibility toward society.
-- By chanting the name of their Guru and undertaking the journey with devotion, they become role models for future generations.
16. Environmental Protection and Water Conservation
To combat the growing threat of global warming, Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj has initiated several large-scale environmental protection and water conservation programs at his Peeths.
Initiatives at the Peeths:
-- Extensive tree plantation drives within and around the Peeth premises.
-- Establishment of sewage treatment plants.
-- Large-scale adoption of solar energy systems.
-- Implementation of energy management, waste management, and water conservation systems.
-- Strict measures to prevent pollution from materials used in daily operations.
-- Use of landscaping techniques to create an eco-friendly environment.
Through these measures, the Sansthan is implementing a Net Zero initiative aimed at reducing carbon footprint and mitigating the effects of climate change.
Community Participation:
With the active involvement of its devotees, the Sansthan has:
-- Encouraged the plantation of thousands of trees in their respective villages.
-- Launched programs for village cleanliness and temple premises sanitation.
-- Organized public space cleaning campaigns.
-- Built temporary earthen dams and bunds to conserve water under the “Paani Adva, Paani Jirva” campaign.
Women’s Participation – Green Villages Initiative:
-- Through the Mahila Sena Vahini (Women’s Army Wing), the Sansthan has taken a pledge to transform 1,100 villages in Maharashtra into “Green Villages.”
-- Pilot projects have already been launched in selected villages, creating models for sustainable rural development.
Impact:
These initiatives have significantly contributed to:
-- Reducing environmental degradation.
-- Promoting sustainable living practices.
-- Inspiring communities to adopt eco-friendly measures for future generations.
17. Free Community Kitchens (Annachatralay)
The main seat of Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj Sansthan is located at Naneezdham, and its sub-peeths are established in Marathwada, Mumbai, Nashik, Nagpur, Telangana, Omkareshwar, and Goa. Large numbers of devotees visit these Peeths every day for spiritual solace and blessings.
Free Meal Services:
-- At all Peeths, devotees are served free meals twice daily.
-- The community kitchen is known as the “Samarth Sadguru Kadsiddheshwar Maharaj Prasadalaya”.
-- The institution ensures that all visiting devotees are fed with purity, devotion, and utmost care.
Facilities Provided:
-- A spacious and well-maintained building dedicated exclusively for the Annachatralay.
-- Serving of highly pure, sattvic (wholesome and vegetarian) meals, prepared with cleanliness and discipline.
-- Both lunch and dinner services provided to thousands of devotees every day.
Social Impact:
-- These free food services are widely appreciated by devotees and the local communities.
-- The Annachatralay reflects the Sansthan’s values of hospitality, compassion, and service to humanity, ensuring that no devotee ever leaves the premises hungry.
18. Motor Driving Training Program
To provide self-employment opportunities and promote self-reliance among the poor and underprivileged tribal youth living in remote hamlets, Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj established a Free Motor Driving Training Center at the Mumbai sub-peeth on 4th March 2014.
Facilities Provided:
-- Completely free accommodation and meals for all trainees.
-- Full driving training at no cost to the participants.
-- The institution bears the expenses for obtaining a driving license from the Regional Transport Department.
-- Wherever possible, the institution also assists in securing employment opportunities for the trained drivers.
Achievements:
-- Till now, 771 tribal youth have successfully completed the training.
-- Many of them have started their own self-employment ventures, while others have secured jobs as professional drivers.
Broader Support for Tribal Communities:
Beyond motor driving training, Jagadguru Narendracharya Maharaj has also extended various forms of assistance to tribal families, ensuring they remain integrated into the mainstream of society.
19. Free Services for Narmada Parikrama Pilgrims
To strengthen the spiritual faith and provide support to devotees undertaking the sacred Narmada Parikrama, Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj established a sub-peeth at Omkareshwar on the banks of River Narmada on 9th September 2021.
Services for Pilgrims:
The Sansthan has arranged free facilities for all devotees performing the foot circumambulation (Parikrama) of the holy river:
-- Morning (6:00 AM – 12:00 PM): Tea and snacks.
-- Afternoon (12:00 PM – 3:00 PM): Full meal (lunch).
-- Evening (3:00 PM – 6:00 PM): Tea and snacks.
-- Night (6:00 PM – 10:00 PM): Full meal (dinner).
-- Accommodation facilities provided free of cost.
Beneficiaries:
-- Thousands of devotees from Maharashtra and neighboring states have already benefitted from these services.
-- The initiative ensures that pilgrims can complete their spiritual journey with dignity, comfort, and safety.
Cultural Significance:
By serving the Narmada Parikrama pilgrims, the Sansthan contributes to the preservation of India’s cultural and spiritual traditions, reinforcing the values of service, devotion, and Dharma.
20. Social Bonding and Recognition (Samajik RinanuBandh)
The Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj Sansthan honors eminent personalities from various fields of society by conferring upon them special titles and awards as a mark of respect and recognition for their contributions.
Honored Personalities:
-- Bharat Ratna, Nightingale of India – Smt. Lata Mangeshkar: She was felicitated with the Jeevan Gaurav Award by the Sansthan, presented at the hands of the Honorable Vice President of India, Shri Bhairon Singh Shekhawat.
-- Renowned Historian, Shri Babasaheb Purandare: He was also honored with the Jeevan Gaurav Award.
-- Padmashri Dada Idate: He was conferred with the title of Karmaveer by the Sansthan.
Purpose of Recognition:
-- Many individuals working for social welfare and service are honored at different times.
-- These awards aim to encourage and inspire people to continue their dedicated work for the betterment of society.
Contribution to National Causes:
-- The Sansthan contributed crores of rupees to the Shri Ram Janmabhoomi Teerth Kshetra Nyas for the construction of the grand temple of Lord Shri Ram in Ayodhya, which is a holy center of devotion for crores of devotees.
Continuing Social Services:
Apart from these recognitions, Jagadguru Ramanandacharya Narendracharya Maharaj continues to carry out numerous social welfare activities through various institutions and his spiritual order.

